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वित्तमंत्री की क्रूरता का नजारा अब आम उपभोक्ताओं के अलावा तेल कंपनियों और उनमें काम करते कर्मचारियों को भी बहुत जल्द देखने को मिलेगा!तेल संकट से निपटने के लिए अमेरिका को मात देने का दांव. सब्सिडी घटाने की तैयारी और तेल कंपनियों के विनिवेश की मुहिम ते

वित्तमंत्री की क्रूरता का नजारा अब आम उपभोक्ताओं के अलावा तेल कंपनियों और उनमें काम करते कर्मचारियों को भी बहुत जल्द देखने को मिलेगा!तेल संकट से निपटने के लिए अमेरिका को मात देने का दांव. सब्सिडी घटाने की तैयारी और तेल कंपनियों के विनिवेश की मुहिम तेज!

मुंबई से  एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

पेट्रो सेक्टर में सुधार अब बजट सत्र से निपटने के बाद ही होंगे। इन सुधारों में सब्सिटी खत्म करना सर्वोच्च प्राथमिकता है। तेल सब्सिडी घटाये बिना राजकोषीय घाटे को नियंत्रण में नहीं लाया जा सकता। पर संसद में बहुमत न होने और घटक दलों की सौदेबाजी से मजबूर सरकार बजट प्रस्तावों में इसके लिए कोई प्रावधान कर नहीं पायी।अर्थ विशेषज्ञों का मानना है कि कर छूट और सब्सिडी खत्म कर दी जाये तो राजकोषीय घाटा शून्य हो सकता है।जाहिर है कि सरकार प्रमुख सुधारों को पारित कराने के लिए बचनबद्ध है।पेट्रोलियम पदार्थों के लिए दी जाने वाली सब्सिडी में कटौती कर वित्त मंत्री ने संकेत दे दिया है कि जल्द ही डीजल के दामों को सरकारी नियंत्रण से बाहर किए जाने का फैसला लागू हो जाएगा, इससे आम आदमी पर महंगाई की मार और तेज हो सकती है। बजट तैयार करते समय उन्हें राजनीतिक बाध्यताओं को ध्यान में रखना पड़ा।अपने काम की दुविधा की तुलना शेक्सपीयर के उपन्यास 'हेमलेट' में वर्णित डेनमार्क के प्रिंस से करते हुए मुखर्जी ने कहा, 'दयालु होने के लिए मुझे क्रूर बनना ही होगा।'वित्तमंत्री की क्रूरता का नजारा अब आम उपभोक्ताओं के अलावा तेल कंपनियों और उनमें काम करते कर्मचारियों को भी बहुत जल्द देखने को मिलेगा। बजट में पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों को लेकर सीधे तौर पर तो कुछ नहीं कहा गया है, लेकिन सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि आम जनता पर मूल्य वृद्धि की गाज बहुत जल्द गिरेगी। बहुत संभव है कि तेल कंपनियां बजट सत्र के बाद पेट्रोल, डीजल के साथ ही रसोई गैस की खुदरा कीमतों को बढ़ाने का एलान कर दें। तेल संकट से बचने के लिए वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी तरह तरह की जुगत लगा रहे हैं, वहीं तेल कंपनियों के विनिवेश की मुहिम ओएनजीसी की हिस्सेदारी की नीलामी में हुई फजीहत के बावजूद अब टाप प्रयोरिटी बन गयी है।सरकारी कंपनियों के एफपीओ लगातार टलने के कारण सरकार का मौजूदा वित्त वर्ष में विनिवेश लक्ष्य पूरा होता मुश्किल दिख रहा है।प्रत्यक्ष कर वसूली में भारी कमी, विनिवेश लक्ष्य की प्राप्ति न होने और सब्सिडी के बढ़ते बोझ ने देश का राजकोषीय घाटा बढ़ा दिया है।विनिवेश के रोड मैप में अब ऑयल इंडिया का नाम ऊपर आ गया है।तीस हजार करोड़ का नया विनिवेश लक्ष्य हासिल करने के लिए अब सरकार नवरत्न कंपनियों की इक्विटी बेचेगी। ये कंपनियां हैं: ऑयल इंडिया,सेल,एमएमटीसी,निवेली लिगनाइट और नेल्को। भेल भी निशाने पर है। स्टेट बैंक आफ इंडिया और एलआईसी के भी नंबर हैं।सरकार सार्वजनिक क्षेत्र की ऑयल इंडिया लि. ( IOL) में अगले वित्त वर्ष के दौरान 10 प्रतिशत हिस्सेदारी बेच सकती है।

