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Monday, March 5, 2012

निजी स्कूलों में बच्चों के साथ होती है अधिक क्रूरता: अध्ययन

निजी स्कूलों में बच्चों के साथ होती है अधिक क्रूरता: अध्ययन

Monday, 05 March 2012 17:20

नयी दिल्ली, पांच मार्च (एजेंसी) अमूमन यह माना जाता है कि देश के निजी स्कूल बच्चों के विकास और करियर को लेकर सरकारी स्कूलों से बेहतर होते हैं, लेकिन एक अध्ययन के अनुसार यह गलतफहमी है। इसमें कहा गया है कि निजी स्कूलों में बच्चों के साथ सरकारी स्कूलों के मुकाबले ज्यादा क्रूर व्यवहार होता है।
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग :एनसीपीसीआर: की ओर से आज 'स्कूलों में शारीरिक दंड' को लेकर एक विस्तृत अध्ययन रिपोर्ट जारी की गई। इसमें सरकारी स्कूलों के साथ ही निजी स्कूलों के बारे में तल्ख टिप्पणी की गई है। 'स्कूलों में शारीरिक दंड' को लेकर आयोग की ओर से दिशा-निर्देश भी जारी किए गए हैं।
आयोग की ओर से जारी अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक देश के निजी स्कूलों में 83.6 फीसदी लड़कों और 84.8 फीसदी लड़कियों को किसी न किसी तरह से मानसिक उत्पीड़न का शिकार होना पड़ता है। वहीं, कें्रद सरकार के अधीनस्थ स्कूलों में यह आंकड़ा क्रमश: 70.5 और 72.6 फीसदी है। राज्य सरकारों की ओर से संचालित स्कूलों के 81.1 फीसदी लड़कों और 79.7 फीसदी लड़कियों को मानसिक रूप से प्रताड़ित करने वाले अपशब्दों को झेलना पड़ता है।
अध्यन रिपोर्ट में कहा गया है, ''यह माना जाता है कि निजी तौर पर संचालित स्कूलों में योग्य शिक्षक-शिक्षिकाएं होती हैं और ऐसे में निजी स्कूलो में बच्चों के साथ क्रूर व्यवहार की आशंका कम होती है। इस अध्ययन में यह मान्यता गलत साबित हुई है।''
बाल आयोग की ओर से 2009-10 के दौरान सात राज्यों में सर्वेक्षण कराया गया। इस सर्वेक्षण में 6,632 छात्रों में से सिर्फ नौ ने ही कहा कि उन्हें उनके स्कूलों में किसी तरह की परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा।

इस रिपोर्ट में हैरान करने वाली बात यह है कि बच्चों के साथ पशुसूचक शब्दों का भी इस्तेमाल किया जाता है। इस तरह का व्यवहार निजी स्कूलों के 38.5 फीसदी लड़कों और 30.4 फीसदी लड़कियों के साथ होता है। वहीं कें्रद सरकार के अधीनस्थ स्कूलों में यह आंकड़ा 14.1 और 19.2 फीसदी है।
आयोग की ओर से कहा गया है, ''बच्चों के साथ अभ्रद व्यवहार को लेकर सरकारी और निजी स्कूलों में कोई अंतर नजर नहीं आता। दोनों तरह के स्कूलों में बड़े पैमाने पर बचपन की अनदेखी जा रही है।''
आयोग का कहना है कि स्कूलों में बच्चों पर उनकी जाति एवं समुदाय पर आधारित अभ्रद टिप्पणियां की जाती हैं। बच्चो को कई तरह के शारीरिक दंड के साथ भेदभाव का सामना करना पड़ता है, जिससे वे शारीरिक एवं मानसिक तौर पर परेशान रहते हैं।
इस अध्ययन का मकसद यह पता करना था कि स्कूल में हर दिन बच्चों को किसी तरह के शारीरिक एवं मानसिक दंड का सामना करना पड़ता है और इस समस्या को किस तरह से खत्म किया जा सकता है।
इसमें कहा गया है, ''99.86 बच्चों ने कहा कि उन्हें किसी न किसी तरह के दंड का सामना करना पड़ा है। 81.2 फीसदी बच्चों ने कहा कि उन्हें कहा गया कि वे पढ़ने लिखने की क्षमता ही नहीं रखते।''

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