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Saturday, March 10, 2012

स्टीवेंस विश्वास मध्यावधि चुनाव शगूफा के साथ सुधारों के लिए दबाव बढ़ा

मध्यावधि चुनाव शगूफा के साथ सुधारों के लिए दबाव बढ़ा
(09:42:08 PM) 10, Mar, 2012, Saturday
http://www.deshbandhu.co.in/newsdetail/2785/10/0
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स्टीवेंस विश्वास
बजट में आर्थिक सुधारों के मोर्चे पर खास कदम नहीं उठाए जाएंगे। उद्योग जगत के सामने यह साफ जाहिर हो चुका है और इसी के मद्देनजर कारपोरेट रणनीतियां तय हो रही है। नये राजनीतिक विकल्प की तलाश भी शुरू हो गयी है। बाजार को अब मनमोहन सिंह सरकार से खास उम्मीद नहीं है। यह कांग्रेस  के लिए चुनावी शिकस्त से यादा परेशानी का सबब है।
 मध्यावधि चुनाव शगूफा के साथ सुधारों के लिए दबाव बढ़ा। सबसे यादा जोर राजकोषीय घाटा और सब्सिडी खत्म करने पर है। रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी के मध्यावधि चुनाव के बयान के बाद यूपीए सरकार में शामिल राजनीतिक दलों में हड़कंप मचा हुआ है। उधर सपा नेता मुलायम सिंह ने भी पीएम पद को लेकर टिप्पणी की है। इन टिप्पणियों के बाद माना जा रहा है कि मनमोहन सरकार की उल्टी गिनती शुरु हो गई है । त्रिवेदी ने कहा है कि उत्तर प्रदेश समेत पांच रायों में हुये चुनाव से पता चलता है कि देश में कांग्रेस के खिलाफ माहौल है और भाजपा-सपा जल्द से जल्द चुनाव चाहती हैं। उन्होंने देश में मध्यावधि चुनाव की बात करते हुये कहा कि तृणमूल कांग्रेस भी दो साल पहले चुनाव होने पर खुश होगी। अपने गृहग्राम में आयोजित कार्यम में मुलायम सिंह ने भी टिप्पणी कर दी कि उधर सपा के कार्यकर्ता अनुशासन बनाए रखेंगे तभी वे प्रधानमंत्री बन सकेंगे। वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी ने बार - बार कहा है कि वो लगातार बढ़ती सब्सिडी से काफी परेशान हैं। उन्होंने यहां तक कह दिया कि सब्सिडी की वजह से उनकी नींद तक उड़ी हुई है। माना जा रहा है कि वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी राजस्व बढ़ाने के लिए सेवा कर में बढ़ोतरी पर विचार कर रहे हैं। इसका असर निश्चित रूप से उद्योगों पर दिखाई देगा। इसे देखते हुए उद्योगों का कहना है कि प्रोत्साहन पैकेज यदि अगले वित्त वर्ष में जारी रहता है तो उन्हें इससे काफी राहत मिलेगी।अगला हफ्ता बाजार के लिए बहुत ही अहम रहने वाला है। अगले हफ्ते आरबीआई की ेडिट पॉलिसी और बजट का ऐलान होने वाला है। चुनाव नतीजों के बाद बाजार में गिरावट देखने को मिली है। 
गौरतलब है कि सरकार बदलने की मुहिम में मुलायम सिंह और ममता बनर्जी के नामों का जमकर इस्तेमाल हो रहा है। मजे की बात है कि अभी कल तक बाजार की रणनीति सुधार विरोधी ममता से निजात पाने की थी, पर अब मध्यावधि चुनाव की चाहत में ममता को सबसे यादा तवजो दी जा रही है। वहीं यूपी में त्रिशंकू विधानसभा की हालत में जिस मुलायम के जरिये कांग्रेस को मजबूत करके सुधारों के तेज करने की बात की जा रही थी, अब उन्हीं मुलायम की प्रधानमंत्रित्व की महात्वाकांक्षा को सबसे धाररदार हथियार बनाने की रणनीति है। शुवार को तृणमूल कांग्रेस ने संसदीय दल की बैठक बुलाकर मनमोहन सरकार को सकते में डाल दिया है। मालूम हो कि उद्योग जगत से त्रिवेदी के मधुर संबंध है। पर बाजार पर इसका कोई असर न होना यूपीए सरकार के लिए खतरे की घंटी है। समझा जा रहा है कि सुधारों के भविष्य को लेकर चिंतित बाजार अब जल्द से जल्द केंद्र में सरकार बदलने के इंतजार में है और उसके धीरज का बांध टूट चुका है। 
