My father Pulin Babu lived and died for Indigenous Aboriginal Black Untouchables. His Life and Time Covered Great Indian Holocaust of Partition and the Plight of Refugees in India. Which Continues as continues the Manusmriti Apartheid Rule in the Divided bleeding Geopolitics. Whatever I stumbled to know about this span, I present you. many things are UNKNOWN to me. Pl contribute. Palash Biswas
Saturday, September 27, 2025
कहां कहां हैं बंगाली विस्थापित?
बंगाली विस्थापित समाज में मातृभाषा, संस्कृति और विरासत के नाम सिर्फ दुर्गा पूजा शेष है।
बंगाल में तो खराब मौसम के बावजूद कमर भर पानी में मंडप दर्शन जारी है।पूजा के दौरान निम्न दबाव का खतरा घना हो रहा है।आंध्र, ओडिशा, छत्तीसगढ़ जहां भी आंधी तूफान आएगा, वहां बड़ी संख्या में विस्थापित समाज है।
बंगाल के इतिहास भूगोल से बहिष्कृत देशभर में बिखरे विस्थापित बंगाली समाज में दशहरा तक बंगाली बने रहने का मौका है।
त्रिपुरा, असम, अंडमान निकोबार द्वीप समूह, बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली और मुंबई के अलावा बंगाल से बाहर बहिष्कृत बंगालियों की सबसे बड़ी संख्या दंडकारण्य प्रोजेक्ट के अंतर्गत ओडिशा, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश, तेलंगाना में हैं।
ओडिशा के मलकानगिरी के माओवादी पहाड़ और जंगल के इलाके में दो सौ पचास के करीब रिफ्यूजी कॉलोनियों हैं। इससे लगे छत्तीसगढ़ के पखांजूर आदिवासी इलाके में दंतेवाड़ा और महाराष्ट्र के गढ़चिरौली से लगे छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले में सौ कालोनियां हैं। ओडिशा के नवरंगपुर जिले के उमरकोट में नब्बे कॉलोनियां हैं। ओडिशा में संबलपुर, पुरी और केंद्रपाड़ा, बालेश्वर में भी बड़ी संख्या में विस्थापित आबादी है बंगालियों की। महाराष्ट्र के गोंदिया, चंद्रपुर और गढ़ चिरौली जिलों में भी बड़ी आबादी है।तेलंगाना के कागजनगर, मध्यप्रदेश के बैतूल और कर्नाटक में भी बंगाली विस्थापितों की बड़ी आबादी है।
भारत में कर्नाटक शायद एकमात्र राज्य है,जहां बांग्ला द्वितीय राजभाषा है।बाकी त्रिपुरा और असम के कछाड़ को छोड़कर बंगाल से बाहर किसी राज्य में विस्थापित बंगालियों को मातृभाषा बांग्ला पढ़ने, लिखने, बोलने और सीखने का मौका नहीं है।
दुर्गा महिमा यह है कि दुर्गा पूजा के दौरान विस्थापित भी बंगाली बन जाते है।
इसलिए दुर्गा पूजा के फोटो और वीडियो शेयर करना जरूरी है ताकि कम से कम यह पता चले कि खान खान हम जिंदा हैं।
छत्तीसगढ़ के विस्थापित बंगाली पखांजूर के गांवों पर रील खूब बना रहे हैं।
क्या हमें अपने गांवों से मुहब्बत नहीं है?
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