राजनीतिक रूप से संवेदनशील बहु-ब्रांड खुदरा क्षेत्र में 51 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) पर व्यापक आम सहमति बनाने के लिये राज्यों के साथ विचार-विमर्श जारी है।

ईरान तेल संकट से सरकार की दिक्कतें बढ़ सकती हैं। इसके अलावा देश की तेल कंपनियों पर भी असर पड़ेगा। भारत जरूरत का 9 फीसदी कच्चा तेल ईरान से आयात करता है। इस बीच  मुखर्जी ने देश की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए ईरान से मिलने वाले तेल के महत्व को समझते हुए आम बजट पेश करने के दौरान एक  कूटनीतिक दांव खेला है।मुखर्जी ने वित्त विधेयक 2012 में प्रावधान किया है कि ईरान सहित खाड़ी देशों से आयात होने वाले तेल के एवज में भारतीय मुद्रा रुपये में होने वाले भुगतान को पूरी तरह कर मुक्त रखा जाएगा। इस फैसले से देश के तेल शोधक संयंत्र ईरान से सुगमता से कच्चा तेल हासिल कर सकेंगे और अमेरिका की ईरान विरोधी रणनीति नाकाम हो जाएगी। अमेरिका ईरान के परमाणु कार्यक्रम को रोकने के लिए उसके खिलाफ प्रतिबंध लगाने की मुहिम चला रहा है।वित्त मंत्री ने कहा कि रुपये में भुगतान हासिल करने वाली विदेशी कंपनियों को कर से छूट देने का फैसला राष्ट्रीय हित को ध्यान में रख कर किया गया है। इस फैसले से कंपनियों पर लगने वाला 40 प्रतिशत तक का कर खत्म हो जाएगा। सरकार के इस फैसले से सबसे अधिक फायदा ईरान की नेशनल तेल कंपनी (एनआईओसी) को होगा जो भारतीय मुद्रा में भुगतान हासिल करने के लिए तैयार हो गई है। इस कंपनी ने भुगतान हासिल करने के लिए कोलकाता स्थित यूको बैंक में खाता भी खोल रखा है।विदेशी तेल कंपनियों को आयकर से मुक्त करने के लिए आयकर कानून में संशोधन करना होगा जिसमें कुछ समय लगेगा। इसीलिए सरकार ने ऐलान किया है कि नई व्यवस्था इस वर्ष एक अप्रैल से ही लागू मानी जाएगी।


आम बजट में जरूरतमंद लोगों को सीधे सब्सिडी का फायदा देने और रसोई गैस की कालाबाजारी रोकने के नाम पर प्रणब दा ने ग्राहकों पर बोझ बढ़ाने का खास इंतजाम कर दिया है। मिट्टी का तेल यानी केरोसिन, घरेलू गैस यानी एलपीजी और राशन दुकानों से मिलने वाले अनाज की सब्सिडी सीधे लोगों के बैंक खाते में डालने का जो प्रयोग बीते साल तमाम हिस्सों में शुरू किया गया, अब उनका विस्तार किया जाएगा। ऐसा हुआ तो सरकार रसोई गैस, मिट्टी तेल और राशन-अनाज सस्ते में देने के बजाय इसकी सब्सिडी ही जरूरमंदों के बैंक खातों में सब्सिडी की राशि डाल देगी।प्रणब मुखर्जी ने अपना सातवां बजट पेश करते हुए आने वाले दिनों में ईंधन की कीमतों में इजाफे की जमीन तैयार कर दी है। मुखर्जी ने ऐलान किया कि आगामी वित्‍त वर्ष में ईंधन पर दी जाने वाली सब्सिडी कम की जाएगी। सरकार ने तेल कंपनियों के बढ़ते घाटे पर चिंता व्यक्त की।बजट से ठीक पहले वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने बढ़ते सब्सिडी बोझ की वजह से नींद नहीं आने की बात कही थी। ग्राहकों को बाजार मूल्य पर रसोई गैस सिलेंडर खरीदने पड़ेंगे और बाद में इस रकम का कुछ हिस्सा उनके बैंक खाते में जमा कर दिया जाएगा। ग्राहक जितनी सब्सिडी के योग्य होंगे, उनको उतनी रकम वापस की जाएगी। मसलन, गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों (बीपीएल) को ज्यादा रकम वापस की जाएगी, तो गरीबी रेखा से ऊपर के लोगों (एपीएल) को कम रकम। बाजार विशेषज्ञों के अनुमान के मुताबिक अभी रसोई गैस सिलेंडर 400 रुपये की है। ग्राहकों को बाजार मूल्य के हिसाब से 800 रुपये अदा करने पड़ेंगे। बीपीएल श्रेणी के लोगों को पूरे 400 रुपये वापस मिल जाएंगे, जबकि एपीएल श्रेणी के लोगों को लगभग 200 रुपये ही वापस मिलेंगे। यह योजना अभी कर्नाटक के मैसूर में चल रही है। अगले छह महीनों में यह योजना देश के कई राज्यों में चलाई जाएगी। अलवर में यह योजना मिट्टी तेल के मामले में भी चल रही है। यानी कि यह योजना अगर देश भर में मिट्टी तेल पर भी लागू हुई तो इसके दाम भी बढ़ सकते है।  

