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Monday, June 10, 2013

कोयलांचल पर राजनीति, माफियावार और माओवाद का साया! हड़ताल का खतरा अभी टला नहीं है, देशभर में बिजली संकट के आसार!

कोयलांचल पर राजनीति, माफियावार और  माओवाद का साया! हड़ताल का खतरा अभी टला नहीं है, देशभर में बिजली संकट के आसार!


य़ह किसी अनुराग कश्यप जैसे फिल्मकार को रोमांचक लग सकता है पर राज्य सरकार और प्रशासन के लिए यह गंभीर चुनौती है और राजनीति से ऊपर उटकर इस खतरे का मुकाबला नहीं किया गया तो कोयलांचल वासियों को खून की नदियों में नहाते रहने का अभ्यास करना होगा।




एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​


बाराबनी में पूर्व माकपा विधायक की हत्या से कोयलांचल में राजनीति,माफिया और माओवाद के शिकंजे में फंसे कोयलांचल की तस्वीर साफ हो गयी है। जिस तरह से मोटरसाइकिल के पीछ बैठी महिला ने अचूक निशाने से माकपा नेता दिलीप सरकार को गोलियों से छलनी कर दिया और जैसे वे वारदात को अंजाम देकर बिनासुराग छोड़े फरार हो गये, यह कोयलांचल के लिए बारुदी सुरंगों के धमाके की चेतावनी है। यह पंचायत चुनाव की हिंसा जैसी मामूली घटना नहीं है और न ही यह मामला सहज माकपा और तृणमूल की प्रतिद्वंद्विता का है। गोली का निशाना दोनों पक्षों के लोग कभी भी बन सकते हैं कोयलांचल में और आम डआदमी एकदम असुरक्षित है।कोयलांचल में जंगी ट्रेड यूनियन झारखंड और बंगाल दोनों राज्यों में समान है। जिस दक्षता से माकपा नेता की हत्या महिला शूटर ने की , वह दक्षता माओवादी कैडर की ही होती है।


माओवादियों ने अभी हत्या की जिम्मेवारी नहीं ली है। लेकिन कोयलांचल में माओवादियों की सक्रियता के सबूत मिले हैं। अगर माओवादियों ने यह हत्या नही की है, तो यह और खतरनाक खबर है क्योंकि कोयलांचल के माफियावार में अभी तक महिला शूटर का कोई रिकार्ड नहीं है। जबकि कोयला हड़ताल की फिर तैयारी है, माओवादी सक्रियता और नये माफिया वार के अंदेशे से दहक रहा है कोयलांचल! य़ह किसी अनुराग कश्यप जैसे फिल्मकार को रोमांचक लग सकता है पर राज्य सरकार और प्रशासन के लिए यह गंभीर चुनौती है और राजनीति से ऊपर उटकर इस खतरे का मुकाबला नहीं किया गया तो कोयलांचल वासियों को खून की नदियों में नहाते रहने का अभ्यास करना होगा।


दूसरी ओर,कोयला यूनियनें विनिवेश के खिलाफ अब भी हड़ताल का दावा कर रही हैं क्योंकि लोसकभा चुनाव के मद्देनजर कोयला राजनीति बेहद तेज हो गयी है। मजदूर नेताओं के बयानों के अलावा कोलगेट पर राजनेताओं की ओर से फिर प्रधानमंत्री के इस्तीफे की माग पर जोर दिये जाने से वित्त मंत्रालय के यूनियनों को मैनेज करने का दावा हवा हवाई हो गया है। केंद्र सरकार अब प्रधानमंत्री की साख बचाने के लिए कोलगेट को हर संभव तरीके से रफा दफा करने लगा है। लगता है कि शेयर बाय बैक और विनिवेश की योजनाएं चुनवी मजबूरी में फिर लटक ही जायेंगी। कुल मिलाकर सार यह है कि कोलइंडिया के लिए हड़ताल का खतरा अभी टला नहीं है।


श्रमिक संगठनों की मांगों पर तत्काल विचार नहीं किया गया, तो कोल इंडिया में एक बार फिर हड़ताल हो सकती है। इससे कोल इंडिया के उत्पादन व प्रेषण की रफ्तार थम सकती है। दूसरी ओर , कोयला आपूर्ति में कमी की वजह से देशबर में बिजली संकट पैदा होने के आसार बन गये हैं। बिजली कंपनियां दाम भी बढ़ाने में लगी है।कोयला मंत्रालय ने जेएसपीएल, मोनेट इस्पात, एनटीपीसी तथा जीवीके पावर समेत 11 कोयला कंपनियों को आवंटित खदानों का विकास समय पर न करने को लेकर आज कारण बताओ नोटिस जारी किया। नोटिस में उनसे उत्पादन में देरी के कारण के बारे में स्पष्टीकरण मांगे गये हैं। ऐसा नहीं करने पर खदानों का आवंटन रद्द किया जा सकता है।भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से  कोयला घोटाले को लेकर इस्तीफा मांगा है । मालूम हो कि कोयला घोटाले की जांच में सीबीआई की स्टेटस रिपोर्ट को सुप्रीम कोर्ट में पेश करने से पहले सरकार ने बदलाव किया था।नरेंद्र मोदी के भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद की दावेदारी तय है। भाजपा अब काग्रेस को इस निर्णायक लड़ाई में कोई रियायत देने के मूड में नहीं है। कोलगेट को लेकर नये सिरे से बवाल पैदा होने की पूरी संभावना है। जिससे कोयला मंत्रालय और वित्त मंत्रालय की योजनाएं धरी की धरी रह सकती है। राजनीतिक दलों से नियंत्रित कोयला य़ूनियनें भी अब खामोश नहीं रहने वाली।कोयला घोटाले की जांच अब पीएमओ तक पहुंच गई है। सीबीआई को पीएमओ के आला अधिकारियों पर इस मामले में शक है। इसलिए अब सीबीआई पीएमओ के आलाधिकारियों से इस मामले में पूछताछ करेगी।


