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Wednesday, April 6, 2016

सारी पवित्र गायें वहीं पनाामा पेपर्स!वह फूल क्या, गुलशन या बहार क्या,जो जमीन की आग की आंच से दहके ना! अच्छे दिन अब पनामा पेपर्स हैं। हिंदुत्व का राजकाज भी वही पनामा पेपर्स। भारत माता की जय पनामा पेपर्स। धर्म कर्म राजकाज राजकरण पनामा पेपर्स। मुक्त बाजार पनामा पेपर्स।लोकतंत्र,संविधान,समता न्याय सब पनामा पेपर्स। देशभक्ति और राष्ट्रवाद पनामा पेपर्स। मन की बातें और यह सैन्यत्त्र पनामा पेपर्स। आर्थिक सुधार विकास मेकिंग इन और स्मार्ट इंडिया भी पनामा पेपर्स। सिनेमा कला साहित्य मीडिया पनामा पेपर्स। संघवाद और नमनुस्मृति अनुशासन पनामा पेपर्स। मर गया अखबार और मरा भी नहीं है अखबार,अब भी सत्ता से टकराने वाला वही अखबार! सारी पवित्र गायें वहीं पनाामा पेपर्स पलाश विश्वास

सारी पवित्र गायें वहीं पनाामा पेपर्स!

वह फूल क्या, गुलशन या बहार क्या,जो जमीन की आग की आंच से दहके ना!

अच्छे दिन अब पनामा पेपर्स हैं।

हिंदुत्व का राजकाज भी वही पनामा पेपर्स।

भारत माता की जय पनामा पेपर्स।

धर्म कर्म राजकाज राजकरण पनामा पेपर्स।

मुक्त बाजार पनामा पेपर्स।लोकतंत्र,संविधान,समता न्याय सब पनामा पेपर्स।

देशभक्ति और राष्ट्रवाद पनामा पेपर्स।

मन की बातें और यह सैन्यत्त्र पनामा पेपर्स।

आर्थिक सुधार विकास मेकिंग इन और स्मार्ट इंडिया भी पनामा पेपर्स।

सिनेमा कला साहित्य मीडिया पनामा पेपर्स।

संघवाद और नमनुस्मृति अनुशासन पनामा पेपर्स।

मर गया अखबार और मरा भी नहीं है अखबार,अब भी सत्ता से टकराने वाला वही अखबार!


पलाश विश्वास

हमारे गुरुजी ताराचंद्र त्रिपाठी ने 1979 में हमारे नैनीताल छोड़कर मैदानों में आने के बाद हर बार जब भी पहाड़ों में उनसे मुलाकात करने गये,हमसे पूछा है कि तुझमें फिर वही आग सही सलामत है या नहीं।हमें अपने गुरुजी पर फख्र है जो हमारी आग की खबरदारी करते हैं और उन्हें हमारे या हमारे कुनबे के सही सलामत होने की उतनी परवाह भी नहीं है।


ये वहीं गुरुजी है कि देशभर से जब वैकल्पिक मीडिया के लिए हमने हस्तक्षेप को जनसुनवाई का मंच बनाने के लिए बार बार अपील करने के बाद खाली हाथ ही रहे,तो उनने सीधे मेल करके पूछ लिया कि हस्तक्षेप का एकाउंट नंबर भेजो और बताओ कि कितनी रकम चाहिए।अब हम संसाधन की फिक्र नहीं कर रहे हैं और हमें फिर उसी आग की फिक्र है।गुरुजी सात है तो बाकी लोग भी साथ आयेंगे।देर सवेर।हम पेड़ लगा रहे हैं।फल तुरतफुरत मिलने के आासर नहीं हैं।


वह फूल क्या ,गुलशन या बहार क्या,जो जमीन की आग की आंच से दहके ना!


