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Thursday, March 15, 2012

भविष्य निधि ब्याज दर में कटौती, कर्मचारियों को झटका

भविष्य निधि ब्याज दर में कटौती, कर्मचारियों को झटका

पलाश विश्वास

कर्मचारियों की शामत आयी हुई है। विनिवेश और निजीकरण की आंधी में जो लोग नौकरी बचाकर गृहस्थी चला रहे हैं, सरकार उनेक भविष्य को चूना लगा रही है।अभीतक डीटीसी सागू होना है जिसमें तमाम भत्ते आयकर दायरे में शामिल किये जाने हैं। पहले लोग तीन लाख तक कर राहत की संभावना पर जश्न मना रहे थे। अब बताया जा रहा है कि छूट दो लाख से ज्यादा की नहीं  होगी। हाथ कंगन को आरसी क्या। आज कत्ल की रात है और कल​ ​ प्रणव मुखर्जी वेतनभोगी कर्मचारियों की गलतफहमियां काफी हद तक दूर कर देंगे।पर एअर इंडिया में भुखमरी और व्यापक छंटनी के बावजूद जो कर्मचारी अभी चैन की नींद सो रहे हैं, उनकी नींद में खलल पड़ने की उम्मीद कम ही है।प्रणव बाबू ने राजकोषीय घाटा कम करने का अच्छा जुगाड़ लगाया है, कहना ही होगा।

सरकार ने बजट से पहले  संगठित क्षेत्र के कर्मचारियों को एक बड़ा झटका दिया है। सरकार ने कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) पर 1.25 फीसदी ब्याज दरें घटाने का फैसला किया है। इस फैसले से ईपीएफ पर मौजूदा समय में मिल रहे 9.5 फीसदी ब्याज की जगह अब 8.25 फीसदी ब्याज दिया जाएगा। कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) के करीब 6.1 करोड़ कर्मचारियों को उनकी जमा रकम पर कम ब्याज मिल सकता है। सरकार ने कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) पर 1.25 फीसदी ब्याज दरें घटाने का फैसला किया है। वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी की ओर से इसके लिए हरी झंडी दी गई है। यह दर चालू वित्त वर्ष के लिए लागू होगी। बीते वित्त वर्ष 2010-11 के दौरान ईपीएफ खातों पर 9.5 प्रतिशत ब्याज अदा की गई थी।

इस संबंध में कर्मचारी भविष्य निधि संगठन [ईपीएफओ] ने अपने क्षेत्रीय कार्यालयों के लिए सर्कुलर भी जारी कर दिया है। वैसे, यह फैसला पहले ही हो जाता, लेकिन पांच राज्यों में विधान सभा चुनाव को देखते हुए सरकार इस कदम से बचती रही।

बीते साल दिसंबर में ही ईपीएफओ ने अपने शीर्ष निकाय केंद्रीय ट्रस्टी बोर्ड यानी सीबीटी को ब्याज दर घटाने का सुझाव दिया था। लेकिन ईपीएफओ का केंद्रीय न्यास ब्याज दर तय करने के बारे में किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सका जिसके बाद इस मामले को जनवरी के शुरू में वित्त मंत्रालय के पास भेजने का फैसला लिया गया। इसके जवाब में वित्त मंत्रालय ने 8.25 फीसदी ब्याज देने की सिफारिश की थी।

दरअसल वित्त मंत्रालय ने दूसरी बार वित्त वर्ष 2010-12 के लिए 8.25 फीसदी ब्याज देने की सिफारिश की है जो पिछले वित्त वर्ष 9.5 फीसदी था। इससे पहले श्रम मंत्रालय ने 8.6 फीसदी ब्याज दिए जाने की मांग की थी लेकिन इसके बावजूद वित्त मंत्रालय ने इसमें कमी करने का फैसला किया है। इस पूरे मामले की जानकारी रखने वाले एक अधिकारी ने कहा कि श्रम मंत्रालय की मांग इसलिए नहीं मानी गई क्योंकि ऐसा करना वित्त मंत्रालय के लिए वित्तीय रूप से ठीक नहीं होता। अनुमान के अनुसार 8.50 फीसदी ब्याज देने की हालत में इंटरेस्ट सस्पेंस अकाउंट (आईएसए) में क्लोजिंग बैलेंस में 526.92 करोड़ रुपये की कमी आएगी। 8.25 फीसदी ब्याज की स्थिति में आईएसए में 0.24 करोड़ रुपये से अधिक की कमी नहीं आएगी।वित्त मंत्रालय के निर्णय को अंतिम माना जाना चाहिए। पहले श्रम मंत्रालय ने वित्त मंत्रालय से इस फैसले पर विचार करने का अनुरोध किया था लेकिन इसके बावजूद दूसरी बार इस वित्त वर्ष के लिए ब्याज दर 8.25 फीसदी रखने जाने का फैसला किया गया है।

