जनसत्ता ब्यूरो लखनऊ 8 मार्च। राजभवन के पिछले रास्ते से बुधवार को करीब 11 बजे परिसर में दाखिल हुर्इं मुख्यमंत्री मायावती ने राज्यपाल बीएल जोशी को अपना इस्तीफा सौंप दिया। उन्होंने अपनी हार का ठीकरा मीडिया के सिर फोड़ा। उन्होंने कहा कि हम कुशासन या भ्रष्टाचार के कारण नहीं हारे। हमारी पार्टी हारी है राज्य के 70 फीसद मुसलमानों के सपा के पक्ष में वोट करने और मीडिया के कारण। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में इस बार बसपा को मुंह की खानी पड़ी है। समाजवादी पार्टी ने बसपा को करारा झटका देते हुए उत्तर प्रदेश में अपना परचम लहराया है। उसे जहां 224 सीटें मिलीं, तो वहीं बसपा को 80 सीटों से ही संतोष करना पड़ा है। 2007 में हुए विधानसभा चुनाव में 206 सीटों के साथ सरकार बनाने वाली बसपा को 16वीं विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त के साथ महज 80 सीटें हासिल हुर्इं। ऐसी अटकलें थीं कि मायावती मंगलवार को ही अपना इस्तीफा राज्यपाल को सौंप देंगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बसपा के शुरुआती गठन के दौरान दिए गए नारे-तिलक तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार से राज्य में दलितों के बीच अपनी पकड़ बनाई थी। लेकिन दलितों को आकर्षित करने के लिए दिए गए इस नारे के कारण जब सवर्णों को पार्टी से जोड़ने में दिक्कत आई, तो मायावती ने इसे बदल दिया और नया नारा दिया हाथी नहीं गणेश हैं, ब्रह्मा विष्णु महेश हैं। ब्राह्मण नेता के रूप में सतीश चंद्र मिश्र को आगे कर इसे सोशल इंजीनियरिंग का नाम दिया गया। मायावती ने इसी के दम पर 2007 के चुनाव में पूर्ण बहुमत हासिल किया। उत्तर प्रदेश में पांच साल तक सत्ता का सुख भोगने के बाद बेदखल हुर्इं बसपा की अध्यक्ष मायावती अब राज्यसभा की सदस्य बनेंगी और राष्ट्रीय राजनीति में अपनी भूमिका निभाएंगी। जनता से सीधे संवाद न बनाना, ब्रह्मा, विष्णु व महेश की कथित उपेक्षा ने ही इस बार के चुनाव में मायावती की लुटिया डुबो दी। राज्य में राज्यसभा की दस सीटों के लिए द्विवार्षिक चुनाव 30 मार्च को होंगे। सपा ने बसपा को दस साल पहले वाली स्थिति में धकेल दिया है। मायावती इसे समय रहते समझ ही नहीं पाईं कि जिस गुंडाराज के खिलाफ वह साल 2007 में चुनाव जीतीं थीं। उसे उछालने से कोई फायदा नहीं होने वाला था। बसपा ने 2009 के लोकसभा चुनाव में 20 सीटें जीतीं थीं और इस आधार पर उसे लगभग सौ विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त हासिल हुई थी और यही पार्टी के लिए खतरे की घंटी थी और मायावती समय रहते इस सत्ता विरोधी लहर को पहचान नहीं पाईं। चुनाव नतीजे आए, तो बसपा की सीटें 206 से घट कर महज 80 हो गई। जहां तक बसपा की सोशल इंजीनियरिंग के चेहरे बन कर उभरे बसपा के राष्ट्रीय महासचिव सतीश मिश्र के असर का सवाल है तो यह तौर तरीका इस बार काम नहीं आया। मायावती को इस बात का भरोसा था कि मिश्र की वजह से इस बार भी पार्टी सवर्णों का वोट पाने में कामयाब हो जाएगी। पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ और मिश्र के सबसे करीबी मंत्री नकुल दूबे भी चुनाव हार गए। लोकायुक्त की जांच पर मायावती ने अपने दर्जन भर मंत्रियों को बाहर का रास्ता दिखाया। पर यह प्रयास भी उसे दोबारा राज्य की सत्ता नहीं दिला सकी। मायावती ने अपने आॅपरेशन क्लीन के तहत 21 मंत्रियों को विभिन्न आरोपों के चलते बाहर का रास्ता दिखाया था और चुनाव तक उनके मंत्रियों की संख्या घट कर 32 रह गई। मायावती ने काफी सोच समझ कर इसमें से 23 मंत्रियों को इस बार चुनाव मैदान में उतारा। लेकिन सरकार विरोधी लहर के कारण 14 दिग्गज मंत्री चुनाव हार गए। मायावती पूरे चुनाव में गुंडाराज के खिलाफ लोगों को जागरूक कर रहीं थीं। पर पिछले पांच साल तक उन्होंने जनता के साथ कभी सीधे संवाद स्थापित नहीं किया। |
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