भारी भरकम सब्सिडी भारत सरकार के लिए चिंता का विषय रही है और बहुत से विशेषज्ञ मानते हैं कि वित्तीय घाटे की एक मुख्य वजह यही रही है । वित्तमंत्री की क्रूरता का आलम यह है कि आम जनता को दी जा रही सब्सिडी को एक बड़ा बोझ बताने वाले वित्त मंत्री ने कॉरपोरेट सेक्टर को दी जाने वाली कर सब्सिडी में कोई कटौती नहीं की है।कंपनियों को दी जाने वाली कर छूट में 20 फीसद की बढ़ोतरी की गई है। चालू वित्त वर्ष 2011-12 के दौरान कंपनियों को 5,39,552 करोड़ रुपये की कर रियायतें दी गई, जो आम जनता को दी जाने वाली सब्सिडी से लगभग दोगुनी है।विशेषज्ञों का कहना है कि राजनीतिक व सामाजिक वजहों से उर्वरक, खाद्य व पेट्रोलियम सब्सिडी में कटौती करना बहुत मुश्किल है। लेकिन कॉरपोरेट सेक्टर को दी जाने वाली सब्सिडी में सरकार कटौती कर सकती है। वित्ता मंत्री ने ऐसा कुछ नहीं किया है, जो उद्योग जगत के लिए राहत ही है। कच्चे तेल के ऊंचे दामों ने भारत के सब्सिडी बोझ को बढ़ाकर सकल घरेलू उत्पाद का 2.5 फीसदी कर दिया है। इस बार पेश बजट में सब्सिडी को 2 फीसदी के आसपास लाने का लक्ष्य है ताकि आर्थिक सुधार का पहिया तेजी से दौड़ सके। इसके अलावा सरकार ने अगले वित्त वर्ष में सरकारी कंपनियों में 300 अरब रुपये कीमत की हिस्सेदारी बेचने का भी फैसला किया है।

आम जन को सब्सिडी

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फर्टिलाइजर्स , 67199

खाद्य , 72,823

पेट्रोलियम , 68481

आयकर , 42,320

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कुल , 2,50,723 करोड़ रुपये

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उद्योग जगत को छूट

सीमा शुल्क , 2,76,093

उत्पाद शुल्क , 2,12,167

कारपोरेट कर , 0,51,292

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कुल , 5,39,552 करोड़ रुपये

ओएनजीसी के ऑक्शन को मिले खराब प्रतिसाद के बावजूद सरकार ने वित्त वर्ष 2012 में सरकारी कंपनियों में विनिवेश से पूंजी जुटाने की कोशिश तेज कर दी है।  सरकार की ओर से वित्त वर्ष 2012 में ही बीएचईएल के शेयरों की नीलामी पर विचार करने के आसार हैं। वहीं सरकार ने वित्त वर्ष 2012 में ही ऑयल इंडिया के विनिवेश के संकेत दिए हैं।सरकार ब्लू चिप कंपनियों एमएमटीसी,सेल,निवेली लिग्नाइट,नाल्को और ऑयल इंडिया में हिस्सेदारी बेचने की तैयारी कर रही है।जिससे 2012-13 में विनिवेश का लक्ष्य हासिल किया जा सकेगा।वित्त सचिव आरएस गुजराल ने कहा कि सरकार ने अगले वित्त वर्ष में विनिवेश का लक्ष्य हासिल करने के लिए करीब दर्जन कंपनियों की पहचान की है जिसमें हिस्सेदारी की बिक्री की जाएगी। इनमें एनबीसीसी, आरआईएनएल,भेल,एचएएल और एचसीएल शामिल है। गुजराल ने कहा कि यह लक्ष्य हासिल हो जाएगा।मंत्रिमंडल ने पहले ही कई कंपनियों के विनिवेश प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है।