हमारे लिए ऐसे गुरुजी का आशीर्वाद ही काफी है और हम भले बड़े संपादक वगैरह वगैरह ना हुए और न प्रतिष्ठित वगैरह वगैरह  हुए लेकिन जीआईसी नैनीताल 1975 में छोड़ने के बावजूद हमारे गुरुजी को यकीन है कि उनने हमारे दिलोदिमग में जो आग सुलगाई थी , उसकी आंच सही सलामत है।करीब इकतालीस साल से पल पल वे उस आग के पहरेदार बने हुए हैं।आग यह बुझ नहीं सकती।


हमारे अंबेडकरी मित्रों को हम कभी नहीं समजा सकते कि जाति और धर्म के रिश्तों के अलावा इंसानियत का रिश्ता भी है और हम हिमालय से हैं जहां जात पांत के दायरों से बाहर भी हमारे रिश्ते जस के तस हैं और हम जाति और धर्म की पहचान के तहत रिश्तों को तौल ही नहीं सकते।


हम इंसानियत के मुल्क के वाशिंदे हैं और हमारे लिए कोई सरहद सरहद नहीं है न इतिहास का ,न भूगोल का और न इंसानियत का और हम सियासत या मजहब के नागरिक नही हैं।


मर गया अखबार और मरा भी नहीं है अखबार,अब भी सत्ता से टकराने वाला वही अखबार!सूचना का एकाधिकार और वर्चस्व तोड़ने वाला भी वही अखबार।


पल पल लाइव प्रसारण के झूठ और तिलिस्म को एक डटके से तहस नहस करने वाला भी वही अखबार।


आधिकारिक झूठ के खिलाफ जनपक्षधर सच का चेहरा भी फिर वहीं अखबार।कि निरंकुश सत्ता की भी घिघ्घी बंध जाये और घुटनों पर पनाह मांगते नजर आये निर्मम जनसंहारी तानाशाह भी।


इंडियन एक्सप्रेस समूह की ऋतु सरीन की अगुवाई में पच्चीस पत्रकारों की चीम ने पनामा पेपर्स का खुलासा करके सारे चमकदार चेहरे के मुखौटे उतारकर बीच कार्निवाल में उन्हें नंगा खड़ा कर दिया है और कारपोरेट वकील महाशय भी कहने को मजबूर हो गये कि कोई पवित्र गाय दरअसल है ही नहीं।


जाहिर है कि मुक्त बाजार के नये ईश्वर कल्कि महाराज को अबाध पूंजी प्रवाह के कालेधन के मुक्तबाजार के तिलिस्म की तंत्र मंत्र यंत्र की साख और ख्वाबों का मुलम्मा बचाने की कवायद में जांच पड़ताल का ऐलान करना पड़ता है।


अच्छे दिन अब पनामा पेपर्स हैं।

हिंदुत्व का राजकाज भी वही पनामा पेपर्स।

भारत माता की जय पनामा पेपर्स।

धर्म कर्म राजकाज राजकरण पनामा पेपर्स।

मुक्त बाजार पनामा पेपर्स।लोकतंत्र,संविधान,समता न्याय सब पनामा पेपर्स।

देशभक्ति और राष्ट्रवाद पनामा पेपर्स।

मन की बातें और यह सैन्यत्त्र पनामा पेपर्स।

आर्थिक सुधार विकास मेकिंग इन और स्मार्ट इंडिया भी पनामा पेपर्स।

सिनेमा कला साहित्य मीडिया पनामा पेपर्स।

संघवाद और नमनुस्मृति अनुशासन पनामा पेपर्स।

सारी पवित्र गायें वहीं पनाामा पेपर्स


हम 17 मई को रिटायर करने वाले हैं और चलाचली की बेला में हम इंडियन एक्सप्रेस के साथियों के लिए फख्र महसूस कर रहे हैं कि उनने साबित कर दिया कि हम अखबार की नौकरी में घास छील नहीं रहे थे।


हम अखबारों के अलावा भी बहुत कुछ हैं।इसीलिए चाहे कुछ भी हो अखबार न मरा है और न मरेगा।कारपोरेट की चहारदीवारी तोड़कर फिरभी अखबार बोलेगा।


