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छत्तीसगढ़ प्रान्त के सुकमा जिले का कोंड्रे गाँव . पहाड़ी की तलहटी में बसा एक सुरम्य ग्राम .गाँव के किनारे नदी बहती थी . गाँव में माड़ा नामक एक नवयुवक रहता था . माड़ा हमेशा हंसता रहने वाला नौजवान था . माँ बाप की आँख का तारा , पूरे गाँव का दुलारा .
माड़ा की आँख पड़ोस के गाँव की जमली से टकरा गई . दोनों उस बार मेले में रात भर नाचे . माड़ा के पिता जमली के पिता से मिलने गये और दोनों ने सगा बनने का फ़ैसला किया . आस पास के गाँव के सभी लड़के लड़कियाँ अपने ढोल लेकर आये खूब नाचे और माड़ा और जमली एक हो गये .
गर्मियां आयीं .जंगल विभाग ने तेंदू पत्ता खरीदने का फड़ खोला . गांव के सभी लोग तेंदू के पौधों से पत्ते तोड़ कर घर लाते उनकी गड्डियां बनाते .फिर उन्हें बेचने जाते . कई बार लोगों को सांप काट लेता था . गर्मी में ज़मीन तेज गर्म हो जाती . पैर जलते थे . लेकिन पत्ते तोडना भी ज़रूरी है . शादी में कर्ज भी हो गया था .वह भी चुकाना था .पचास पत्ते की एक गड्डी का एक रुपया दस पैसा मिलता है .
कुछ दिनों के बाद खबर आयी कि तेंदू पत्ते की नीलामी में सरकार को जो फायदा हुआ है वह सरकार की तरफ से आदिवासियों को बोनस के रूप में मिलेगा . सभी को सुकमा शहर के फारेस्ट विभाग के आफिस से चेक मिलेगा . माड़ा ने जमली से कहा मैं भी जाकर देखता हूं वन विभाग के आफिस में . अगर बोनस मिल गया तो इस बार तुझे पायल लाकर दूंगा . जमली ने जल्दी से माड़ा के लिये भात और सुखाये हुए कुक ( जंगली मशरूम ) की सब्जी बना दी . माड़ा को जाते हुए जमली दूर तक देखती रही .
माड़ा जब सुकमा शहर पहुंचा तब दिन के बारह बज चुके थे . माड़ा ने सोचा ज़ल्दी काम हो गया तो आज शाम ही गाँव पहुँच जाऊँगा . तीस किलोमीटर होता ही कितना है . जंगल जंगल पहुँच जाऊँगा रात होने से पहले . कुछ दिनों के बाद पैसा भी मिल जाएगा . जमली को लेकर शहर आऊँगा फिर उसे पायल दिलवाऊंगा . जमली जब पायल पहन कर उसकी तरफ प्यार से देखेगी तो ...
तभी एक कड़कदार आवाज़ ने उसका ध्यान खींचा ' ए इधर आ बे ' माड़ा ने देखा कुछ पायका (शहरी / पुलिस ) लोग उसे बुला रहे थे . ओह यह तो सीआरपीएफ का कैम्प है . माड़ा उन लोगों के पास चला गया . एक सिपाही ने पूछा क्या नाम है बे तेरा ? माड़ा ने अपना नाम बता दिया . दूसरे सिपाही ने पूछा गाँव कौन सा है बे तेरा ? माड़ा ने गाँव का नाम बताया 'जी कोंड्रे '. तीसरे सिपाही ने पूछा इधर क्या कर रहा है बे ? माड़ा ने कहा जी मैं फारेस्ट आफिस में एक काम से आया हूं. सिपाही हंसने लगे . एक ने माड़ा की पीठ पर जोर से डंडा मारा और कड़क कर बोला साले सीधे से बता हमारा कैम्प उड़ाना चाहते हो ना तुम लोग . माड़ा कुछ समझ नहीं पाया . चुप रहा . एक सिपाही बोला ऐसे नहीं कबूलेगा अंदर ले चलो साले को . ये साले गोंड लोग बड़े बदमाश होते हैं . मार पड़ेगी तो साला सब कबूल देगा .
