फौज से नई तकनीक लाते हैं तिरुवा
लेखक : नैनीताल समाचार :: :: वर्ष :: :February 29, 2012 पर प्रकाशित
घनश्याम जोशी
पहाड़ में जितनी भी खेती बची है, उसका श्रेय फौजियों को जाता है। देश की सीमाओं की रखवाली में उम्र गुजार देने के बाद एक फौजी घर आता है तो खेती-बाड़ी में जुट जाता है। तकनीकी विभागों में तैनात कुछ फौजी अपनी छुट्टियों का उपयोग भी खेती के लिए करते आए हैं। कपकोट क्षेत्र के तिरवाण गाँव निवासी कृष्णा तिरुवा इसकी एक मिसाल हैं। उन्हें फौज में ड्यूटी के दौरान भी अपनी माटी की खूशबू आती है। पहाड़ की खेती में तकनीकी बदलाव के लिए वे वहाँ भी दिन रात मेहनत कर रहे हैं। कृष्णा के गाँव तिरवाण की महिलाओं को खेती के लिए नई तकनीक के साथ ही खेतों को हरा-भरा तथा अच्छी उपज लेने, आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करने में फौजी कृष्णा की भरपूर मदद मिल रही है। महिलाएँ खेती के समय उनको याद करती हैं। कृष्णा हर साल कुछ नए औजार लेकर गाँव पहुँच भी जाता है।
पहाड़ों में कृषि एक व्यवसाय के रूप में पूरी तरह अलाभकारी हो गई है। रोजगार के साधन के रूप में यह युवाओं की आखिरी पसंद भी नहीं है। स्थिति इतनी दयनीय है कि आज पहाड़ी युवक खेती से मजदूरी करना ज्यादा पसंद करता है। कठोर परिश्रम के बाद भी खेती में होने वाले घाटे ने पहाड़ के युवक को कृषि के प्रति उदासीन बना दिया है। इस घाटे के कई कारण हैं। एक है जनसंख्या में विस्फोटक वृद्धि और दूसरा पर्वतीय क्षेत्रों में कृषि तकनीक का न होना। मैदानी क्षेत्रों में खेती ने एक आधुनिक रूप धारण कर लिया है। किसान नई-नई मशीनों एवं तकनीक से सुसज्जित हैं। वहीं पर्वतीय क्षेत्र के किसान की खेती आज भी पाषाणकालीन है। जिस तरह युवक अन्य रोजगारों की ओर भाग रहे हैं, लगता है कि वह दिन दूर नहीं जब अन्न के एक-एक दाने के लिए हमें मैदानी क्षेत्रों में होने वाली पैदावार पर निर्भर होना होगा।
भारतीय वायु सेना में तैनात कृष्ण चंद्र तिरुवा ने अपने गाँव तिरवाण के लिए बीते साल जोत मशीन लाए। मिनी रोटावेटर से महिलाओं ने भी जुताई का काम किया। दो जोड़ी बैल, हल, जुआ, नहड़, फाल तथा बैलों को चलाने वाले व्यक्ति से किसानों को राहत मिली। जोत के लिए अब पहाड़ों में आदमी मिलना मुश्किल हो गया है। फौजी ने रोटावेटर लाकर ग्रामीणों की इस बड़ी परेशानी का हल निकाला। यह रोटावेटर डीजल तथा बिना तेल के भी चलता है। अब तिरवाण की देखादेखी कुछ अन्य गाँवों के लोगों ने भी रोटावेटर ले लिए हैं। कृषि विभाग रोटावेटर, जिसकी कीमत वैसे 30 हजार है, 50 प्रतिशत की छूट पर किसानों को मुहैया करा रहा है।
महिलाओं को सबसे अधिक दिक्कत घास काटने में आती है। पथरीली, ऊबड़-खाबड़ भूमि में पालतू जानवरों के लिए घास पाली जाती है। इस घास को काटने में महिलाओं के पसीने छूटते हैं। एक माह का समय महिलाएँ घास काटने में लगाती हैं। घास के ढेर लगा कर महिलाओं को चैन आता है। जाड़ों में यह घास पालतू जानवरों को खिलाई जाती है। इस समस्या का हल भी इस साल तिरुवा निकाल लाए। उन्होंने हार्वेस्टर नामक मशीन गाँव पहुँचा दी। घास काटकर ढेर भी लगा दिए। इस मशीन का विचार उन्हें वायु सेना की हवाई पट्टी के चारों ओर उग जाने वाली लंबी झाडि़यों को काटने में प्रयोग होने वाली मशीन को देख कर आया। काफी शोध के बाद उन्होंने पाया कि यदि मशीन में कुछ संशोधन कर दिया जाए तो यह पहाड़ों में भी फसल तथा घास कटाई पर होने वाले परिश्रम तथा वक्त को बचाने के लिये उपयुक्त हो सकती है। इस कार्य में उनके सहयोगी रहे भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान दिल्ली में कार्यरत प्रीतम सिंह गुर्साइं। तिरुवा पहाड़ में कृषि के क्षेत्र में मशीनीकरण करने का संकल्प लिये हुए हैं।
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