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Thursday, February 14, 2013

एनएमडीसी में एक हजार करोड़ का ढुलाई घोटाला

एनएमडीसी में एक हजार करोड़ का ढुलाई घोटाला



नवरत्न कंपनी एनएमडीसी को हर महीने हो रहा पन्द्रह करोड़ का नुकसान, यह सिलिसला 10 वर्षों से जारी, छत्तीसगढ़ शासन को भी हो रहा रॉयल्टी का नुकसान

छत्तीसगढ़ स्थित देश की सबसे बड़ी लौह अयस्क उत्पादक नवरत्न कम्पनी नेशनल माइन्स डेवलपमेंट कारपोरेशन (एनएमडीसी) से मिले दस्तावेजों के मुताबिक वहां मात्र तीन महीनों में 62 हजार टन लौह अयस्क की अवैध निकासी हुई है. अवैध निकासी कितने बड़े स्तर पर है हो रही है इसका अंदाजा सिर्फ इससे लगाया जा सकता है कि रेलवे ने ओवरलोडिंग के बदले तीन महीनों में ही 20 करोड़ वसूले हैं...

बस्तर से देवशरण तिवारी


छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले में राष्ट्रीय खनिज विकास निगम द्वारा करीब 40 वर्षों से लौह अयस्क का उत्खनन किया जा रहा है. बचेली और किरन्दुल से रोजाना रेलवे रैक के माध्यम से औसतन पचास हजार मेट्रिक टन से अधिक लौह अयस्क का परिवहन किया जाता है. दुनिया के सबसे बेहतरीन किस्म का लोहा यहां पाया जाता है.

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रोजाना पच्चीस से तीस करोड़ रूपये का लोहा यहां से निकाल कर बाहर भेजा जा रहा है. इतने बड़े पैमाने पर होने वाले इस कारोबार में एक ऐसी गड़बड़ी है जो लगातार हो रही है लेकिन आश्चर्य जनक रूप से किसी को नजर नहीं आ रही है. लूट का यह सिलसिला बरसों से चल रहा है और बीते दस सालों में इस अन्तर की गणना की जाये तो मामला एक हजार करोड़ से भी पार हो जायेगा.

रेलवे ने जनवरी 2012 में 6,80,74,505 फरवरी 2012 में 4,81,10133 और मार्च में 8,18,78,434 रूपये अतिरिक्त वजन की पेनाल्टी वसूली है. इस प्रकार बीस करोड़ रूपये खर्च कर लोहा कारोबारियों ने पैंतालीस करोड़ रूपये सिर्फ तीन माह में ही कमा लिये. इन तीन महीनों में बचेली से 684 रेक और किरन्दुल से 282 रेक लोहा देश और विदेश के विभिन्न स्थानों को भेजा गया. एनएमडीसी अपने खरीददारों के लिये अपने संसाधनों से रैक लोड करता है.

लोडिंग के साथ-साथ ही प्रत्येक वैगन का वजन रिक्लेमर और वेटोमीटर के माध्यम से रिकॉर्ड किया जाता है. इसी वजन के आधार पर क्रेता कंपनियों की बिलिंग की जाती है और भुगतान प्राप्त किया जाता है. उसके बाद मालगाड़ी चल पड़ती है और थोड़ी दूर पर स्थित ईस्ट कोस्ट रेलवे के भांसी स्टेशन पर बने वे-ब्रिज में रेलवे के कर्मचारी दोबारा इस रैक का वजन करते हैं.

एनएमडीसी के लोडिंग प्वाईंट से भांसी के बीच बरसों से एक गिरोह सक्रिय है जिसकी कारगुजारी का भण्डाफोड़ हम करने जा रहे हैं. इस खेल में एनएमडीसी और रेलवे के कुछ अधिकारी तथा कर्मचारी भी शामिल है क्योंकि उनके बगैर इस खेल का खेला जाना असंभव है.

vijay-tiwariयह घोटाला कई वर्षो से जारी है. कई बार इस मामले पर आवाज उठाई है. आज तक इस गड़बड़ी को रोकने कोई पहल नहीं की गई है. इस पूरे मामले में रेल्वे और एनएमडीसी के कुछ बड़े अधिकारियों की सांठ- गांठ है.
विजय तिवारी, वरिष्ट भाजपा नेता और छत्तीसगढ़ पर्यटन मंडल के उपाध्यक्ष

एनएमडीसी के यार्ड से निकलने वाले कई रैक का वजन भांसी के रेलवे धर्मकांटे में 100 से लेकर 500 मेट्रिक टन अधिक पाया जाता है. रेलवे निर्धारित मात्रा से अधिक लोडिंग पर लिया जाने वाला अर्थदण्ड तो खरीददार कंपनियों से लगातार वसूल रहा है लेकिन अधिक माल की कीमत एनएमडीसी द्वारा नहीं वसूली जा रही है.