श्रम मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले एंप्लॉयीज प्रॉविडेंट फंड ऑर्गेनाइजेशन (ईपीएफओ) ने आम बजट से दो दिन पहले बुधवार को कम ब्याज दरों की घोषणा की। वित्त मंत्रालय ने ईपीएफ सेविंग्स पर 8.25 फीसदी से ज्यादा ब्याज देने से इनकार कर दिया था। पिछले वित्त वर्ष में ईपीएफ की ब्याज दर 9.5 फीसदी थी, जिससे अबकी बार 125 बेसिस पॉइंट घटाया गया है। यह पिछले एक दशक में की जाने वाली सबसे बड़ी कटौती है। ईपीएफओ के फाइनैंशल अडवाइजर राजेश बंसल ने बताया, 'श्रम मंत्रालय ने हमें सूचित किया है कि वित्त वर्ष 2011-12 के लिए 8.25 फीसदी की दर घोषित की गई है।' ईपीएफ सेविंग की ब्याज दरें घटाए जाने के बारे में सीपीएम के एमपी तपन सेन ने कहा, 'यह आम आदमी के साथ धोखा है। हम इस मुद्दे को संसद में उठाएंगे।'

दिसंबर 2011 में श्रम मंत्री मल्लिकार्जुन खड़गे की अगुवाई वाले ईपीएफओ बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज ने 8.25, 8.5 और 9.5 फीसदी- इन तीन ईपीएफ रेट्स की सिफारिश की थी और अंतिम फैसला वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी पर छोड़ दिया था। श्रम मंत्रालय ने ईपीएफ की ब्याज दरें पब्लिक प्रॉविडेंट फंड (पीपीएफ) डिपॉजिट के रिटर्न के बराबर 8.6 फीसदी रखने के लिए खासी मशक्कत की थी। सरकार ने 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों तक ईपीएफ की ब्याज दरों पर अंतिम फैसले को रोक रखा था। लेकिन अब उसने सबसे कम प्रस्तावित ईपीएफ रेट्स पर मुहर लगाई है। वित्त वर्ष 2010-11 में ईपीएफ रेट्स को 8.5 फीसदी से बढ़ाकर 9.5 फीसदी कर दिया है। इसकी वजह यह थी कि ईपीएफओ ने दावा किया था कि उसे पास 1,700 करोड़ रुपए का अतिरिक्त रिजर्व है।

संसद में शुक्रवार को पेश होने वाले आम बजट में आम आदमी और नौकरीपेशा वर्ग को कुछ राहत मिल सकती है। वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी व्यक्तिगत आयकर छूट सीमा को मौजूदा 1.80 लाख रुपये से बढ़ाकर दो लाख रुपये कर सकते हैं।

वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी शुक्रवार को संसद में 2012-13 का आम बजट पेश करेंगे। उम्मीद की जा रही है कि वह आयकर स्लैब के दायरे में भी कुछ फेरबदल कर सकते हैं। संसद की वित्त संबंधी स्थायी समिति ने प्रत्यक्ष कर संहिता विधेयक [डीटीसी] पर दी गई अपनी सिफारिशों में भी इस बारे में कुछ सुझाव दिये हैं।

डीटीसी विधेयक में आयकर छूट सीमा को दो लाख रुपये किये जाने का प्रावधान है जबकि समिति ने इसे बढ़ाकर तीन लाख रुपये करने का सुझाव दिया है। ऐसे में माना जा रहा है कि वित्त मंत्री इस बजट में इसे दो लाख रुपये कर सकते हैं। 10 प्रतिशत, 20 और 30 प्रतिशत कर के आयवर्ग में भी कुछ फेरबदल हो सकता है।