भारत सरकार बिजली कंपनियों को भरी रियायतें देने की नीतियों पर चल रही है , जबकि इन कंपनियों पर लाख करोड़ रुपया अभी बकाया है। जिसकी वसूली में कोलइंडिया को सरकारी मदद मिल नहीं रही है जबकि राज्य सरकारे दनदन बिजली दरें बढडकर इन कंपनियों के मुनाफे में इजाफा कर रही है। राजनीतिक दलों ने अभी इस घोटाले पर कुछ नही कहा है, जाहिर है कि यूनियने भी खामोश हैं।कोयला मंत्रालय राष्ट्रीय कोयला वितरण नीति (एनसीडीपी) में संशोधन कर सकता है बिजली मंत्रालय ने कंपीटिटिव बिडिंग गाइडलाइंस में संशोधन के लिए जारी किया नोट इस प्रस्ताव को जल्द ही आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमेटी के समक्ष रखा जाएगा।इस फैसले पर भी यूनियनों का रवैया अभी साफ नहीं  हुआ है। यूनियनें ्गर इसका विराध कर देती है तो कोयला के साथ साथ बिजली सेक्टर के लिए भी भारी संकट पैदा हो जायेगा।कम दर पर बिजली बेचने को मजबूर 7,000 मेगावाट के पावर प्लांट अव्यवहार्य (अनवायबल) साबित हो सकते हैं। यह आशंका बिजली क्षेत्र से जुड़ी क्रिसिल की रिपोर्ट में जाहिर की गई है। मंगलवार को जारी क्रिसिल की रिपोर्ट के मुताबिक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में सुस्ती की वजह से अगले पांच साल में बिजली की मांग में सिर्फ 6.2 फीसदी की बढ़ोतरी होगी।रिपोर्ट के मुताबिक, कड़ी प्रतिस्पर्धा की वजह से 7000 मेगावाट क्षमता के पावर प्लांट 2.90 रुपये प्रति यूनिट से कम दर पर बिजली बेच रहे हैं। लागत को देखते हुए इन पावर प्लांटों के अव्यवहार्य होने का खतरा काफी बढ़ गया है। रिपोर्ट के मुताबिक घरेलू कोयले पर आधारित 18,000 मेगावाट क्षमता के पावर प्लांट के मार्जिन पर काफी दबाव रहेगा।


कोल इंडिया के लगभग 3.57 लाख एंप्लॉयीज को रिप्रेजेंट करने वाले ऑल इंडिया कोल वर्कर्स फेडरेशन और चार दूसरे नेशनल फेडरेशन ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को विनिवेश के खिलाफ खत लिखा है। इसमें उन्होंने कहा है कि अगर सरकार कोल इंडिया में अतिरिक्त 10 फीसदी हिस्सेदारी बेचने के फैसले पर अमल करती है, तो वर्कर्स बेमियादी हड़ताल पर चले जाएंगे।  यूनियनों की संयुक्त बैठक 24 जून को कोलकाता में होगी। स्टीयरिंग कमेटी का गठन होना है। यह कमेटी संयुक्त आंदोलन की रूपरेखा तैयार करेगी।श्रमिक संगठन कोयला उद्योग को टुकड़ों में बांटने की कोशिशों व कोल इंडिया में विनिवेश की नीति के खिलाफ सरकार व प्रबंधन को करारा जवाब देंगे। बैठक में आल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एटक), हिंद मजदूर सभा (एचएमएस), भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) व सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन (सीटू) के प्रतिनिधि शामिल होंगे। ग्यारह सूत्री मांगपत्र पर विस्तार से चर्चा होगी। रांची में संयुक्त सम्मेलन जून के अंत तक होना है।


यूनियनों की ग्यारह सूत्री मांगें :


-- कोल इंडिया में विनिवेश पर रोक लगे


-- कोल इंडिया की सहायक कंपनियों को बांटने पर रोक लगे


--कोयला उद्योग में आउटसोर्सिग बंद हो


--ठेका मजदूरों को एग्रीमेंट के अनुसार वेतन व सुविधाएं मिले


--कोल ब्लॉक का आवंटन नहीं हो


--अब तक उत्पादन नहीं हुए ब्लॉकों का लीज एग्रीमेंट रद हो


-- भूमिहीन हो चुके लोगों को मुआवजा, नौकरी व पुनर्वास की व्यवस्था हो


-- सभी कर्मियों को सेवानिवृत्ति के बाद के लाभ मिलें


--कर्मियों की पेंशन 40 प्रतिशत हो


-- कोल इंडिया को इंफ्रास्ट्रक्चर इंडस्ट्रीज घोषित किया जाए


-- कर्मचारियों की बहाली से प्रतिबंध हटे


-- कोल प्राइस की बढ़ोतरी और फ्यूल सप्लाई एग्रीमेंट के दौरान यूनियन प्रतिनिधियों को विश्वास में लिया जाए।



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