माड़ा हाथ जोड़ने लगा . साहब मुझे जाने दो मैंने कुछ नहीं किया . लेकिन सिपाहियों ने माड़ा को बुरी तरह मारना शुरू कर दिया . माड़ा ज़मीन पर गिर गया . दो सिपाहियों ने माड़ा की एक एक टांग पकड ली और मरे हुए सूअर की तरह घसीटते हुए अपने कैम्प के भीतर ले गये .
माड़ा की लूंगी खुल कर अलग पड़ी थी . सिपाहियों ने माड़ा की लूंगी से उसके हाथ पीछे बाँध दिये . दो दिन तक माड़ा इसी हाल में भूखा प्यासा पड़ा रहा . तीसरे दिन शाम को सभी सिपाही दारू के नशे में धुत्त थे . एक सिपाही ने कहा ऐसे नहीं कबूलेगा पेट्रोल लाओ . चार सिपाही माड़ा के हाथ पैरों पर खड़े हो गये . एक सिपाही ने माड़ा के गुदा में पेट्रोल डाल दिया . माड़ा बुरी तरह तड़पने लगा . सिपाही हंस रहे थे . माड़ा तीर लगे किसी जंगली जानवर की चिल्ला रहा था . लेकिन कौन सुनता . ऐसी आवाजें तो इस कैम्प से रोज ही आती थीं .
एक सिपाही ने माड़ा की हालत देख कर कहा 'देखो अब असली मज़ा मैं दिखाता हूं ' . और सिपाही ने नग्न तड़प रहे माड़ा के लिंग पर पेट्रोल डाल दिया . माड़ा का शरीर दर्द के कारण ऐंठने लगा . तभी एक सिपाही ने मादा के लिंग पर माचिस की एक तीली जला कर फेंक दी . माड़ा का आधा शरीर जल रहा था . सारे सिपाही चारों तरफ खड़े होकर काफी देर तक हंसते रहे . फिर एक सिपाही ने अपनी कमर से एक छुरा निकाला और माड़ा का लिंग काट दिया . . माड़ा जोर से डकराया और फडफडा कर शांत हो गया .
अगले दिन सिपाहियों ने माड़ा का काटा हुआ लिंग माड़ा की कमर से बाँध दिया . सीआरपीएफ वाले माड़ा की लाश को पड़ोस में बने पुलिस थाने में ले गये माड़ा की लूंगी माड़ा की गर्दन से बाँध दी गई .लूंगी का दूसरा सिरा खिड़की से बाँध दिया गया . इसके बाद स्थानीय पत्रकारों को बुलाया गया . पुलिस ने पत्रकारों से कहा कि हमने पूछताछ के लिये इस व्यक्ति को आज ही थाने बुलाया था . लेकिन इसने अपनी ही लूंगी से खुद को फांसी लगा ली .
कुछ मानवाधिकारवादी शोर शराबा करने लगे . दो दिन बाद मुख्यमंत्री रमन सिंह शहर में आने वाले थे . सुकमा को जिला बनाने का भव्य समारोह होना था . पुलिस ने सबका मुंह बंद करने के लिये दो सिपाहियों को निलम्बित कर दिया . सिपाही अखबार वालों से बोले कि मारा तो सीआरपीएफ ने और बदनाम हुए हम . खैर कोई बात नहीं कुछ दिनों बाद तो हमें बहाल ही हो जाना है . कौन सा हमें फांसी हो जायेगी ? पत्रकारों ने जिला बनने के कार्यक्रम में मुख्यमंत्री रमन सिंह से इस मामले का ज़िक्र किया रमन सिंह दूसरी तरफ देखने लगे .
माड़ा की लाश जमली को वापिस दे दी गई . जमली ने तेंदू पत्ते बेच कर जो पैसे बचाए थे वो लाश गाड़ी को देने में खर्च हो गये .
जमली से मिलने मैंने एक महिला पत्रकार को उसके गाँव भेजा था .
कहने की ज़रूरत नहीं है कि इस मामले में उसके बाद कुछ नहीं हुआ .
My father Pulin Babu lived and died for Indigenous Aboriginal Black Untouchables. His Life and Time Covered Great Indian Holocaust of Partition and the Plight of Refugees in India. Which Continues as continues the Manusmriti Apartheid Rule in the Divided bleeding Geopolitics. Whatever I stumbled to know about this span, I present you. many things are UNKNOWN to me. Pl contribute. Palash Biswas

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