My father Pulin Babu lived and died for Indigenous Aboriginal Black Untouchables. His Life and Time Covered Great Indian Holocaust of Partition and the Plight of Refugees in India. Which Continues as continues the Manusmriti Apartheid Rule in the Divided bleeding Geopolitics. Whatever I stumbled to know about this span, I present you. many things are UNKNOWN to me. Pl contribute. Palash Biswas
Saturday, September 20, 2025
भारत विभाजन के शिकार भारतीय नागरिकों को विदेशी किसने बनाया?
भारत विभाजन के कारण पूर्वी और पश्चिम पाकिस्तान से आए शरणार्थियों को कानूनी तौर पर भारत सरकार ने विस्थापित माना है। क्योंकि वे अखंड भारत के भरिए नागरिक हैं और अपने ही देश के दूसरे हिस्सों में आए हैं विस्थापित होकर।जनसंख्या स्थानांतरण के तहत वे भारत आए हैं,इसलिए वे विस्थापित हैं,शरणार्थी नहीं।
इस हिसाब से वे भारतीय नागरिक हैं।तो फिर भारत विभाजन के 78 साल बाद भी उनके लिए कोई नीति क्यों नहीं है? कोई कानूनी ढांचा क्यों नहीं है? क्यों उन्हें अस्थाई व्यवस्था के तहत सरकारी और प्रशासनिक आदेशों के तहत नागरिक सुविधाएं दी जाती है? जबकि 1955 के नागरिकता कानून के तहत पाकिस्तान से भारत आए विस्थापितों को नागरिक माना गया है। इस कानून को बदलकर उन्हें घुसपैठी किसने बनाया?
भारत में कोई शरणार्थी नीति नहीं है। विभाजन पीड़ित बंगाल और पंजाब के शरणार्थी भी विदेशी कानून के दायरे में हैं। लेकिन कानूनी तौर पर ये विस्थापित हैं।शरणार्थियों के कानूनी अधिकार होते हैं, लेकिन इन्हें शरणार्थी नहीं माना गया।आजादी के बाद से अब तक सरकारी और प्रशासनिक आदेशों के तहत इन्हें पुनर्वास आदि कुछ सुविधाएं जरूर दी गई हैं, लेकिन इन्हें कोई कानूनी अधिकार नहीं दिया गया है।
1947 में अपनी स्वतंत्रता के बाद से, भारत ने पड़ोसी देशों से शरणार्थियों के विभिन्न समूहों को स्वीकार किया है, जिनमें पूर्व ब्रिटिश भारतीय क्षेत्रों से आए विभाजन शरणार्थी शामिल हैं जो अब पाकिस्तान और बांग्लादेश का गठन करते हैं, 1959 में आए तिब्बती शरणार्थी, 1960 के दशक की शुरुआत में वर्तमान बांग्लादेश से आए चकमा शरणार्थी, 1965 और 1971 में अन्य बांग्लादेशी शरणार्थी, 1980 के दशक से श्रीलंकाई तमिल शरणार्थी और हाल ही में म्यांमार से आए रोहिंग्या शरणार्थी । [ 1 ] 1992 में, भारत को आठ देशों के 400,000 शरणार्थियों की मेजबानी करते देखा गया था। [ 2 ] केंद्रीय गृह मंत्रालय के रिकॉर्ड के अनुसार , 1 जनवरी, 2021 तक, तमिलनाडु में 108 शरणार्थी शिविरों में 58,843 श्रीलंकाई शरणार्थी और ओडिशा में 54 शरणार्थी शिविर रह रहे थे।
भारत में कोई राष्ट्रीय शरणार्थी नीति या कानून नहीं है। अस्थाई व्यवस्था मानवीय आधार पर हैं। लेकिन भारत ने तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों के तहत द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों का उपयोग करते हुए पड़ोसी देशों से शरणार्थियों को हमेशा स्वीकार किया है : शरणार्थियों का मानवीय स्वागत किया जाएगा, शरणार्थी मुद्दा एक द्विपक्षीय मुद्दा है और सामान्य स्थिति लौटने पर शरणार्थियों को अपने वतन लौट जाना चाहिए। [ 5 ] औपचारिक कानून की कमी के बावजूद, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार द्वारा शरणार्थी संरक्षण के दायित्व को बनाए रखने के लिए मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा के अनुच्छेद 14 और नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय वाचा के अनुच्छेद 13 का उपयोग किया है । [ 6 ]
भारत 1951 के शरणार्थी सम्मेलन और उसके 1967 के प्रोटोकॉल का सदस्य नहीं है , न ही उसने शरणार्थियों से व्यापक रूप से निपटने के लिए कोई राष्ट्रीय कानून बनाया है। इसके बजाय, वह शरणार्थियों के साथ मुख्यतः राजनीतिक और प्रशासनिक स्तर पर व्यवहार करता है, और उनकी स्थिति और ज़रूरतों से निपटने के लिए केवल अस्थायी व्यवस्थाएँ ही मौजूद हैं। इसलिए, शरणार्थियों की कानूनी स्थिति उन सामान्य विदेशियों से अलग नहीं है जिनकी उपस्थिति 1946 के विदेशी अधिनियम द्वारा नियंत्रित होती है ।
https://en.m.wikipedia.org/wiki/Refugees_in_India
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