जब उनसे वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) और प्रत्यक्ष कर संहिता (डीटीसी) जैसे सुधारों के क्रियान्वयन में विलम्ब के बारे में पूछा गया तो मुखर्जी ने कहा, "यह विधायी प्रक्रिया पर निर्भर करेगा। मैं समय सीमा से क्यों नहीं चिपका रह सका? दरअसल, पिछले वर्ष मैंने प्रत्यक्ष कर संहिता को स्थायी समिति के पास भेजा, समिति ने नौ मार्च को अपनी रपट दी। अब मैं संसद की स्थायी समिति पर तो अपने निर्णय नहीं थोप सकता।"

मुखर्जी ने शुक्रवार को कहा कि सरकार बजट सत्र के दौरान बीमा कानून (संशोधन) विधेयक, 2008 व पेंशन फंड नियामक एवं विकास प्राधिकरण (पीएफआरडीए) विधेयक, 2011 प्रस्तुत करेगी।सरकार को इन विधेयकों की समीक्षा कर रही संसद की स्थायी समिति की सिफारिशें प्राप्त हुई हैं।बीमा कानून (संशोधन) विधेयक भारतीय बीमा कम्पनियों में 49 प्रतिशत तक विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) की अनुमति देता है। वर्तमान में 26 प्रतिशत एफडीआई की मंजूरी है। विधेयक बीमा कम्पनियों के भारतीय प्रमोटरों (प्रोत्साहकों) को एक निश्चित समयावधि में अपनी हिस्सेदारी 26 प्रतिशत तक कम करने के प्रावधान से दूर करता है।उन्होंने कहा कि एफडीआई के मुद्दे पर सभी दलों के बीच आम सहमति बनाई जाएगी।वित्त वर्ष 2012-13 के बजट में एफआईआई की निवेश सीमा में भी इजाफा किया गया है। उन्होंने निवेश में विदेशी भागीदारी पर खासा जोर दिया है।

गौरतलब है कि देश की सबसे बड़ी जीवन बीमा कंपनी के पॉलिसीधारक छोटे निवेशकों ने सरकार की महत्त्वाकांक्षी विनिवेश योजना को तो बखूबी सहारा दिया लेकिन उन्हें इसकी कीमत भी चुकानी पड़ी।ओएनजीसी की हिस्सेदारी की नीलामी में भी सरकार और सेबी की िज्जत बचाने के लिए छोटे बीमाधारकों का पैसा लगाया गया। सरकार ने 2009 में विनिवेश योजना की शुरुआत की और इस योजना के तहत भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) ने जहां भी निवेश किया वह या तो गलत साबित हुआ या फिर निवेशकों को भारी नुकसान उठाना पड़ा। बीएस रिसर्च ब्यूरो के संकलित आंकड़ों के मुताबिक 2009 से एलआईसी ने सरकार की 7 विनिवेश योजनाओं में करीब 12,400 करोड़ रुपये का निवेश किया। मौजूदा बाजार भाव के मुताबिक इन 7 कंपनियों में एलआईसी की ओर से किए गए निवेश का मूल्य घटकर 9,379 करोड़ रुपये रह गया है। एलआईसी के इसमें पिछले हफ्ते ओएनजीसी की शेयर नीलामी में किया गया निवेश शामिल नहीं है। विनिवेश योजना के सबसे ज्यादा नुकसान शिपिंग कॉरपोरेशन (50 फीसदी), पीटीसी इंडिया (41 फीसदी) और एनएमडीसी (39 फीसदी) में उठना पड़ा है। केवल पावर ग्रिड कॉरपोरेशन में ही एलआईसी को 22 फीसदी का लाभ हुआ है।

दूसरी ओर इस वर्ष उर्वरक, खाद्य व पेट्रोलियम सब्सिडी के तौर पर सिर्फ 2,08,503 करोड़ रुपये दिए गए हैं। शुक्रवार को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और वित्ता मंत्री ने साफ कहा था कि इसे घटाना होगा। यानी आम जनता को इन उत्पादों की ज्यादा कीमत देनी पड़ सकती है। बजट के साथ पेश प्रपत्र इस बात को उजागर करते हैं कि सरकार को कॉरपोरेट सेक्टर से जितना राजस्व नहीं मिल रहा, उससे ज्यादा उसे छूट दी जा रही है। मसलन, सिर्फ सीमा शुल्क के मामले में कंपनियों को 2,76,093 करोड़ रुपये की शुद्ध छूट दी गई है। जबकि इस वर्ष सीमा शुल्क संग्रह केवल 1,46,000 करोड़ रुपये का रहा है। इसी तरह से इस वर्ष उत्पाद शुल्क संग्रह 1,53,000 करोड़ रुपये का रहा है, जबकि कंपनियों को इस मामले में छूट 2,12,167 करोड़ रुपये की दी गई है। पिछले वर्ष के मुकाबले इन दोनों छूट की राशि में 20-20 फीसद की वृद्धि दर्ज की गई है।

