टीम अन्ना के नाम खुला पत्र
अन्ना तथा उनकी टीम ने देश के जन संघर्षों के साथ कहीं भी सतत् रूप से जुड़ने का कार्य नहीं किया. देश में भू-अर्जन के खिलाफ इंच-इंच पर किसान लड़ रहा है. किसानों के जो संघर्ष चल रहे हैं, उसमें अन्ना या उनकी टीम कहीं भी मैदान में खड़ी दिखलाई नहीं देती...
जयन्त वर्मा
अन्ना ने एक मई से महाराष्ट्र में लोकायुक्त लागू कराने की मांग को लेकर यात्रा शुरू कर दी है. अन्ना टीम महारा'ट्र में दिखलाई नहीं पड़ी टीम के मुख्य सदस्य हिमाचल प्रदेश में चुनाव की संभावनाओं को तलाशने में व्यस्त हैं. अन्ना 5 जून को दिल्ली में बाबा रामदेव के साथ अनशन करेंगे. इसके बाद पूरा देश जानना चाहता है कि 'अन्ना' आगे क्या करने वाले हैं. अन्ना का लक्ष्य क्या है. अन्ना का घोषित दीर्घकालीन लक्ष्य व्यवस्था परिवर्तन है.
तत्कालीन लक्ष्य भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिये जन लोकपाल बिल तथा जन लोकायुक्त बिल पारित कराना.भ्रष्टाचार को लेकर अन्ना जो कुछ कह और कर रहे हैं वह दिखलाई पड़ रहा है. पहले भी अन्ना ने रालेगण सिद्धी में ग्रामीण विकास, विशेष तौर पर पानी को लेकर जो काम किया है वह जग जाहिर है. लेकिन व्यवस्था परिवर्तन का उद्देश्य हासिल करने के लिए अन्ना क्या कुछ कर रहे हैं या करने वाले हैं. उसे जानने में व्यवस्थावादी तथा परिवर्तनवादी दोनों उत्सुक है.
क्या अन्ना की सोच के मुताबिक आदर्श ग्राम बनाकर व्यवस्था परिवर्तन का लक्ष्य हासिल किया जा सकता है? वह भी सरकार या पूंजीपतियों की मदद से. सभी जानते हैं कि अन्ना सरकार से तमाम किस्म की आर्थिक मदद लेकर ग्रामीण विकास के कार्यक्रम चलाते रहे हैं. कई बार उन्हें टी.वी. पर यह बोलते हुये सुना गया है कि देश के कई पूंजीवादी अच्छे हैं तथा वे अन्ना जी के ग्रामीण विकास के सपने को पूरा करने के लिये खुल कर चंदा देने को तैयार हैं.
जो लोग कार्पोरेट जगत को जानते हैं उन्हें मालूम है कि कार्पोरेट ने अपने विद्रूप लूटतंत्र पर आधारित चेहरे को मानविय बनाने के लिये कार्पोरेट सोशल रिस्पान्सिबिलिटी की नीति अपनाई है. इस समय देश में कार्पोरेट अपनी सामाजिक जिम्मेदारी का निर्वाह उसी तर्ज पर कर रहा है, जिस तर्ज पर बिरला द्वारा 30 वर्ष पहले मंदिर बनाये जाते थे. तो क्या माना जाये कि अन्ना कार्पोरेट सोशल रिस्पान्सिबिलिटी पूरी करने तथा करवाने का हथियार मात्र बन गये हैं या बनना चाहते हैं.
यह महत्वपूर्ण है कि व्यवस्था को लेकर तथा व्यवस्था से लड़ने वालों को लेकर उनकी क्या समझ है? इस संदर्भ में यह भी उल्लेखनीय है कि अन्ना टीम में जो भी लोग शामिल हैं उनमें से किसी का भी ट्रेक रिकार्ड व्यवस्था परिवर्तन के संघर्ष का नहीं रहा है. यह सही है कि सभी ने अपने-अपने क्षेत्रों में उल्लेखनीय योगदान किया है. अरविंद केजरीवाल ने सूचना के अधिकार को लेकर उल्लेखनिय कार्य किया है, प्रशांत भूषण न्यायिक सुधार को लेकर सक्रिय रहे हैं, किरण वेदी की चर्चा जेल सुधारों को लेकर की जाती रही है लेकिन इन सबके योगदान व्यवस्था परिवर्तन की ओर किये गये विशिष्ट योगदान के तौर पर नहीं माना जा सकता.
अन्ना की कोर कमेटी में कुछ ऐसे लोग जरूर हैं जो व्यवस्था के खिलाफ संघर्ष के लिए जाने जाते हैं. स्वामी अग्निवेश बाहर कर दिये गये हैं. जमीन के मुद्दे पर राष्ट्रव्यापी संघर्ष करने वाले पी.वी. राजगोपाल तथा पानी के निजीकरण के खिलाफ संघर्ष करने वाले राजेन्द्र सिंह दोनों कोर कमटी से अलग हो चुके हैं. अब केवल 2 ऐसे कोर कमेटी के सदस्य बचते हैं, जिनका संबंध जन संघर्षों से है. एक मेधा पाटकर दूसरा सुनीलम् लेकिन देश में अन्ना टीम के तौर पर इन दोनों को चिन्हित नहीं किया जाता.
