विस्फोटक हो रही है हल्द्वानी की आबादी
लेखक : डॉ. बी.आर. पंत
कुमाऊँ का प्रवेश द्वार हल्द्वानी आबादी की दृष्टि से देहरादून तथा हरिद्वार के बाद उत्तराखण्ड का तीसरे नम्बर का शहर है, प्रदेश के छः प्रथम श्रेणी के शहरों में से एक। कुमाऊँ के पहाड़ी इलाकों के लोगों के शीतकालीन प्रवास से ही इस नगर की बसासत प्रारम्भ हुई। हल्दू के पेड़ों की बहुताहत के कारण ही इसे हल्द्वानी, हल्दू-वणी (वन), के नाम से पहचाना गया। 1815 में अंग्रेजों के आगमन के बाद यह 'हल्द्वाणि' से हल्द्वानी हो गया। वर्ष 1884 में हल्द्वानी में रेल के आगमन के साथ इसका विस्तार काठगोदाम तक पहुँचा। रेल तथा रोड के दोनों तरफ बसासतें बढ़ने लगीं। 1885 में यह टाऊन एरिया घोषित हुआ तथा फरवरी 1887 में यहाँ नगरपालिका गठित कर दी गई। पूर्व की ओर गौला के कारण इसके फैलने में अवरोध आया, लेकिन शेष तीनों दिशाओं में यह फैलता चला गया। वर्ष 1987 तथा 2003 के शासनादेशों के माध्यम से शहर से सटे हुए 56 गाँवों को सम्मिलित कर यह विनियमित क्षेत्र घाषित हुआ।
वर्तमान नगर निगम पहले की नगरपालिका परिषद तथा विनियमित का क्षेत्रफल लगभग 6,374 हेक्टेयर है। 1901 में हल्द्वानी नगरीय क्षेत्र की कुल आबादी 7,498 थी, जो 1911 में 1.43 प्रतिशत बढ़कर 7605 गई। 1911 से 1921 के दस वर्षों में यहाँ 12.11 प्रतिशत, 1931 में 32.24 प्रतिशत, 1941 में 59.24, 1951 में 39.43, 1961 में 39.73, 1971 में 37.27, 1981 में 48.07, 1991 में 37.79, 2001 में 22.48 तथा 2011 में 20.98 प्रतिशत की वृद्धि दर दर्ज की गई। इन आँकड़ों के अनुसार 1931 से 1981 के पचास सालों में हल्द्वानी नगरपालिका क्षेत्र में सर्वाधिक जन वृद्धि, कुल मिला कर 224 प्रतिशत, दर्ज की गई है। थोड़ा गहराई से देखने पर यह भी स्पष्ट होता है कि 25 वार्ड वाले नगरपालिका सीमा क्षेत्र में भूमि उपलब्ध होने तक वृद्धि दर बहुत अधिक रही, लेकिन जब खाली भूमि कम हो गयी और जमीन की कीमतों में वृद्धि हुई तो जनसंख्या वृद्धि दर गत 20 सालों (1991 से 2001 तथा 2001 से 2011) में औसत से कम रही।
लेकिन ये हल्द्वानी नगर पालिका परिषद के भीतर के आँकड़े हैं। नगर से लगे गाँवों में बाहर से आकर बसना बदस्तूर जारी है। नगरपालिका परिषद के बाहर हल्द्वानी विकास खण्ड के अन्तर्गत 14 क्षेत्रों को नगरीय इकाई का दर्जा दिया गया है। हल्द्वानी (म्यूनिसपल बोर्ड) की आबादी 2011 में 1,56,078 व्यक्ति है। 2001 से 2011 के बीच यह 20.98 प्रतिशत बढ़ी, जबकि हल्द्वानी नगरपालिका परिषद तथा आउटग्रोथ की आबादी 2001 से 2011 के बीच 26.79 प्रतिशत बढ़ कर 2011 में 2,01,461 हो गई। हल्द्धानी शहर की बाहरी सीमाओं पर 11 वार्ड हैं, जिनकी आबादी 2011 में 88,805 व्यक्ति है। इन क्षेत्रों में 197 प्रतिशत की वृद्धि दिखाई देती है, क्योंकि 2001 में यह आबादी 29,881 व्यक्ति ही थी।
