স্মৃতিটুকু থাক্,ফিরে যাচ্ছি উদ্বাস্তু উপনিবেশে স্বজনদের কাছে হিমালয়ের কোলে!
My father Pulin Babu lived and died for Indigenous Aboriginal Black Untouchables. His Life and Time Covered Great Indian Holocaust of Partition and the Plight of Refugees in India. Which Continues as continues the Manusmriti Apartheid Rule in the Divided bleeding Geopolitics. Whatever I stumbled to know about this span, I present you. many things are UNKNOWN to me. Pl contribute. Palash Biswas
Sunday, May 20, 2018
স্মৃতিটুকু থাক্,ফিরে যাচ্ছি উদ্বাস্তু উপনিবেশে স্বজনদের কাছে হিমালয়ের কোলে! পলাশ বিশ্বাস
भारत के कुलीन वाम नेतत्व को उखाड़ फेंकना सबसे जरूरी पलाश विश्वास
Saturday, May 19, 2018
मेरा जन्मदिन कुलीन वर्ग के लिए एक दुर्घटना ही है। पलाश विश्वास
उत्तराखंड और झारखंड में लोग मुझे पलाश नाम से ही जानते रहे हैं,किसी विश्वास को वे नहीं जानते।
आदिवासियों का व्यापक भगवाकरण सबसे ज्यादा खतरनाक है
सिर्फ दो ही तरह के लोग हैं। धृतराष्ट्र या फिर अश्वत्थामा। अंधा युग कभी खत्म नहीं हुआ पलाश विश्वास
सिर्फ दो ही तरह के लोग हैं।
Friday, May 18, 2018
मुक्तबाजार का विकल्प मनुस्मृति राज है और अरबपतियों की सत्ता का तख्ता पलटने के लिए चुनावी राजनीति फेल है
मरे हुए वाम को जिंदा सक्रिय किये बिना,बहुजना आवाम को बदलाव के लिए लामबंद किये बिना अब बदलाव असंभव!
अल्मोड़ा में पानी का एटीएम? हिमालयक्षेत्र की जनता को धीमे जहर से मारा जा रहा है! पलाश विश्वास
पहाड़ में पैसे नही, पानी ATM से पीजिए
दोस्तों आज मैं उत्तराखंड के प्रसिद्ध साहित्यिक शहर अल्मोड़ा में हूँ । वह भी दिन थे जब यहा कभी प्याऊँ लगती थी । केमू स्टेशन के पास और बाल मिठाई के विक्रेता खेम सिंह मोहन सिंह की दुकान के पास , लाला बाजार में तथा शहर से गांव के आने जाने वाले प्रत्येक रास्ते पर बड़े-बड़े मटको में पानी भरकर लोगों को निशुल्क पानी पिलाया जाता था । मैंने देखे थे वह दिन भी । और देख रहा हूं आज का यह दिन भी जब अल्मोड़ा में पानी ATM से रुपए देकर पीने को मजबूर हो रहे है । क्या यह हमारी तरक्की है या विकास का यह आईना जो हमें हमारे भविष्य की ओर खतरे के संकेत देता प्रतीत हो रहा है । क्या हम अब नदी , झरना और चाल , खाल नॉलो , धारों और प्राकृतिक स्रोतों से पानी पीने की अपेक्षा मशीन से निकला हुआ पानी पीकर अपने आपको गौरवान्वित महसूस करेंगे..... ?
दिल्ली में सत्ता के नाभिनाल से जुड़े लोगों का हिंदी साहित्य और तमाम विधाओं पर एकाधिकार कब्जा हो गया और हम तिनके की तरह उड़ बिखर गये। पलाश विश्वास
दिल्ली में सत्ता के नाभिनाल से जुड़े लोगों का हिंदी साहित्य और तमाम विधाओं पर एकाधिकार कब्जा हो गया और हम तिनके की तरह उड़ बिखर गये।
पलाश विश्वास
लेखकों का संगठन बनाने के लिए चर्चा शुरु करने में परिचय, कौशल किशोर और विनय श्रीकर दोनों का बहुत योगदान रहा।धीरेंद्र सारिका में छपने के कारण स्थापित हो चुके थे।लेकिन हम लोगों तब सिर्फ लघु पत्रिकाओं में ही लिख रहे थे।
कोटा की बैठक में सुधीश पचौरी और धीरेंद्र ने व्यवसायिक पत्रिकाओं में न लिखने और सिर्फ लघु पत्रिकाओं में ही लिखने के बारे में सबसे जोरदार दलीलें पेश कीं।