दोनों कोर कमेटी के सदस्य मात्र हैं जो जन संगठनों के साथ सक्रिय हैं. अन्ना तथा उनकी टीम ने देश के जन संघर्षों के साथ कहीं भी सतत् रूप से जुड़ने का कार्य नहीं किया. इस समय देश में भू-अर्जन के खिलाफ इंच-इंच पर किसान लड़ रहा है. किसानों के संगठन तथा जन आन्दोलन के राष्ट्रीय समन्वय के जो संघर्ष चल रहे हैं, उसमें अन्ना या उसकी टीम कहीं भी सक्रिय होकर मैदान में खड़ी दिखलाई नहीं देती. यहां तक कि मेधा पाटेकर तथा सुनीलम् के संघर्षों में अन्ना तथा उनकी टीम की कोई भूमिका दिखलाई नहीं पड़ती.
इस समय सुनीलम् पर सी.बी.आई. शिकंजा कस रही है. पहले ही उन पर म.प्र. की राज्य सरकारों द्वारा गत 30 वर्षों में 132 फर्जी मुकदमें लादे जा चुके हैं. हाल ही में जब किरण बेदी भोपाल में आई तब उनसे प्रेस ने सुनीलम् के मुकदमों के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि विशेष न्यायालय बनाने चाहिये. उत्तर प्रदेश की प्रेस भी अरविंद केजरीवाल से पूछ रही है लेकिन वे भी सुनीलम् के मुकदमों को लेकर मौन हैं.
इसका तात्पर्य यह है कि अन्ना तथा उनकी टीम सुनीलम् को लेकर अनिश्चय तथा भ्रम की स्थिति में है तथा खुलकर अदानी विरोधी संघर्ष में उतरने को तैयार नहीं है. यह जानना दिलचस्प होगा कि जिस दिन सुनीलम पर अदानी के गुंडों ने जानलेवा हमला किया था उस दिन अन्ना के परमसहयोगी बाबा रामदेव हमला कराने वाले कमलनाथ के साथ छिन्दवाड़ा में योग कर रहे थे.
अन्ना और उनकी टीम बार-बार यह दोहराती रही है कि राजनीति का अपराधीकरण इस समय की सबसे बड़ी चुनौती है. अरविंद केजरीवाल को तो सांसदों को अपराधी बतलाने के चलते अपमान का नोटिस भी दिया जा चुका है. हाल ही में रामदेव बाबा ने भी अरविंद केजरीवाल से आगे बढ़कर सांसदों को लूटेरा तक कहा डाला है उन्हें भी सपा सांसद अवमानना का नोटिस भेज चुके हैं. अन्ना तथा उनकी टीम की यह समझ है जिस पर भी मुकदमा दर्ज है वह अपराधी है. जबकि भारतीय कानून के मुताबिक जब तक अपराध साबित नहीं हो जाता तब तक उसे अपराधी नहीं माना जा सकता.
व्यवस्था के जिस भी काल में जो भी लड़ा है, वह व्यवस्था द्वारा अपराधी निरूपित किया गया है. भगत सिंह से लेकर सुभाष चन्द्र बोस तक सभी अपराधी कहलाये हैं. अंग्रेजों ने जिन डेढ़ लाख से अधिक स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को मौत के घाट उतारा वे सभी अंग्रेजों की नजर में अपराधी थे लेकिन भारतीयों ने, हमने, उन्हें शहीद का दर्जा दिया. ऊपरी तौर पर अन्ना और उनकी टीम इन शहीदों की कुर्बानी याद करती है तथा युवाओं के लिये प्रेरणादायी बताती हैं.
भगत सिंह व्यवस्था में पूंजीपतियों द्वारा की जा रही लूट को खत्म करना चाहते थे तथा किसान, मजदूर, गरीब को न्याय हासिल कराने वाले समाजवादी समाज की रचना करना चाहते थे यह जानना रूचिकर होगा कि सर्वोच्च न्यायालय के दो न्यायाधीशों. श्री जी.एस. सिंघवी और श्री अशोक कुमार गांगुली ने भगत सिंह द्वारा न्यायालय में दिये गये बयान को न्यायालय के रिकार्ड में लेते हुये कहा है कि उन सपनों को पूरा करना राज्य सरकारों की नीति निर्देशक सिद्धांतों के तहत जिम्मेदारी है, अर्थात् लूट तंत्र को खत्म करने की कार्यवाही सरकारें को करनी चाहिये, लेकिन वास्तविकता यह है कि सरकारें लूट तंत्र का मुखौटा बन कर काम कर रही हैं.