नगरपालिका क्षेत्र में 2001 में 23,083 परिवार थे जो 31.61 प्रतिशत की दर से बढ़ कर 2011 में 30,379 हो गये। इस दौरान परिवारो में सर्वाधिक, 133.11 प्रतिशत वृद्धि वार्ड संख्या 14 इन्द्रानगर पश्चिमी में और 72.21 प्रतिशत राजेन्द्रनगर वार्ड न. 2 में हुई है। वार्ड न. 4 टनकपुर रोड में 43.93 प्रतिशत, वार्ड न0 24 नई बस्ती किदवई नगर में 35.08 प्रतिशत, वार्ड न. 12 पर्वतीय मोहल्ला में 26.78 प्रतिशत, वार्ड न. 3 तल्ली बमौरी में 26.59 प्रतिशत, वार्ड संख्या 21 इन्द्रानगर पूवीॅ में 24.68 प्रतिशत तथा वार्ड संख्या 05 रानीबाग-काठगोदाम 21.12 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गई। किन्तु एक रोचक तथ्य यह भी है कि हल्द्वानी नगर में 6 वार्ड ऐसे भी हैं, जिनकी आबादी पिछले दस सालों में घट गई। सर्वाधिक 18.23 प्रतिशत जनसंख्या वार्ड नं. 8 बाजार क्षेत्र की घटी है। वार्ड न. 10 तल्ला गोरखपुर में 2.13 प्रतिशत, वार्ड नं. 23 वनभूलपुरा गली न. 1 से 7 में 2.82 प्रतिशत, वार्ड सं. 15 शिवपुरी-भवानीगंज में 4.91प्रतिशत, वार्ड संख्या 11 भोटिया पड़ाव-गोरखपुर में 5.37 प्रतिशत तथा वार्ड नं. 17 रामपुर रोड में 6.65 प्रतिशत आबादी कम हुई। इतनी तेजी से बढ़ते नगर में इस तरह जनसंख्या कम होने का कारण यही माना जा सकता है कि पहले ये वार्ड बहुत घने बसे थे। मगर यहाँ जमीन का व्यावसायिक महत्व बढ़ जाने तथा लोगों की बेहतर ढंग से रहने आकांक्षा के कारण यहाँ से लोग शहर के बाहरी खुले क्षेत्रों में रहने के लिये चले गये। कुछ लोगों ने पुरानी, किराये की सम्पत्ति पर से अधिकार छोड़ कर अन्यत्र अपने आवास बना लिये।
हल्द्वानी शहर पर केवल नगरपालिका क्षेत्र का ही नहीं, बल्कि पूरे विकास खण्ड की आबादी का दबाव बना रहता है। तथाकथित ग्रामीण क्षेत्र अब उस रूप में ग्रामीण भी नहीं है। वहाँ छोटी-मोटी बाजार नहीं, भव्य व्यापारिक प्रतिष्ठान बन गये हैं। इस ग्रामीण हल्द्वानी में 2001-2011 के बीच लगभग 24 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। हल्द्वानी नगपालिका परिषद या वर्तमान नगर निगम के बाहर दमुवाढूँगा बन्दोबस्ती, कोर्ता (चानमारी महल), ब्यूरा, बमौरी मल्ली, बमौरी तल्ला बन्दोबस्ती, बमौरी तल्ली, मुखानी, मानपुर उत्तर, हरीपुर सूखा, हल्द्वानी तल्ली, गौजाजाली उत्तर, कुसुमखेडा तथा बिठौरिया नं. 1 की बढ़ कर 88,808 व्यक्ति हो गई है। 2011 में फतेहपुर रेंज दमुवाढूँगा को भी नगरीय क्षेत्र में सम्मिलित किया गया है। इस नगरीय आबादी का दबाव भी शहरी सुविधाओं पर ही पड़ता है। इन शहरी क्षेत्रों में मुख्य शहर को छोड़ कर 2001 से 2011 के बीच 211.58 प्रतिशत परिवारों की वृद्धि हुई है तथा आबादी में 197.2 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। सबसे अधिक बढ़ोतरी, 357.91 प्रतिशत, गौजाजाली उत्तर (बरेली रोड) में दर्ज की गई है, जबकि 351.46 प्रतिशत बिठौरिया नं. एक में, 346.35 प्रतिशत हरिपुर सूखा में, 203 प्रतिशत दमुवाढूँगा बन्दोबस्ती में, 188 प्रतिशत मुखानी में, 139 प्रतिशत ब्यूरा में, 115 प्रतिशत कुसुमखेड़ा तथा 100 प्रतिशत हल्द्वानी तल्ली में दर्ज की गई है। इन शहरी क्षेत्रों में कोर्ता (चानमारी मोहल्ला) ही एक ऐसी नगर इकाई है, जहाँ की आबादी 2001-2011 के बीच 42.73 प्रतिशत घटी है।