इंडियन एक्सप्रेसइसीलिए बाकी अखबारों से अलहदा है और इसीलिए हमने जीरो हैसियत के बावजूद इंडियन एक्सप्रेस से ही रिटायर होने का विकल्प चुना है।


हमारा कारोबार हकीकत का है और हम हमेशा हकीकत बताते रहे हैं।रिटायर हो जाने के बाद भी यह आदत बदलने वाली नहीं है।फिर जिसके साथ उसके गुरुजी का साथ है त,उसे फिर किस बात की क्यों परवाह होनी चाहिए। हम यकीनन हालात बदलेंगे।


हम जानते हैं और जनता भी जानती है कि बड़े बड़े खुलासे इस आजाद देश में लगातार होते रहे हैं और न दोषियों को कभी फांसी पर चढ़ाने का कोई अंजाम इतिहास बना है और न लूटतंत्र और दिनदहाड़े डकैती का सिलसिला कभी थमा है।


क्योंकि जो दागी,अपराधी और मनुष्यता के खिलाफ ,प्रकृति के खिलाफ युद्ध अपराधी हैं,लोकंत्र का यह तामझाम उन्हीं वतनफरोशों के कब्जे में हैं।


जो हमारे सियासत और मजहब के मसीहा हैे,वे ही हमारे कातिल हैं और उनके हाथों में खून की नदियां  अनंत हैं और उन्हीं निदियों में तारकर हम मोक्ष की खोज में नर्क जीकर भी सशरीर स्वर्गवासी हैं।


क्योंकि हम हालात बदलने को तैयार नहीं हैं और हमें भी इस लूटतंत्र में बराबर हिस्सा चाहिए और इसके लिए हम कुछ भी करेंगे चाहे स्वजनों का वध ही क्यों नकरने पड़े और चाहे अपने जिगर के टुकड़ों से दगा ही क्यों न करना पड़े।यही हमारा धर्म है।यही हमारी सियासत है।यही रास्ता है और मंजिल भी यही है।


हमें अफसोस सिर्फ यह है कि हाय,हम क्यों नहीं लूटेरो कातिलों के उस सफेदपोध विशुध खून और ऊंचे कद,ऊंचे अहदे वालों के तबके में शामिल नहीं हुए।हमारी पूरी लड़ाई उसी अंधियारे की दुनिया में अपना मकाम हासिल करने को लेकर है।रोशनी से हमारा कोई वास्ता नहीं है।हम अपने मां बाप को,अपने जनम को और अपनी किस्मत को कोसने वाले लोग ख्याली पुलाव के वारिशान हैं।


रक्षा सौदों में कमीशनखोरी का मामला भारतमाता के अनिवार्य जयघोष,सेना के सतत महिमामंडन के साथ रक्षा,प्रतिरक्षा और आंतरिक सुरक्षा,राष्ट्रीयएकता और अखंडता के खुल्ला खेल फर्रूखाबादी कारोबार का अंध केसरिया राष्ट्रवाद है और बाजार के सारे दल्ला देशभक्त हैं तो हर दूसरा नागरिक या तो राष्ट्रद्रोही है या माओवादी है या आतंकवादी या फिर संदिग्ध।


अभी अभी सोलह और सरकारी उपक्रमों के विनिवेश की घोषणा हुई है।इसका सच सिलसिलेवार न जाने कब हम खोल पायेंगे कि किस सरकारी कंपनी के निजीकरण,देश के किस हिस्से की जल जंगल जमीन की खुली नीलामी की वजह से विदेश में दर्ज हमारी कौन कौन देशी कंपनियों के नाम कितनी अरब विदेशी मुद्रा किन विदेशी खातों में जमा हैं और देश विदेश में इस देश की निनानब्वे फीसद जनता का खून पसीना,खून और हड्डियां किस किसके नाम किन बैंकों में जमा है।जानंगे भी तो हम क्या उखाड़  लेंगे।हम गुलाम।