सरकारों ने भारतीय संविधान के समाजवाद हासिल करने के उद्देश्य को गत 65 वर्षों में गहराई तक जाकर दफन कर दिया है. देश में लोकतंत्र की जगह कार्पोरेटक्रेसी काम कर रही है. सरकारें महज कार्पोरेट का एजेंट बनकर रह गई है. यदि ऐसा नहीं होता तो यह कैसे हो जाता कि देश में 2.5 लाख से अधिक किसान आत्महत्या को मजबूर हांे. देश के 8 हजार 2 सौ परिवार के हाथ में राष्ट्र की 70 प्रतिशत से अधिक पूंजी चली जाये.
देश में 77 करोड़ लोग 20 रूपये से कम पर गुजर करने पर मजबूर हों. लोगों का यह सवाल जायज है कि आखिर अन्ना इस लूट तंत्र के खिलाफ क्यों नहीं बोलते? लूट तंत्र के खिलाफ लड़ने वालों का खुल कर साथ क्यों नहीं देते? क्यों कार्पोरेट जगत को उसकी सामाजिक जिम्मेदारी पूरा करने में मदद करना चाहते हैं? असल में अन्ना और उनकी टीम का पूरा सोच गैर राजनीतिक रहा है. कहते तो वे व्यवस्था परिवर्तन की बात है, लेकिन राजनीति करने वालों से बहुत घबराते हैं. राजनीति को अपराधियों से मुक्त करने की जब बात करते हैं तब भूल जाते हैं कि देश में सरकारों ने राजनीतिक विरोधियों पर चुन-चुन कर दे"ा की सभी सरकारों ने मुकदमें लगाये हैं.
इन्दिरा गांधी ने तो विपक्ष के लाखों कार्यकर्ताओं को अपात्काल लगाकर मीसा में 19 महीने जेलों में बंद रखा था. म.प्र. को ही देखें कांग्रेस शासन काल में भा.ज.पा. कार्यकर्ता पर लाखों मुकदमें दर्ज हुये. भा.ज.पा. सरकार ने अपने कार्यकर्ताओं पर से दो लाख से अधिक मुकदमें वापस ले लिये लेकिन अब म.प्र. के कांग्रेसी कह रहे हैं कि भाजपा सरकार उन्हें फर्जी मुकदमों में फंसा रही है.
उत्तर प्रदेश में देखे, बसपा सरकार ने सैंकड़ों सपा कार्यकर्ताओं की हत्या कराई. दो लाख से अधिक सपाईयों के खिलाफ फर्जी मुकदमें लिखे गये. अब सपा सरकार न केवल अपने कार्यकर्ताओं के मुकदमें वापस लेने की प्रक्रिया शुरू कर चुकी है, मीडिया रिपोर्टो के मुताबिक तमाम बसपाई कार्यकर्ता मारे जा चुके हैं. अन्ना के लिये अपराधीवृति तथा अपराध आधारित जीवन चलाने वाले व्यक्तियों तथा सरकारों या व्यवस्था से लड़ने वालों पर लगाये जाने वाले मुकदमों में कोई अंतर नहीं है.
अगर वे अंतर समझते तो सुनीलम् सहित देश भर में जन आन्दोलनकारियों के खिलाफ दिन-प्रतिदिन लगाये जाने वाले फर्जी मुकदमों के खिलाफ खुलकर बोलते तथा देश भर में नक्सलवादी तथा माओवादी होने के आरोप में फर्जी मुकदमे लगा कर जेलों में बन्द लाखों निर्दोष गरीबों को जेलों से रिहा कराने तथा मुकदमें खत्म कराने के लिये संघर्ष नहीं तो कम से कम बयान बाजी जरूर करते.
तब शायद माओवादियों को इटली के नागरिक तथा विधायक को अपने कार्यकर्ताओं को छुड़ाने के लिये अपहरण नहीं करना पड़ता. डॉ . बीडी शर्मा तथा प्रो. हरगोपाल को जंगलों की खाक नहीं छाननी पड़ती. फिलहाल तो अन्ना व उसकी टीम से ऐसी उम्मीद करना बेमानी है. ऐसी स्थिति में व्यवस्था परिवर्तन के सम्बद्ध में अन्ना टीम की समझ के बारे में कोई टिप्पणी करना बेकार है.
यह खुला पत्र अन्ना के नाम इसलिए भेजा है कि उनकी ओर से सार्वजनिक तौर पर इन मुद्दों का जवाब दिया जाये. तुरन्त न देना चाहें तो कोई बात नहीं इस पत्र को कोर कमेटी में बहस के लिए ले जाकर जबाब देंगे तो देश की जनता को अन्ना के आंदोलन के सम्बंध में सही समझ बनाने में मदद होगी. मेरा यह भी प्रस्ताव है कि अन्ना द्वारा देश भर में चर्चा समूह का जो सिलसिला शुरू किया गया है उसमें उक्त मुद्दों पर खुली बहस हो ताकी कार्यकर्ताओं का दिमाग भी साफ हो सके.
(जयन्त वर्मा जबलपुर से प्रकाशित पत्रिका नीति-मार्ग के सम्पादक हैं.)
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