मेरा कवि हिंदी के प्रतिमानों और प्रतीकों से युद्धरत है: अनुज
मेरा कवि हिंदी के प्रतिमानों और प्रतीकों से युद्धरत है: अनुज
» अनुज लुगुन से अश्विनी कुमार पंकज की बातचीत
आपकी मातृभाषा मुंडारी है, पर कविताएं हिंदी में लिख रहे हैं। क्यों?
ऐसा नहीं है। मैंने पहले पहल मुंडारी में ही कविताओं की रचना की थी। जब मैं बीएचयू आया तो लगा कि ज्यादा लोगों तक बात पहुंचाने के लिए हिंदी में लिखना चाहिए। फिर मुख्यधारा से संवाद करने के लिए भी उनकी ही भाषा में लिखना जरूरी है।
आप कविता क्यों लिख रहे हैं?
मैं जिस समाज और इलाके में पला-बढ़ा हूं, उसकी मुश्किलें बेचैन करती हैं। यथार्थ में हमने और झारखंड के समूचे आदिवासी समुदाय ने जो भोगा है, अभी भी भोग रहा है, वही कविताओं में लिखने की कोशिश कर रहा हूं। मेरा परिवार शुरू से झारखंड आंदोलन का हिस्सा रहा है। इसलिए यह जो अनुभव है, वही कविता के रूप में गाना चाहता हूं।
तो आप मानते हैं कि मुख्यधारा के हिंदी समाज में आदिवासी अनसुने हैं?
बिल्कुल। पूरा भक्ति आंदोलन देख लीजिए, मध्यकाल में जो एक नये सामाजिक पुनर्जागरण का इतिहास रखता है, उसमें आदिवासी अभिव्यक्ति कहां है? आदिवासी बहुत पहले से ही स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय के गीत गा रहे हैं, लेकिन उन्हें न तो इतिहास में सुना गया और न ही वर्तमान में पसंद किया जा रहा है।
हिंदी शैली, रूपक, प्रतिमान वगैरह आदिवासी अभिव्यक्ति में सक्षम हैं?
नहीं। हर भाषा की अपनी संस्कृति होती है। उसका एक भौगोलिक-सांस्कृतिक क्षेत्र होता है। वह अपने संस्कार और परिवेश से रची-बसी होती है। ऐसे में जब आप किसी दूसरी भाषा में खुद को व्यक्त करना चाहते हैं जो आपकी मातृभाषा नहीं है, तो दिक्कतें आती हैं। इसलिए भाषा में भी आदिवासी संघर्ष है और मेरा कवि हिंदी के उन प्रतिमानों और प्रतीकों से युद्धरत है, जो हमारी अभिव्यक्ति की धार व सौंदर्य को कुंद करते हैं। पर मेरा विश्वास है कि इस तरह की रचनात्मक पहल से एक न एक दिन हिंदी आदिवासी प्रतिमानों को स्वीकार करेगी और हमारी अनसुनी पीड़ा पर भी दुनिया की नजर जाएगी। इस संवाद से आदिवासी भाषाओं के लिए भी बेहतर माहौल बनेगा।
मोहल्ला लाइव पर अनुज लुगुन : http://mohallalive.com/tag/anuj-lugun/
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