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निशाना आतंकवाद पर या राज्यों के अधिकारों पर |
(09:50:08 PM) 25, Feb, 2012, Saturday |
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सीताराम येचुरी राष्ट्रीय आंतकवादविरोधी केंद्र (एन सी टी सी) के गठन की यूपीए-द्वितीय की सरकार की इकतरफा घोषणा पर, विपक्ष-शासित राज्यों की सरकारों ने और यहां तक कि यूपीए में कांग्रेस के कुछ सहयोगियों की सरकारों ने भी नाराजगी जतायी है। इन चिंताओं का निराकरण करने की कोशिश में आखिरकार, प्रधानमंत्री ने हस्तक्षेप किया है और राज्य सरकारों को इसका भरोसा दिलाने की कोशिश की है कि यह आतंकवादविरोधी संस्था, राज्यों के अधिकारों का अतिक्रमण नहीं करती है। इस सिलसिले में सात मुख्यमंत्रियों को भेजे अपने पत्र में प्रधानमंत्री ने लिखा है कि, ''एन सी टी सी के गठन में, सरकार का किसी भी तरह से यह इरादा नहीं है कि संविधान के प्रावधानों की बुनियादी विशेषताओं को और राज्यों व संघ के बीच सत्ता के आवंटन को प्रभावित किया जाए।'' देश के पैमाने पर आतंकवादविरोधी कदमों में तालमेल की जरूरत स्पष्ट करते हुए प्रधानमंत्री ने लिखा है कि, ''इसीलिए, एन सी टी सी को खुफिया ब्यूरो (आइ बी) के तहत रखा गया है, न कि एक अलग संगठन की तरह। लेकिन, इस तरह इस नयी एजेंसी के गठन की अपनी सफाई में, प्रधानमंत्री ने वास्तव में इसकी जरूरत को ही सवालों के दायरे में ला दिया है। अगर खुफिया ब्यूरो पहले ही इस काम को कर रहा है, तब उसके ऊपर से यह अतिरिक्त संस्था खड़ी करने की जरूरत ही क्या है? मुंबई पर आतंकवादी हमलों की पृष्ठभूमि में खुद यूपीए सरकार ने ही राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी (एन आइ ए) का गठन किया था और संसद ने एक राय से इसके लिए कानून पारित भी कर दिया था। तब उसी काम के लिए एक और संस्था खड़ी करने की जरूरत ही क्या है? संसद में जब एन आइ ए संबंधी विधेयक पर बहस हो रही थी, तभी वामपंथी पार्टियों ने राज्यों के अधिकारों की रक्षा की जायज चिंताओं को स्वर दिया था और यह याद दिलाया था कि हमारे संविधान में 'कानून व व्यवस्था' संभालना, आपराधिक मामलों की जांच करना तथा आपराधिक मामलों में न्याय दिलाना, सिर्फ राज्यों के कार्यक्षेत्र में रखा गया है। बहरहाल, उस समय संसद को गृहमंत्री ने यह भरोसा दिलाया था कि एन आइ ए के गठन के बाद पहले छ: महीने के अनुभव के आधार पर, इस पहलू से संसद इस विषय पर दोबारा विचार करेगी। लेकिन, वह दिन अब तक आया ही नहीं है। इसी सब की पृष्ठभूमि में, एन सी टी सी के गठन के केंद्र सरकार के फैसले से, इसके पीछे सरकार की असली मंशा को लेकर कितने ही शक और संशक उठ खड़े हुए हैं। खुफिया एजेंसियों के विकास का समूचा इतिहास और दुनियाभर में अन्य जनतंत्रों का इसका अनुभव यही दिखाता है कि खुफिया एजेंसियों का काम जानकारियां एकत्र करना है, जिनका उपयोग पुलिस द्वारा छानबीन के लिए तथा न्याय दिलाने के