उदाहरण के तौर पर वजन में अधिक पाये जाने वाले 200 मे.ट. लौह अयस्क की कीमत लगभग 12 लाख रूपये होती है जबकि इतनी ही मात्रा के लिये रेलवे डेढ़ से दो लाख रूपये तक पनीटिव (अर्थदण्ड) वसूल करता है. रेलवे का अर्थदंड देकर भी खरीददार दस लाख रूपये के फायदे में होता है. इस फायदे में कुछ हिस्सेदारी एनएमडीसी और रेलवे के कर्मचारियों की भी होती है.

रेलवे सिर्फ निर्धारित मात्रा से अधिक वजन पर वास्तविक भाड़े का पांच गुना वसूलता रहा है लेकिन ऐसे में सबसे अधिक नुकसान एनएमडीसी को हो रहा है. इस पूरे खेल का पर्दाफाश करने हमने सूचना के अधिकार का इस्तेमाल किया. 1 जनवरी 2012 से 31 मार्च 2012 तक के लौह अयस्क की निकासी का रिकॉर्ड एनएमडीसी से लिया गया. इसी निकासी के भांसी रेलवे वे-ब्रिज का हिसाब पूर्व तट रेलवे के विशाखापटनम स्थित मुख्यालय से लिया गया.

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रेलवे से प्राप्त दस्तावेजों में कई बार एक-एक रैक में 500 से 600 मे.ट. तक एक्सेस वजन रिकॉर्ड किया गया है. इन दोनों के रिकॉर्ड में दिख रहे आकड़े ने करोड़ों की हेराफेरी का राज खोल दिया है. सिर्फ इन तीन महीनों में इकसठ हजार आठ सौ इक्यासी मेंट्रिक टन लौह अयस्क के अधिक मात्रा की निकासी एनएमडीसी की खदानों से हुई है.

इस अधिक मात्रा के परिवहन का अर्थदंड रेलवे ने उन्नीस करोड़ अस्सी लाख तिरसठ हजार बहत्तर रूपये वसूला है लेकिन एनएमडीसी द्वारा इस माल को यूं ही जाने दिया गया और खरीददारों को सिर्फ तीन महीनों में पैंतालीस करोड़ रूपये का फायदा पहुंचाया गया. सर्वाधिक गड़बड़ी उन रेकों में पायी गयी है जो या तो सेल के स्वयं के स्टील प्लांट वैजाग स्टील विशाखापटनम को भेजे गये या फिर उनमें जो निर्यात के लिये एनएमडीसी की सहयोगी संस्था एमएमटीसी विशाखापटनम को भेजे गये.

छत्तीसगढ़ के खरीददार लगातार घाटे में रहे क्योंकि उन्हें हर रैक के पीछे 100-200 टन लोहा कम प्राप्त हुआ. इन व्यापारियों को नहीं मिलने वाले माल की कीमत भी चुकानी पड़ी और कम माल के परिवहन का अर्थदंड भी रेलवे को चुकाना पड़ा. छग स्पंज आयरन एसोसियेशन ने कई बार इस गड़बड़ी की शिकायत एनएमडीसी के वरिष्ठ अधिकारियों से की है. इस प्रकार हर महीने 15 करोड़ का नुकसान लगातार एनएमडीसी को हो रहा है लेकिन आश्चर्य जनक रूप से लगतार इस मामले को दबाया जा रहा है.

nmdc-manager-bacheli-lb-singhकभी भी रेलवे के वजन के साथ क्रॉस चेक करने की जरूरत नहीं पड़ी. हम अपने वजन को ही अंतिम वजन मानकर खरीददारों के बिल तैयार करते हैं. साथ ही उन्होंने कहा कि इस शिकायत पर गौर किया जायेगा और गड़बड़ी का पता लगाया जायेगा. 
एलबी सिंह, एनएमडीसी की बचेली इकाई के महाप्रबंधक

एनएमडीसी और इंडियन रेलवे दोनों केन्द्र सरकार के अपने उपक्रम हैं. यदि रेलवे के आंकड़े सही हैं तो एनएमडीसी द्वारा पिछले दस सालों में अधिक मात्रा में हुई लौह अयस्क की निकासी की वसूली संबंधित खरीददारों से की जानी चाहिये और यदि एनएमडीसी का हिसाब सही है तो रेवले द्वारा अब तक एक्सेस वजन के बदले अर्थदंड के रूप में वसूले गये करोड़ों रूपये संबंधित खरीददारों को लौटाये जाने चाहिये. इस पूरे मामले में छत्तीसगढ़ शासन की खामोशी भी संदेहास्पद है क्योकि इस अघोषित लौह अयस्क की रॉयल्टी भी राज्य शासन को नही मिल पा रही है. बहरहाल इस मामल में भारत के नौ रत्नों में से एक एनएमडीसी को ही सर्वाधिक नुक्सान हो रहा है. चाहे नुक्सान अर्थिक हो या फिर संस्थान की विश्वसनियता का.

devsharan-tiwariदेवशरण तिवारी बस्तर में देशबंधु अख़बार के ब्यूरो चीफ हैं.

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