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कंकरीट जंगल बना पिथौरागढ़ लेखक : नैनीताल समाचार :: :: वर्ष :: :March 8, 2012 पर प्रकाशित

कंकरीट जंगल बना पिथौरागढ़


Pithoragarh-townपिथौरागढ़ नगर कंक्रीट के जंगल में तब्दील होता जा रहा है। जिला निर्माण विभाग के आंकड़ों के अनुसार मात्र नगरपालिका क्षेत्र के भीतर ही प्रतिदिन एक भवन का निर्माण हो रहा है। पालिका क्षेत्र के भीतर वर्ष 2008-09 में 254 लोगों ने भवन निर्माण की स्वीकृति ली। 2009-10 में जनवरी माह में यह आंकड़ा 332 को पार कर चुका है। लगातार हो रहे अनियंत्रित निर्माण कार्यो ने लोगों के साथ-साथ प्रशासन की मुसीबतों को बढ़ा दिया है।

पिथौरागढ़ भारत का सीमान्त जनपद है। यहाँ पर न कोई उद्योग हैं और न ही जीवन यापन के लिए कोई सुविधायें। बेहद ही विषम परिस्थितियों में लोग जीवन-यापन कर रहे हैं। जनपद के मूल निवासियों को शिक्षा, रोजगार तथा स्वास्थ्य जैसी सुविधाओं के लिए आज भी तराई क्षेत्रों का रुख करना पड़ रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों से लोग शिक्षा के लिए पिथौरागढ़ आते हैं पर जैसे ही बच्चे बड़े होते हैं व्यावसायिक शिक्षा के अभाव में वह यहाँ से भी पलायन करते हैं। रोजगार की सम्भावनाएं यहाँ दूर-दूर तक नहीं दिखायी देती हैं। वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार पिथौरागढ़ की नगरीय जनसंख्या 59,833 थी जिसमें 32,805 पुरुष व 27,028 महिला शामिल हैं। आज जनसंख्या 70 हजार पार कर चुकी होगी। ऐसा नहीं है कि जनसंख्या वृद्धि का दर्द सिर्फ जिला मुख्यालय ही झेल रहा है। डीडीहाट, गंगोलीहाट, धारचूला की भी यही स्थिति है। नगरों की ओर आकर्षण के कारण गाँव के गाँव खाली हो रहे हैं। पिथौरागढ़ से सटे अनेक गाँवों में जनसंख्या शून्य होने का खतरा मंडराता जा रहा है। जानकारी के अनुसार वड्डा के तिलाड़ और उसके आस-पास के गाँवों में 20 परिवारों में 8 ने पलायन कर लिया व बीसाबजेड़ गाँव के 431 में से 111 परिवारों ने नगरों का रुख कर लिया है। इसी प्रकार टोटानौला के 317 में से 120, सटगल के 480 परिवारों में 80, बुँगाछीना के 392 परिवारों से 76, देवलथल के 427 परिवारों में 119, मोडी के 120 परिवारों में से 90 परिवार अन्यत्र बस चुके हैं।

पिथौरागढ़ नगर में जनसंख्या बढने के साथ ही मास्टर प्लान की आवश्यकता महसूस की जा रही है। लगातार और विपरीत ढंग से हो रहे निर्माण कार्यों के कारण नगर की खूबसूरती भी बिगड़ती जा रही है। यहाँ मास्टर प्लान लागू करने की मांग लम्बे समय से की जाती रही है पर इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। पाँच वर्षों में नगर की जनसंख्या में हुई वृद्धि के चलते यहाँ बिजली, स्वास्थ्य, पानी, सफाई आदि मुलभूत सुविधाओं की कमी पड़ने लगी है। निर्माण कार्यों ने सीवर निस्तारण की समस्या भी पैदा कर दी है। नगर के अंदर 155.25 एलपीसीडी की दर से 9.75 एमएलडी पानी की आवश्यकता है लेकिन इसके सापेक्ष सिर्फ 5.52 एमएलडी पानी ही मिल पा रहा है। बिजली की भी यही हालत है। वर्ष 1960 में जब जनपद अल्मोड़ा से पिथौरागढ़ को अलग किया गया था तो स्थिति इतनी विकराल नहीं थी। अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं पर बसे पिथौरागढ़ में आज जनसंख्या विस्फोट को साफ महसूस किया जा सकता है। पिथौरागढ़ में जिन स्थानों पर नये भवन बन रहे है उनमें मानकों का कोई ध्यान नहीं रखा गया है। अनेक मुहल्लों में नाली और रास्तों का अभाव है। पुराने रास्ते अतिक्रमण की भेंट चढ़ गये। जिस कारण रास्ते नालों में और नाले रास्तों में तब्दील हो रहे हैं। वर्षो पूर्व नालों के ऊपर से रास्ता बनाने की योजना आज तक ध्रातल पर लागू नहीं हो पाई। पाण्डेय गाँव, कुमौड़, जाखनी, टकाना, लिंक रोड, कृष्णापुरी, पियाना, चन्द्रभागा मुख्यालय में हाल के वर्षों में काफी मकान बने हैं पर मास्टर प्लान के अभाव में भवनों का निर्माण अनियंत्रित ढंग से हो रहा है।

भूकम्प की दृष्टि से जोन-5 में होने के कारण पिथौरागढ़ में भवन निर्माण के लिए भवन प्लान विभाग से स्वीकृति लेनी पड़ती है। विभाग द्वारा आठ मुट्ठी जमीन पर ही मकान निर्माण की स्वीकृति दी जाती है। साथ ही भवन निर्माण वाली जमीन की पूरी तरह जाँच करने के बाद ही प्लान विभाग से मकान नक्सा पास किया जाता है। यह नियम सिर्फ पालिका क्षेत्र के अंदर ही लागू है। इन नियमों के अनुसार नगरपालिका से बाहर भूकम्प का खतरा नहीं है। इन स्थानों पर खतरे वाली जमीन पर भी सिर्फ 5 मुट्ठी जमीन पर ही बहुमंजिली ईमारतें बनी साफ देखी जा सकती हैं। इस क्षेत्र में बड़े-बडे शैक्षणिक संस्थान भी बिना प्लान के ही बनाये गये हैं। इसके विपरीत अगर किसी व्यक्ति की थोड़ी सी जमीन पालिका क्षेत्र के अंदर है तो भूस्वामी उस पर सिर्फ व्यावसायिक इमारत ही बना सकता है। नियमानुसार मकान का नक्सा पास होने के लिए कम से कम आठ मुट्ठी जमीन की आवश्यकता होती है।

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