कपिलेश भोज और मैं जीआईसी नैनीताल से गये हुए थे।तब तक गिरदा से भी हमारा संवाद शुरु नहीं हुआ था और न नैनीताल समाचार और पहाड़ निकल रहे थे।इसलिए लेखोकों के संगठन बनाने के सिलसिले में कौशल किशोर,विनय श्रीकर,सव्यसाची,शिवराम और महेंद्र नेह तो हमें भी बराबर महत्व दे रहे थे,बाकी लोगों के लिए हम बच्चे थे।
एक बात और,लेखक संगठन बनाने के बारे में शेखर जोशी,अमरकांत,मार्कंडेय,भैरव प्रसाद गुप्त और दूधनाथ सिंह भी सत्तर के दशक से सक्रिय थे।
हम लोग उत्तराखंड संघर्ष वाहिनी में शमशेर सिंह बिष्ट के नेतृत्व में इमरजेंसी के बाद संसदीय राजनीति के खिलाफ हो गये थे,इसलिए जनवादी लेखक संघ के लिए संवाद से जाहिरा तौर पर अलग हो गये थे।
1079 में इलाहाबाद में मैं एमए पास करने के बाद पीएचडी करने के इरादे से गया और वहां शेखर जी के घर ठहरा।वहीं हम लेखक संगठन बनाने की इलाहाबाद के लेखकों और कवियों की सक्रियता के मुखातिब हुए।भैरवजी इन लेखकों के सर्वमान्य नेता थे और जनपदों के इन तमाम लेखकों के साथ सव्यसाची जी का लगातार संपर्क बना हुआ था।लेकिन भोपाल और दिल्ली वाले लगातार इन्हें हाशिये पर डालने में लगे हुए थे।
इलाहाबाद में वीरेन डंगवाल,मंगलेश डबराल,उर्मिलेश,रामजी राय और नीलाभ हमारी धारा के लोग थे और तब हम भी संस्कृतिकर्मियों को संगठित करने में अलग से संवाद करने लगे थे।
जेएनयू पहुंचकर गोरख पांडे से मुलाकात हुई,जो इस बारे में सबसे ज्यादा उत्साही थे।
जेएनयू में पढ़े लिखने की महत्वाकांक्षा छोड़कर 1980 में मैं धनबाद चला गया और आवाज के माध्यम से कोयलाखानों के मजदूरों और झारखंड आंदोलन में सक्रिय हो गया।
तब कामरेड एकेराय और महाश्वेता देवी के संपर्क में आ जाने से हमारी दृष्टि संसदीय राजनीति के एकदम खिलाफ हो गयी।मैंने कभी सरकारी नौकरी के लिए कोई आवेदन पत्र नहीं लिखा।
सव्यसाची,शिवराम,महेंद्र नेह और इलाहाबाद के लेखकों कवियों से उनकी जेनुइन रचनाधर्मिता ,ईमानदारी और प्रतिबद्धता के कारण हमेशा वैचारिक मतभेद के बावजूद संवाद जारी रहा।
धनबाद में तब वीरभारत तलवार और मनमोहन पाठक शालपत्र निकाल रहे थे।मदनकश्यप अंतर्गत निकाल रहे थे और हमलोग सात हो गये।कुल्टी से संजीव भी हमारे साथ थे।फिर धनबाद से कतार का प्रकाशन शुरु हुआ और इसी बीच बिहार नवजनवादी सांस्कृति मोर्चा का गठन हो गया।जिसमें हम सारे लोग सक्रिय हो गये।महाश्वेता देवी इस सांस्कृतिक मोर्चा के साथ शुरु से थीं।जिसके साथ नवारुणदा हमेशा रहे और हमने उनके साथ कोलकाता में बांग्ला में भाषाबंधन भी निकाला।
फिर इंडियन पीपुल्स फ्रंट बना जिसमें शमशेर सिंह बिष्ट के नेतृत्व में उत्तराखंड और यूपी के हमारे तमाम पुराने साथी शामिल थे।दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के शंकर गुहा नियोगी भी इसमें शामिल थे।हम लोगों का इलाहाबाद,मथुरा ,अलीगढ़,बनारस जैसे जनपदों से कभी कोई टकराव नहीं रहा हालांकि आपातकाल का समर्थन करने वाले भोपाल बिरादरी से हमारा कोई संवाद नहीं था।
हम मेरठ में दैनिक जागरण में 1984 को चले आये तो नई दिल्ली में गोरखपांडे की पहल पर जनसंस्कृति मोर्चा के गठन की कवायद जोरों से चल रही थी।नई दिल्ली में यह संगठन बना तो इसमें बिहार नवजनवादी सांस्कृतिक मोर्चा का विलय हो गया था।
इसी बीच इलाहाबाद, लखनऊ, बनारस, मथुरा, अलीगढ़, कोटा, अलवर,भोपाल,कोलकाता समेत सभी जनपदों में हिंदी के गढ़ों को ध्वस्त करके दिल्ली में सत्ता के नाभिनाल से जुड़े लोगों का हिंदी साहित्य और तमाम विधाओं पर एकाधिकार कब्जा हो गया और हम तिनके की तरह उड़ बिखर गये।

