Sunday, 18 March 2012 11:23 |
यह तथ्य आमफहम है कि विज्ञान की दुनिया में परीक्षणों के लिए चूहों, गिनीपिगों और बंदरों वगैरह का इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन यह बात शायद कम लोग ही जानते हैं कि इंसानों पर भी इस तरह के परीक्षण होते हैं। दरअसल, नई दवाओं को बाजार में उतारने से पहले औषधि निर्माता कंपनियां मनुष्यों पर उनका परीक्षण कराती हैं। इस परीक्षण को दवा परीक्षण या चिकित्सीय परीक्षण कहते हैं। औषधि निर्माता कंपनियां अपनी शोध प्रयोगशालाओं में अनुसंधान द्वारा नई औषधियों का विकास करती हैं। सबसे पहले चूहों की एक प्रजाति पर इन दवाओं का परीक्षण किया जाता है। प्रयोग की सफलता पर मनुष्यों पर उन्हें आजमाया जाता है। दवा की बिक्री से पहले मनुष्यों पर किए जाने वाले दवा परीक्षण या चिकित्सीय परीक्षण को अनिवार्य माना जाता है। गौरतलब है कि दवा परीक्षण में दवाओं का दुष्प्रभाव होने के साथ-साथ परीक्षण के लिए स्वयं को प्रस्तुत करने वाले व्यक्ति की जान का भी जोखिम रहता है। असल में, हाल के वर्षों में भारत जैसे विकासशील देशों में दवा परीक्षण का धंधा तेजी से पनपा है। दरअसल, विधि-सम्मत ढंग से किए जाने वाले औषधि परीक्षण को लेकर कोई समस्या नहीं है। समस्या तब पैदा होती है जब ये परीक्षण अवैध रूप से किए जाते हैं। हाल ही में, ऐसे अवैध औषधि परीक्षणों की जांच की मांग उठाने वाली एक याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद और मध्य प्रदेश सरकार से जवाब तलब किया है। इसके बाद इस मुद् दे पर बहस तेज होगई है। भारत में चल रहे अवैध दवा परीक्षण की जांच की सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका पर अभी फैसला आना बाकी है। सुप्रीम कोर्ट में औषधि परीक्षण को लेकर हाल ही में दाखिल जनहित याचिका में जिन तथ्यों का समावेश किया गया है उन्हें अधिकांश रूप से 'डाउन टू अर्थ' पत्रिका के 30 जून 2011 के अंक में प्रकाशित 'इथिक्स आॅन ट्रायल' शीर्षक लेख में से लिया गया है। लेख में देश भर में अवैध और अनैतिक ढंग से चलने वाले औषधि परीक्षण के धंधे का पर्दाफाश किया गया है। लेख में दिए गए कुछ उदाहरणों की चर्चा यहां प्रासंगिक होगी- नौ साल की रानी के माता-पिता जानकी और अमर पटेल उससे दूर रहते हैं जिसके कारण रानी उनसे बहुत नाखुश है। इसका कारण यह है अमदाबाद के बापू नगर के अपने निवास स्थान से कोई दस किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक केंद्र में पति-पत्नी दोनों को बीच-बीच में औषधि परीक्षण में भाग लेने के लिए जाना पड़ता है। एक परीक्षण से उन्हें पांच हजार रुपए से लेकर छह हजार रुपए तक मिल जाते हैं। अपनी बेटी रानी के स्कूल का खर्च निकालने और परिवार के लिए दो जून की रोटी कमाने के लिए ही उन्हें मजबूरन इस परीक्षण के लिए हामी भरनी पड़ी थी। जीए रिसर्च इंडिया लिमिटेड, जो एक कांटैÑक्ट रिसर्च आर्गेनाइजेशन है, ने परीक्षण से पूर्व जानकी से इस बात की सहमति ली थी कि क्या वह कैंसर की दवा के परीक्षण के लिए राजी होगी? उसे यह भी बताया गया कि दवा के इतर या कुप्रभाव के चलते उसे मतली और सिरदर्द का भी शिकार होना पड़ सकता है। पैसों के लिए जानकी ने हां कर दी। लेकिन दो साल के अंदर जानकी को हृदय रोग और दर्द के लिए दवाएं शुरू करनी पड़ीं। देखते-देखते वह जोड़ों के दर्द की बीमारी का भी शिकार हो गई। जानकी के पति अमर पटेल का स्वास्थ्य तो केवल तीन परीक्षणों के बाद ही जवाब दे गया। उसे गहरी कमजोरी ने आ घेरा। अब आलम यह है कि रह रह कर उसकी आंखों के आगे अंधेरा छाने लगता है। औषधि परीक्षण के गिनीपिग बने जानकी और अमर पटेल अब औषधि परीक्षण से उत्पन्न दूसरे प्रभावों और शारीरिक विकारों से संघर्ष कर रहे हैं। मध्य प्रदेश निवासी सूरज और रीना यादव अपने चार वर्षीय बेटे दीपक के पेट का इलाज करा रहे थे। जब बेटे की हालत ठीक होने के बजाय और बिगड़ने लगी तब उन्हें पता चला कि उनके बेटे पर जानसन एंड जानसन कंपनी द्वारा विकसित एक प्रति अल्सर दवा रेबोप्राजोल का परीक्षण किया जा रहा था। इस तरह कुछ मरीजों को भरोसे में लेकर और कुछ को बिना बताए ही अवैध और अनैतिक ढंग से औषधि परीक्षण किए जाते हैं। भारत, चीन, रूस और ताईवान के अलावा लातिन अमेरिका और पूर्वी यूरोप के देशों को तीसरे चरण के दवा परीक्षण के लिए खासतौर पर चुना जाता है, क्योंकि इसमें लागत बहुत कम आती है। सचमुच, दवा परीक्षण का कारोबार बहुत फल-फूल चुका है। 2005 में यह कारोबार 423 करोड़ का था। 2010 में बढ़कर यह 1611 करोड़ हो गया है। इस साल के अंत तक इसके 2721 करोड़ हो जाने की संभावना है। |
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