वर्तमान में 1.80 लाख से पांच लाख रुपये तक सालाना आय पर 10 प्रतिशत कर लगता है, जबकि पांच से आठ लाख रुपये तक की आय पर 20 और आठ लाख रुपये से अधिक की आय पर 30 प्रतिशत कर लगता है। अगले बजट में इसमें मामूली फेरबदल कर दो से पांच लाख की आय पर 10 प्रतिशत, पांच से दस लाख की आय पर 20 प्रतिशत और 10 लाख से अधिक की आय पर 30 प्रतिशत किया जा सकता है।

सरकार ने अगले 2 सालों के लिए विनिवेश का लक्ष्य तय कर दिया है। वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने बताया कि वित्त वर्ष 2013 के लिए विनिवेश का लक्ष्य 30,000 करोड़ रुपये और वित्त वर्ष 2014 के लिए 25,000 करोड़ रुपये रखा गया है।

मौजूदा वित्त वर्ष के लिए सरकार का विनिवेश का लक्ष्य 40,000 करोड़ रुपये का था, लेकिन ये पूरा नहीं हो पाया।

वित्त मंत्री ने ये भी बताया कि उन्हें 3 लाख रुपये तक की आय को टैक्स से छूट देने का प्रस्ताव मिल गया है, जिस पर विचार किया जा रहा है। उन्होंने ये भी कहा कि किंगफिशर एयरलाइंस को अतिरिक्त लोन देने की स्टेट बैंक की कोई योजना नहीं है।

आर्थिक विशेषज्ञों के अनुसार बढ़ते राजकोषीय घाटे और जटिल वैश्विक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुये वित्त मंत्री बजट में आय और व्यय के मोर्चे पर संतुलन के उपाय कर सकते हैं। कर अपवंचना रोकने और सब्सिडी के बेजा इस्तेमाल को रोकने की दिशा में कुछ ठोस पहल की जा सकती है।वित्त मंत्री के लिये हाल में संपन्न विधानसभा चुनाव परिणामों के बाद सुधारों को आगे बढ़ाने और सख्त कदम उठाना मुश्किल होगा। बहु ब्रांड खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और बीमा क्षेत्र में विदेशी निवेश जैसे कई सुधार हैं जिनपर सहयोगी दलों का समर्थन नहीं मिल पाने की वजह से सरकार आगे कदम नहीं बढ़ा पाई है।

पेट्रोलियम पदार्थों पर बढ़ती सब्सिडी के मद्देनजर सरकार डीजल कारों पर विशेष उत्पाद शुल्क लगा सकती है। उल्लेखनीय है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में पेट्रोलियम पदार्थों के लगातार बढ़ते दाम से सरकारी खजाने और तेल कंपनियों पर भारी सब्सिडी बोझ बढ़ा है। राजकोषीय घाटे पर भी इसका असर देखा जा रहा है।

आर्थिक वृद्धि के मोर्चे पर भी सरकार के समक्ष चुनौती बनी हुई है। चालू वित्त वर्ष के दौरान आर्थिक वृद्धि घटकर 6.9 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया जा रहा है, जबकि इससे पिछले लगातार दो वर्ष में यह 8.4 प्रतिशत रही। वर्ष 2012-13 अगली पंचवर्षीय योजना [‍12वीं योजना] का पहला साल है, इस दिशा में भी सरकार को कदम उठाने होंगे।

संसद में गुरुवार को पेश आर्थिक समीक्षा में औद्योगिक क्षेत्र की कमजोर पड़ती स्थिति में सुधार लाने पर जोर दिया गया है। इसमें कृषि और सेवा क्षेत्र के प्रदर्शन पर संतोष व्यक्त करते हुये देश में बेहतर कामकाज का माहौल बनाने की जरूरत बताई गई है।

थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति फरवरी में फिर बढ़कर 6.95 प्रतिशत हो गई है, इससे रिजर्व बैंक की चिंता बढ़ी है। केन्द्रीय बैंक ने कहा है कि भविष्य में ब्याज दरों में गिरावट मुद्रास्फीति की स्थिति पर निर्भर करेगी।
 

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