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Wednesday, March 21, 2012

केंद्र ने माना, समलैंगिक संबंध अपराध नहीं

केंद्र ने माना, समलैंगिक संबंध अपराध नहीं

Wednesday, 21 March 2012 13:04

नयी दिल्ली, 21 मार्च (एजेंसी) सरकार ने आज समलैंगिकता पर उच्चतम न्यायालय के समक्ष अपना रुख स्पष्ट किया। सरकार ने कहा कि वह समलैंगिक यौन संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर किए जाने के पक्ष में है और उसे दिल्ली उच्च न्यायालय का फैसला स्वीकार्य है ।

 

अटॉर्नी जनरल जीई वाहनवती ने समलैंगिक यौन संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर किए जाने पर केंद्र के रुख में परिवर्तन को यह कहकर उचित ठहराया कि सरकार ने ''जाना और अंतत:'' दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले से ''सीख हासिल की ।''
वाहनवती से कल न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी और न्यायमूर्ति एसजे मुखोपाध्याय की पीठ ने मुद्दे पर सरकार का रुख स्पष्ट करने को कहा था ।
अटॉर्नी जनरल ने उच्चतम न्यायालय के समक्ष कहा कि उच्च न्यायालय के फैसले में कोई कानूनी त्रुटि नहीं है और ''यह हमें :सरकार: को स्वीकार्य है ।''
पीठ ने इस पर पूछा कि क्या गृह मंत्रालय की ओर से उच्च न्यायालय में दाखिल हलफनामा गलत है जिसमें समलैंगिक संबंधों का विरोध किया गया है ।
वाहनवती ने जवाब दिया कि सरकार ने उच्च न्यायालय के फैसले से सीखा और यह रुख अपनाया कि समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी में रखना समलैंगिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है ।

अटॉर्नी जनरल ने पीठ से कहा, ''जब हमने फैसला पढ़ा, हमने इससे जाना और अंतत: सीख हासिल की ।'' उन्होंने कहा कि सरकार दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले के ''औचित्य को स्वीकार करती है ।''
वाहनवती ने यह भी कहा कि हाल में हुई गड़बड़ी कानून अधिकारियों और गृह मंत्रालय के बीच संपर्क की कमी का परिणाम थी जब उच्चतम न्यायालय में अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल पीपी मल्होत्रा ने समलैंगिक संबंधों का विरोध किया था ।
पीठ ने कल मुद्दे पर ''ढीले'' रुख के लिए केंद्र की खिंचाई की थी और इस बात पर भी चिंता व्यक्त की थी कि संसद इस तरह के महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा नहीं कर रही तथा न्यायपालिका पर ''अधिकार क्षेत्र के उल्लंघन'' का आरोप लगाया जा रहा है ।
सरकार द्वारा दिल्ली उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय में दायर किए गए विभिन्न हलफनामों का अध्ययन करने के बाद शीर्ष अदालत ने कहा 

था कि केंद्र ने इस मामले को बहुत हल्के में लिया है जिसकी ''निन्दा की जानी चाहिए'' । इसने अटॉर्नी जनरल को सरकार का रुख स्पष्ट करने के लिए अपने समक्ष पेश होने को कहा था ।
पीठ ने कहा था, ''उन्होंने इस मामले को बहुत हल्के में लिया है । इसकी निन्दा की जानी चाहिए और हम इसे अपने फैसले में कहने जा रहे हैं ।''
इसने कहा था कि यह अजीब मामला है जिसमें सरकार इस तरह के महत्वपूर्ण मुद्दे पर उच्च न्यायालय में लड़ने के बाद उच्चतम न्यायालय के समक्ष तटस्थ रुख अपना रही है ।
शीर्ष अदालत समलैंगिक अधिकार विरोधी कार्यकर्ताओं और राजनीतिक एवं धार्मिक संगठनों की ओर से दायर की गई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी जिनमें दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले का विरोध किया गया था ।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने 2009 में समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था और व्यवस्था दी थी कि एकांत में दो वयस्कों के बीच समलैंगिक यौन संबंध अपराध नहीं हैं ।
भारतीय दंड संहिता की धारा 377 :अप्राकृतिक अपराध: के तहत समलैंगिक यौन संबंध अपराध है जिसमें उम्रकैद तक की सजा हो सकती है ।
वरिष्ठ भाजपा नेता बीपी सिंघल ने उच्च न्यायालय के फैसले को यह कहकर उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी थी कि इस तरह की गतिविधियां अवैध, अनैतिक और भारतीय संस्कृति के मूल्यों के खिलाफ हैं ।
आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, उत्कल क्रिश्चियन काउंसिल और एपोस्टोलिक चर्चेज जैसे धार्मिक संगठनों ने भी फैसले को चुनौती दी थी ।
योग गुरु बाबा रामदेव, ज्योतिषी सुरेश कौशल, दिल्ली बाल संरक्षण आयोग और तमिलनाडु मुस्लिम मुन्न कशगम ने भी उच्च न्यायालय के फैसले का विरोध किया था ।
केंद्र ने पूर्व में शीर्ष अदालत को सूचित किया था कि समलैंगिकों की संख्या करीब 25 लाख है और इनमें से सात प्रतिशत :1.75 लाख: एचआईवी ग्रस्त हैं ।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने अपने हलफनामे में कहा था कि वह अत्यधिक जोखिम वाले चार लाख लोगों...'पुरुषों के साथ यौन संबंध रखने वाले पुरुषों' :एमएसएम: को अपने एड्स नियंत्रण कार्यक्रम के दायरे में लाने की योजना बना रहा है और यह पहले ही करीब दो लाख लोगों को इसके दायरे में ला चुका है ।


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