गोवध निषेध अरबिया वसंत बहार भी होता रहेगा और मंडल कमंडल महाभारत के कुरुक्षेत्र में स्वजनों के खिलाफ  मारे जाने तक लड़ते रहेंगे और गीता के अमोघ प्रवचन और बीज मंत्र के उच्चारण के साथ सारे के सारे देशद्रोही राजकाज करते रहेंगे पवित्र राष्ट्र,पवित्र गाय,विशुध धर्म,विशुध रक्त,विशुध भाषा और विशुध रंग के वर्चस्व की नरसंहारी संस्कृति के तहत।


कभी किसी पवित्र गाय का अता पता चलेगा नहीं और चला तो धर्म और मनुस्मृति अनुशासन के राजकाज के तहत गोवध निषिद्ध है।नरसंहार वैदिकी हिंसा है।


फिरभी सच आखिर सच है।

सच नंगा उजागर है और हम सच के मुखातिब है लेकिन हम मनुष्य के नाम अद्भुत रीढ़हीन प्रजाति हैं,जिसके रगों में आत्मध्वंस का उबाल तो समुंदर की मौजें हैं लेकिन जिनकी आंखें मरी हुई मछलियों की सड़ांध है,जहां बदलाव के कोई ख्वाब हैं ही नहीं।


हम जड़ों से कटे लोग हैं जिनके न हाथ हैं और न पांव ,न दिल हैं और न दिमाग हैं,हम तंत्र के कलपुर्जे हैं,डिफाल्टेड हैं हमारे आचरण और हम वजूद के तौर पर बायोमेट्रिक नंबर हैं,जो गोत्र,जाति,धर्म नस्ल,भाषा,रंग,क्षेत्र नजाने कितने किस्म के वायरल से आक्रांत हैं।


न सच का दोष है और न सच उजागर करने वालों का दोष है कि हम वैसे नागरिक हैं,जिन्हें अपने वजूद,अपने हक हकूक के बारे में कुछ भी नहीं मालूम है।


मालूम है भी तो हम लड़ने के लिए तैयार है नहीं क्योंकि जो आग कहीं हमारे दिलो दिमाग में होनी चाहिए थी ,वह है नही और हर गुरुजी ताराचंद्र त्रिपाठी नहीं हैं कि आग कहीं सुलगी हो तो उस आग की पल पल हिफाजत भी करें।बूझने ही न दें।


न सच का दोष है और न सच उजागर करने वालों का दोष है कि हम वैसे नागरिक हैं,जिनकी पहचान है,क्रयशक्ति है,तकनीक है,डिग्रियां हैं,अंध भक्ति है,लेकिन न दिल है और न दिमाग है।


न हमारी कोई आत्मा है और न हमारी कोई मनुष्यता है।


हम रक्त मांस के पुतले रोबोटिक हैं और रोबोट नियंत्रित है जो दिल्ली नाम की एक राजधानी के चंद शातिर सौदागरों के मुर्दा गुलाम हैं।


जिन्हें जरुरत के मुताबिक वे मार देते हैं और फिर जिंदा भा कर देते हैं।हमारा सारा कारोबार,हमारा सारा वजूद,हमारा जीवन यापन, हमारा प्रेम,हमारा आक्रोश,हमारा उत्सव सबकुछ उन्हींके मर्जी मुताबिक है।हमारी गुलाम जिंदाबाद और लोकतंत्र गुलामतंत्र है।


हम अतीत में भी कुछ नहीं कर सके  हैं और आगे भी हम किसी का कुछ उखाड़ नहीं सकेंगे।


कहने को हम आजाद है और हर गुलाम की यही खुशफहमी है और आजादी दरअसल हमारे लिए गुलामी की इमारत है बुलंद,जिसमें पुश्त दौर पुश्त हम खुशी खुशी मरते खपते रहेंगे।


सत्तर साल का इतिहास जांच लें,बाकी तो हम जानते भी नहीं हैं।न जानने की कोशिश करेंगे।हम इतिहास लिखने वाले लोग है और इतिहास बनाने या इतिहास से सीखने का अदब नहीं है।


