| Tuesday, 28 August 2012 10:49 |
संजय सेमवाल झूला पुल की ओर जाने वाली सीढ़ियां और वहां की दुकानें नदी में समा चुकी थीं। यहां के लगभग दो सौ परिवार अचानक बेघर हो गए। हर कोई कोशिश कर रहा था, अपनों को बचाने की और दूसरों की हर संभव मदद की। बुजुर्ग बता रहे थे कि 1978 की भयानक बाढ़ में भी इतना बुरा हाल नहीं हुआ था। किसी ने बताया कि यहां से पांच किलोमीटर दूर एक कस्बा गंगोरी जमींदोज हो गया है। पहले विश्वास नहीं हुआ। लेकिन यह सच था। वहां का मंजर देख कर आंखें फटी रह गर्इं। कल तक जहां लगभग डेढ़ सौ पक्के घर थे, अग्निशमन केंद्र, वन निगम का पार्क, गोदाम और एक बडा-सा लोहे का पुल था। वहां अब नदी लहरा रही थी। मकान और गाड़ियां नदी में खिलौनों की तरह गिरे पड़े थे। इसके ऊपर के इलाके की और भी बुरी स्थिति थी और वहां जाने का कोई रास्ता ही नहीं था। लोग किस हाल में थे, पता नहीं। आखिर हम वहां नहीं जा पाए। बेहद उदास मन से लौट रहा था कि सिर पर लकड़ी और घास का गट्ठर लादे कुछ महिलाएं आती दिखीं। कुछ महिलाएं और पुरुष धान के खेत में काम करते दिखाई पड़े। लगा कि आपदाएं भी यहां जीवन का हिस्सा हैं। इनसे लड़ कर आगे बढ़ने का ही नाम जीवन है। |
My father Pulin Babu lived and died for Indigenous Aboriginal Black Untouchables. His Life and Time Covered Great Indian Holocaust of Partition and the Plight of Refugees in India. Which Continues as continues the Manusmriti Apartheid Rule in the Divided bleeding Geopolitics. Whatever I stumbled to know about this span, I present you. many things are UNKNOWN to me. Pl contribute. Palash Biswas
Tuesday, August 28, 2012
उदासी में उत्तरकाशी
http://www.jansatta.com/index.php/component/content/article/27292-2012-08-28-05-19-30
No comments:
Post a Comment