यह समझनेवाली बात है कि मुलायम तीसरे विकल्प के तौर पर ही प्रधानमंत्री पद के कहीं नजदीक पहुंच सकते हैं जबकि तीसरी ताकत के वजूद ही खत्म है। वाम ताकतें हाशिए पर हैं। ममता जरूर अरुणाचल और मणिपुर की विधानसभाओं में अच्छी हालत में पहुंच गयी हैं और उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड में विधानसभा चुनावों के जरिए राष्ट्रीय राजनीति में उनकी महत्वाकांक्षा उजागर हुई है। लेकिन तीसरी ताकत बतौर नहीं, बाजार और कारपोरेट जगत क्षेत्रीय दलों के नए उभार का इस्तेमाल यूपीए सरकार पर दबाव बनाने के मकसद से करने लगा है और कहा जा रहा है कि  यूपी विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद साइकल की रफ्तार में आई तेजी से दिल्ली की सियासत हिल उठी है। मुलायम सिंह यादव जहां पीएम पद का सपना देखने लगे हैं।  संभावना यह जताई जा रही है कि मुलायम सिंह, शरद यादव, चंद्रबाबू नायडू, जयललिता, नवीन पटनायक के साथ मिलकर ममता बनर्जी चौथा मोर्चा बनाने की दिशा में कदम बढ़ाएं। अगर ऐसा कुछ होता है तो हालात देश को तेजी से मध्यावधि चुनाव की ओर ले जा सकते हैं। 
दूसरी तरफ कांग्रेस हालांकि मध्यावधि चुनाव की संभावना को सिरे से खारिज कर रही है पर खबर है कि प्रशासनिक तौर पर इसकी तैयारियां शुरु हो गयी है। आर्थिक सुधारों को लागू करने के लिए पीएमओ की चुनाव पूर्व औचक सयिता से भी इसीका संकेत मिलता हुआ नजर आता है। समझा जाता है कि पुलक चटर्जी को खास जिम्मेवारी सौंपी गयी है। पुलक चटर्जी ने सभी मंत्रालयों पर नकेल कसना आरंभ कर दिया है। चटर्जी ने साफ तौर पर कहा दिया है कि सभी मंत्रालय अपना अपना लक्ष्य निर्धारित समय सीमा में पूरा कर लें। मूलत: उत्तर प्रदेश काडर के आईएएस पुलक चटर्जी ने साफ तौर पर अधिकारियों को हिदायत दे दी है कि अगर वे निर्धारित समय सीमा में काम पूरा नहीं कर सकते हैं तो बेहतर होगा वे त्यागपत्र दे दें।
लेखा महानियंत्रक द्वारा जारी आंकड़ों ने राजकोषीय घाटा बजटीय अनुमान से 5.5 फीसदी यादा होने की पुष्टि कर दी है। सरकार ने बजट में चालू वित्त वर्ष में 4.13 लाख करोड़ रुपये का राजकोषीय घाटा रहने का अनुमान लगाया था। लेकिन जनवरी 2012 तक ही यह 4.35 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गया है। राजकोषीय घाटा जीडीपी के फीसदी में मापा जाता है। सरकार ने चालू वित्त वर्ष के लिए इसके जीडीपी का 4.6 फीसदी रहने का अनुमान जताया था। दिसंबर तक राजकोषीय घाटा जीडीपी का 5.99 फीसदी था। सांख्यिकी गणना पर वास्तविक जीडीपी की कम वृद्धि दर का कोई खास असर नहीं पड़ सकता है लेकिन इसकी सुस्त वृद्धि दर की मार राजकोषीय घाटे पर पड़ी है क्योंकि इससे प्रत्यक्ष कर संग्रह में गिरावट आई है। प्रत्यक्ष कर केंद्रीय बोर्ड के अधिकारियों ने कहा कि प्रत्यक्ष कर संग्रह बजटीय अनुमान से 15,000-20,000 करोड़ रुपये कम रह सकता है। लेकिन अप्रत्यक्ष कर संग्रह बजटीय अनुमान के मुताबिक ही हैं। चालू वित्त वर्ष में जनवरी तक सरकार की कुल कर राजस्व प्राप्ति 4.58 लाख करोड़ रुपये थी जबकि बजटीय अनुमान 6.64 लाख करोड़ रुपये है। राजकोषीय घाटे पर यादा मार गैर-कर राजस्व प्राप्तियां नहीं होने से पड़ी है। सरकार व्यय पर काबू पाने में सफल रही है।उद्योग संगठन एसोचैम ने हाल ही में 1,000 सीईओ के बीच एक बजट पूर्व सर्वे कराया। इसमें अधिकांश सीईओ का कहना था कि राजस्व बढ़ाने के लिए इनपुट मैटेरियल और कैपिटल गुड्स की बजाय आयातित वस्तुओं पर सीमा शुल्क में निश्चित बढ़ोतरी के बारे में सरकार को विचार करना चाहिए। इसके साथ ही सार्वजनिक इकाइयों में विनिवेश के जरिए भी सरकार को अपना राजकोषीय घाटा कम करने और राजस्व बढ़ाने के विकल्प पर सोचना चाहिए। सर्वे में शामिल करीब 460 सीईओ का कहना था कि वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को लागू कराने के लिए सरकार को केंद्रीय बिी कर (सीएसटी) को दो फीसदी से घटाकर एक फीसदी करना चाहिए। जीएसटी के लागू होने से देश की आर्थिक विकास दर में 1.4 फीसदी से 1.6 फीसदी की वृध्दि आ सकती है। साथ ही इससे सरकार को 1.50 लाख करोड़ रुपये की सालाना कमाई होगी। उद्योग संगठन एसोचैम का मानना है कि कर सुधार के बढ़ रहे दबावों के बीच यह एक बेहतर विकल्प साबित होंगे।

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