लिए किया जाता है। खुफिया एजेंसियों को पुलिस की जिम्मेदारियां नहीं सौंपी जा सकती हैं। लेकिन, एन सी टी सी को तलाशियां लेने तथा गिरफ्तारियों करने की शक्तियां व अधिकार देकर, खुफिया जानकारियां एकत्र करने और पुलिस के कामों के बीच के इस अंतर को धुंधला किया जा रहा है। और यहां तक कि इससे इस एजेंसी के दुरुपयोग के भी कितने ही रास्ते खुल जाते हैं। एक बार फिर, यूपीए सरकार ने एन सी टी सी के गठन की अपनी घोषणा में जैसी उतावली तथा जल्दी दिखाई है, उससे लगता है कि यह कदम देश को आतंकवाद से बचाने की जायज चिंता से कम और अमरीका से किए गए वादों को पूरा करने के लिए पड़ रहे दबाव से ही ज्यादा संचालित है। यह वाकई इसका सबसे दुर्भाग्यपूर्ण पहलू है। मुंबई के आतंकवादी हमले के बाद, भारत के गृहमंत्री ने अमरीका का दौरा किया था। खुद गृहमंत्रालय द्वारा जारी प्रैस विज्ञप्ति के अनुसार इस दौरे का,''मकसद था अमरीका के साथ संवाद को...अमेरिका में आतंकवादविरोधी संस्थाओं व ढांचों की समझदारी को आगे बढ़ाना...'' और सुरक्षा व खुफिया मामलों से जुड़े वरिष्ठ अधिकारियों से मुलाकात करना। 2010 की जुलाई में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा ने एक आतंकवादविरोधी सहयोग पहल पर दस्तखत किए थे। इसके अगले कदम के तौर पर 2010 के नवंबर के महीने में एक नये आंतरिक (होमलेंड) सुरक्षा संवाद की घोषणा की गयी थी। 27 मई 2011 को भारत के केंद्रीय गृहमंत्री और अमरीका के होमलैंड सीक्योरिटी विभाग के सेक्रेटरी (मंत्री) ने यह संवाद शुरू भी कर दिया। इन्हीं तमाम पहलों के चलते, जो सब की सब अमरीका के साथ रणनीतिक साझेदारी का ही हिस्सा हैं, जिसकी शुरूआत तो वास्तव में वाजपेयी के नेतृत्ववाली एनडीए सरकार के दौर में ही हो गयी थी और जिसे अब यूपीए सरकार जोर-शोर से आगे बढ़ाने में लगी हुई है, अमरीका का कूटनीतिक सुरक्षा का आतंकवादविरोधी सहायता (ए टी ए) ब्यूरो, भारत के 1,500 से ज्यादा कानून लागू कराने की जिम्मेदारी संभालने वाले अधिकारियों के लिए, 79 पुलिस प्रशिक्षण कोर्स अब तक आयोजित भी कर चुका है। नई-दिल्ली में अमेरिकी दूतावास द्वारा जारी प्रैस वक्तव्य में ही यह जानकारी दी गयी है। भारतीय जनता की राय को प्रतिबिंबित करते हुए भारतीय संसद ने, देश को हर रंग के तथा हरेक किस्म के आतंकवाद की लानत से छुट्टी दिलाने के लिए, उसकी सभी पहलों को पूरी तरह से एकजुट होकर समर्थन दिया है। लेकिन, सरकार को इसकी इजाजत नहीं दी जा सकती है कि इसे इसकी इजाजत बनाने के लिए उड़ा ले जाए कि हमारे देश के सुरक्षा तंत्र में अमरीकी एजेंसियों की घुसपैठ करा दी जाए। इसे भारत में अमरीकी संस्थाओं के ढांचे की प्रतिलिपि खड़ी करने के लाइसेंस के रूप में व्याख्यायित करने की इजाजत भी नहीं दी जा सकती है। इसलिए, यह जरूरी हो जाता है कि अंतर्राज्यीय परिषद में और संसद में भी एन सी टी पूरी चर्चा करायी जाए। |
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