हल्द्वानी शहरी क्षेत्रों से लगे रामपुर रोड में देवलचैड़-फूलचैड़, कालाढूँगी रोड में शिक्षा नगर-भाखड़ा नदी, बरेली रोड में धौलाखेड़ा-गौरापड़ाव तक के लगभग 115 गाँवों की आबादी का अध्ययन करने से मालूम होता है कि 2001 में 7,371 परिवारों में 50,334 लोग रहते थे जो 2011 में बढ़कर 16,845 परिवारों में 80,081 हो गई है। गाँवों में सबसे अघिक आबादी, 322 प्रतिशत करायलपुर चतुरसिंह गाँव की बढ़ी है। गोविन्दपुर गर्वाल (305.26 प्रतिशत), लालपुर नायक (286.96 प्रतिशत), छड़ायल नायक (282.8 प्रतिशत), भगवानपुर तल्ला (269.44 प्रतिशत), जयदेवपुर (252.88 प्रतिशत) में भी वृद्धि दर्ज की गई है। 17 गाँवों में 100 से 186.96 प्रतिशत तक की वृद्धि तो देखी गई है और 27 गाँवों में 50 से 100 प्रतिशत तक की।
निष्कर्ष के रूप में यह कहा जा सकता है कि कुमाऊँ के पहाड़ी क्षेत्रों में शिक्षा-स्वास्थ्य जैसी जरूरी सुविधाओं के विकसित न हो पाने से तथा रोजगार के लिये पहाड़ों तथा देश के अन्य क्षेत्रों से भारी संख्या में लोग हल्द्वानी आ कर बसे हैं और लगातार बस रहे हैं। मुख्य शहर में बसने की स्थितियाँ न बची होने के कारण इनमें से अधिकांश ने शहर से जुड़े गाँवों में ही अपने आवास बना लिये हैं। मगर उनका दबाव पूरी तरह से मुख्य हल्द्वानी शहर की आबादी के लिये स्थापित सुविधाओं पर ही पड़ता है। हल्द्वानी बहुत पहले से कुमाऊँ की सबसे बड़ी मण्डी रही है। अब तो यह एक बड़ा बाजार तथा शिक्षा और स्वास्थ्य का केन्द्र भी बन गया है। अतः एक बड़ी सचल (फ्लोटिंग) आबादी भी यहाँ आती-जाती रहती है। गोला नदी में खनन कार्य होने के दौरान तो भारी संख्या में श्रमिक तबके के लोग हल्द्वानी में रहने आते हैं। इसलिये हल्द्वानी नगर में पानी, बिजली, गैस, सहकारी वितरण, सड़के, रास्ते और कानून-व्यवस्था की समस्या हमेशा बनी रहती है।
यह ध्यान रखना चाहिये कि इन सब कारणों से हल्द्वानी की जनसंख्या लगभग चार लाख हो जाती है। इसी दृष्टि से उत्तराखंड के इस महानगर के योजनाबद्ध विकास की जरूरत है। अन्यथा अव्यवस्थित हो कर न यह शहर रह पायेगा और न गाँव। यह एक स्लम जैसा हो जायेगा। अभी ही कई इलाकों में ऐसा दिखाई देने लगा है। इसके साथ ही आपराधिक प्रवृतियाँ, जो यहाँ पर लगातार बढ़ रही हैं, पर भी तभी अंकुश लगाया जा सकेगा जब यहाँ का नियोजित विकास होगा। नहीं तो जिस तरह एक भगदड़ बसने की मची, तो दूसरी छोड़ कर भागने की भी मच सकती है।
मगर यह कहानी सिर्फ हल्द्वानी की ही नहीं, उत्तराखंड के अनेक नगरों की है। हल्द्वानी तो एक उदाहरण मात्र हो सकता है।
http://www.nainitalsamachar.com/explosive-population-growth-in-haldwani/
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