My father Pulin Babu lived and died for Indigenous Aboriginal Black Untouchables. His Life and Time Covered Great Indian Holocaust of Partition and the Plight of Refugees in India. Which Continues as continues the Manusmriti Apartheid Rule in the Divided bleeding Geopolitics. Whatever I stumbled to know about this span, I present you. many things are UNKNOWN to me. Pl contribute. Palash Biswas
Friday, September 12, 2025
लिखने बोलने के लिए रीढ़ और जिगर चाहिए
प्रेरणा अंशु के अक्टूबर अंक के लिए आपदा के शिकंजे में कैद राज्यों खासतौर पर पंजाब,हरियाणा,हिमाचल, उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश और कश्मीर से जमीनी रपट,कथा रिपोर्ताज चाहिए।
जो लोग नेपाल के बारे में बेहतर जानते हैं,वे लोग भी लिखें। अन्य सभी विधाओं में रचनाएं आमंत्रित हैं।
लघु पत्र पत्रिकाओं के प्रचार प्रसार में डाक अव्यवस्था का भारी असर हुआ है। डिजिटल परेशान की समस्या सरकारी हस्तक्षेप के कारण बेहद कठिन है।आर्थिक समस्याएं अपनी जगह है। प्रकाशन लागत के साथ डाक खर्च का बढ़ता हुआ खर्च सरदर्द बना हुआ है।
इस पर तुर्रा यह की पढ़े लिखे लोग अवसरवादी चुप्पी ओढ़कर शुतुरमुर्ग बन गए हैं। विशेषज्ञ, एनजीओ से जुड़े लोग और वैचारिक लोगों के साथ साथ स्थापित लेखक पत्रकार सच कहने लिखने से या तो हिचकिचाते हैं या लघु पत्र पत्रिकाओं के लिए लिखना नहीं चाहते।उनसे लिखने का अनुरोध करने का कोई असर नहीं होता। यह हमारे लिए सबसे बड़ी समस्या है कि जनता के मुद्दों पर सामग्री का बहुत ज्यादा अभाव है और हम जनता के मुद्दों पर नियमित पत्रिका निकालते हैं।
बनारस और काशी जैसे प्राचीन नगर जो साहित्यिक सांस्कृतिक केंद्र भी हैं, आपदा के शिकंजे में हैं और वहां भी सन्नाटा पसरा हुआ है। नए लोगों पर भी बाजार का शिकंजा है।
आप अगर हमारे साथ हैं तो इन मुद्दों पर अपनी अप्रकाशित रचना नाम,पूरा पता, पिनकोड और मोबाइल नंबर के साथ हमें जल्द से जल्द मेल करें।हमें आपका इंतजार है।
सच लिखने बोलने के लिए विशेषज्ञता की जरूरत नहीं होती।एक अदद रीढ़ और एक अदद कलेजा चाहिए।
मेरे पिता पुलिन बाबू कहते थे कि जनता की आवाज उठाने के लिए किसी का इंतजार नहीं करना चाहिए।यह हमारे सामाजिक जिम्मेदारी है।जानकारी जुटाई जा सकती है और विशेषज्ञता विशेषज्ञों की बपौती थोड़ी है। सबसे जरूरी है पक्का इरादा और हर सूरत में पीड़ित जनता के साथ खड़े होने का जज्बा।
उन्होंने बिना डिजिटल हुए आजीवन संघर्ष किया। आज के जमाने में सारी दुनिया मुट्ठी में है।सिर्फ रीढ़ और कलेजा बेहद कम है।
आप हमें गलत साबित करें तो बहुत खुशी होगी।
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