पेड़ काटो, जुर्माना दो, मकान बनाओ
राओ और घर बनाओ ! यही हो रहा है नैनीताल में। वन विभाग के द्वारा लगभग साठ मामलों में अवैध निर्माण की सूचना प्राधिकरण को दी गई थी। कई मामलों में लोगों ने अपने प्लाट में से पेड़ ही गायब कर दिए। पकडे़ गये लोगों के चालान हुए, जिसे भुगत कर उन्होंने घर तैयार कर लिये। झील विकास प्राधिकरण अपनी जिम्मेदारी निभाने में असफल रहा है। यह अपना काम करने के अलावा बाकी सब कुछ करता है। वन विभाग ने अवैध निर्माणों का सर्वे करवा कर एक सूची प्राधिकरण को सौंपी हैं। वन विभाग के क्षेत्राधिकारी के.सी.सुयाल का कहना है कि इन अवैध निर्माण से पेड़ों को खतरा है। उनके अनुसार स्प्रिंग कोटेज, सिल्वरटन, गवर्नर रोड, चीना हाउस परिसर, प्रसाद भवन, जुबली हॉल परिसर, किलर्नी परिसर अयारपाटा, विएना लॉज, स्नो डेन, पोप्स विला आदि इलाकों लोग निर्माण कार्य के लिये पेड़ काटने की अनुमति माँग रहे हैं। मकान बनाने की होड़ ने लोगों को अंधा कर दिया है। अयारपाटा में तो अनुज मुंगली के नाम से राजमार्ग से लगी हुई भूमि में वन विभाग की आपत्ति के बावजूद प्राधिकरण ने अनुमति प्रदान कर दी। बाद में बुनियाद खोदते समय भूस्खलन होने के कारण अनुमति निरस्त कर दी गई। इसी के बगल में तीन अन्य नक्शे पास होने के लिए आए हैं, जिनमें वन विभाग द्वारा वनस्पतियों को क्षति, भूस्खलन की सम्भावना, पेड़ की मौजूदगी जैसी आपत्तियाँ लगाई गई हैं।
पर्यावरण के दुश्मन निजी हितों के चलते नैनीताल में घने जंगलों को खत्म करने पर उतारू हैं। वन विभाग का कहना है की अवैध रूप से बनाये जा रहे मकानों से में पेड़ों का कटान ज्यादा होता है, जिसके चलते उन्होंने प्राधिकरण से इन पर रोक लगाने की मांग की है। अवैध मकान डेंजर जोन, ग्रीन बेल्ट, अनसेफ जोन व अन्य जगहों पर लगातार बन रहे हैं। मकानों के नक्शे पास कराने वालों में नेता, प्रशासनिक अधिकारी व अन्य शक्तिशाली लोग लगे हुए हैं जिन्हें रोक पाना बहुत मुश्किल है। जानकारों के अनुसार लोक निर्माण विभाग भी इसके लिए जिम्मेदार है, क्योंकि ब्रेस्ट वाल, रिटेनिंग वाल व राज्य मार्ग गिरने व मलुवा आने की सम्भावना वाले क्षेत्र में उन्हें आपत्ति लगानी चाहिए। पूर्व आवास मंत्री खजान दास के सामने यह मामला लाये जाने पर उन्होंने अधिकारियों से स्पष्टीकरण माँगा। साठ मामले उनके संज्ञान में लाये गये। मंत्री जी ने प्राधिकरण के सचिव को सख्त कदम उठाने के निर्देश दिये। उन्होंने रिपोर्ट को सार्वजनिक करने के भी आदेश किए।
झील विकास प्राधिकरण के सहायक अभियंता बी.एस .नेगी के अनुसार उन्होंने वन विभाग के साथ मिलकर जाँच की व आठ सितम्बर को मुख्य विकास अधिकारी को रिपोर्ट सौंप दी है। उनका कहना है कि जब वन विभाग ने खुद वृक्षों के कटान व नुकसान के बाद केस कम्पाउंड किये हैं तो ऐसे में वे नक्शे कैसे रोक सकते हैं ? उनका दावा है कि कई मामलों में चालान हुए हैं व कई अभी तक कम्पाउंड नहीं हुए हैं। नेगी के अनुसार सेवा का अधिकार कानून आने के बाद से विभाग ने एकल खिड़की की प्रथा खत्म कर अब आवेदनकर्ता को ही अलग-अलग विभागों से एन.ओ.सी. लाने की जिम्मेदारी दी है।
दोनों विभाग एक दूसरे पर दोषारोपण कर रहे हैं। इसका सीधा फायदा जमीन बेच कर मोटा पैसा कमाने वाले भूमाफिया और बिल्डर लॉबी को होगा। जमीन पर पेड़ होने से उसकी कीमत बहुत कम हो जाती है। मगर पच्चीस हजार रुपये एक पेड़ का जुर्माना देकर उसकी कीमत करोड़ों रुपये की हो जाती है। अब प्राधिकरण पेड़ वाली भूमि पर नक्शा पास कर मकान बनाने की अनुमति दे देता है और फिर वन विभाग कटे पेड़ों पर पच्चीस हजार रुपये के हिसाब से जुर्माना कर देता है। इस तरह जिस नैनीताल नगर में मकान बनाना बिल्कुल वर्जित हो जाना चाहिये था, वहाँ कंक्रीट का जंगल लगातार फैलता जा रहा है।
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