हम आपस में चाहे जितनी मारामारी कर लें,ग्लोबल सत्ता,ग्लोबल मुक्तबाजार के खिलाफ चूं तक करने की न हमारी कोई नीयत है और न औकात है और साथ साथ हाथ में हाथ खड़े होने की तमीज है हमें।हमारा न कोई विवेक है और न साहस है।


जाहिर है कि सच का भंडाफोड़ हो जाने की वजह से ऐहतियाती बंदोबस्त के तहत सरकार ने पनामा पेपर्स के खुलासे पर नजर रखने के लिए विभिन्‍न विभागों का एक समूह गठित किया है।


गौरतलब है कि सरकार ने कहा है कि पनामा पेपर्स में जिन अवैध खाताधारकों का खुलासा हुआ है उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जायेगी।


गौरतलब है कि इंडियन एक्सप्रेस  में छपी खबर में उन पांच सौ प्रमुख भारतीयों की गोप‍नीय सूची का उल्‍लेख किया गया है जिन्होंने कर चोरी के पनाहगाह माने जाने वाले पनामा में अवैध रूप से धन जमा किया है।


अब जनता ताकि गोलबंद न हो,जंगल में कहीं भड़क न जाये दावानल और अबाध कालाधन का प्रवाह और नरसंहारी राजकाज जारी रहे,मनुस्मृति रंगभेदी राजकाज जारी रहे ,इसलिए एहतियात के तौर पर सरकार के गठित समूह में अन्य लोगों के अलावा केंद्रीय प्रत्‍यक्ष कर बोर्ड, सीबीडीटी, वित्तीय जांच इकाई एफआईयू और भारतीय रिजर्व बैंक के अधिकारी शामिल हैं।


शुक्रिया अदा कीजिये कि वित्त मंत्री अरूण जेटली ने नई दिल्ली में पत्रकारों से बातचीत में कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उनसे कहा है कि मामले की जांच की जानी चाहिए।हो बी जायेगी जांच और नतीजा वहीं चूं चूं का मुरब्बा।


जैसे पहले के तमाम घोटालों और नरसंहर कांडों की जांच का इतिहास है,जैसे कि कानून का राज है कि अपराधी जब चाहे तब कानून बदल लें क्योंकि अपराधियों ने बाकायदा लोकतंत्र की हत्या कर दी है।संविधान की हत्या कर दी है और भारतमाता की जय कहते हुएवे राष्ट्र का गला रेंत रहे हैं और हमें वैसे ही मजा आ रहा है जैसे मोबाइल पर व्हट्सअप पर भेजे गये निषिद्ध दृश्य से बिस्तर गर्म हो जाने का अहसास हमें होता है।


सच यह है कि जैसे हम जल जंगल जमीन से बेदखल हैं,ठीक उसीतरह हम कानून के राज,लोकतंत्र,संविधान,संसद और राष्ट्र से बेदखल दिवालिया नागरिक हैं।


माननीय प्रधानमंत्री जी ने स्‍वयं इसका आग्रह किया है कि इस पर पूर्ण रूप से सरकार कार्यवाही करे और जो-जो इसमें से अवैध माने जायेंगे उसके खिलाफ कानून के तहत जो भी कार्यवाही हो सकती है अलग-अलग विभाग उस संबंध में करने वाले हैं।


No holy cows for us: Jaitley

No holy cows for us: Jaitley

"The Government is clear in its resolve is what I will say. There are no holy cows for us. Action will be taken against whoever is found to be in default," Arun Jaitley told Ritu Sarin, reacting to The Indian Express story. The leak of over 11 million documents of Panama law firm features over 500 Indians linked to offshore firms, finds an 8-month investigation by a team of The Indian Express led by Ritu Sarin, Executive Editor (News & Investigations).The List, Part 1: Clients who knocked on a Panama doorThe List, Part 2: Politician, industrialist, jewellerHow Mossack Fonseca stonewalled DelhiHSBC, UBS, Credit Suisse helped wealthy hide assets


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