अर्थव्यवस्था की 'गंभीर हालत' के बावजूद वित्ता मंत्री ने कॉरपोरेट कर के मामले में 51,292 करोड़ रुपये की छूट देकर उद्योग जगत को राहत देने का काम किया है। जबकि आम जनता को आयकर के मामले में केवल 42,320 करोड़ रुपये की ही रियायत दी गई है। पिछले बजट में कई रियायतें तात्कालिक तौर पर दी गई थीं, इस बजट में उन्हें आगे लंबी अवधि तक जारी रखा गया है। उदाहरण के तौर पर हीरा व स्वर्ण निर्यातकों को वर्ष 2008-09 के मंदी के समय बढ़ावा देने के लिए दी गई रियायत अभी भी जारी है।

किसी भी सरकार के लिए बेहद मुश्किल काम है कि आवंटन राशि और सब्सिडी की चौतरफा मांग के बीच वह बजट में सामाजिक क्षेत्र के लिए आवंटन-राशि घटा दे। यही वजह है कि वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी को सामाजिक क्षेत्र के लिए 18७,८२३ करोड़ रुपये का आवंटन करना पड़ा। केंद्र ने हेल्थ, शिक्षा, खाद्यान्न सुरक्षा और पेयजल आदि के लिए अच्छी खासी राशि आवंटित की है मगर विपक्ष ने इसे ऊंट के मुंह में जीरा बताया है। इस कार्य के लिए उन्होंने चालू वित्त वर्ष में 160,887 करोड़ आवंटित किया था। बहरहाल, वित्त वर्ष 2012-13 में सब्सिडी बोझ को जीडीपी के 2 फीसदी से कम रखने का लक्ष्य तय किया है। सरकार पर सब्सिडी का बोझ लगातारबढ़ता चला गया। फर्टिलाइजर सब्सिडी के लिए सरकार पर 60,974 करोड़ का बोझ पड़ेगा। इसी तरह फूड सब्सिडी के मद में 75,000 करोड़ रुपये का भार आएगा।  

वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने सब्सिडी के बोझ को कम करने की कोशिश की है। बिजनेस वेबसाइट मनीकंट्रोल के मुताबिक, सरकार सब्सिडी के बोझ को कम करके अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने की कोशिश में है। कुल मिलाकर सब्सिडी को लेकर इस बजट में ज्यादा मार नहीं पड़ी है।

वहीं वॉल स्ट्रीट जनरल का कहना है कि सरकार महंगी सब्सिडी से पल्ला झाड़ना चाहती है।

द हिंदू का कहना है कि सरकार ने आम बजट में जितनी फूड सब्सिडी दी है वो बहुत कम है फूड सिक्योरिटी बिल के लिए जितनी सब्सिडी देने का प्रावधान है यह उससे काफी कम है।


एनडीटीवी प्राफिट के मुताबिक, सरकार ने इस बजट में सब्सिडी बोझ को एकदम से तो नहीं हटाया है, लेकिन काफी हद तक सब्सिडी बोझ को कम करने की कोषिषें प्रणब दा की ओर से की गई है। इन प्रयासों से अर्थव्यवस्था की सुस्ती काफी हद तक दूर होगी।

सब्सिडी को लेकर मिंट का कहना है कि राजस्व घाटे का कम करने की योजना और सब्सिडी के अनचाहे आबंटन से इस बार सरकार का राजस्व गणित काफी हद तक बिगड़ सकता है। वर्तमान में सब्सिडी को कम करना सरकार की सबसे बड़ी चुनौती है।

सूत्रों के मुताबिक ऑयल इंडिया ने विनिवेश के लिए बायबैक की बजाए ऑक्शन का रास्ता अपनाने में दिलचस्पी दिखाई है। लेकिन ऑयल इंडिया के विनिवेश के लिए ऑक्शन या बायबैक पर अंतिम फैसला विनिवेश विभाग करेगा। अगर ऑक्शन के जरिए ऑयल इंडिया का विनिवेश हुआ तो 10 फीसदी हिस्सेदारी बेची जाएगी।

माना जा रहा है कि अगर ऑयल इंडिया के 10 फीसदी हिस्सेदारी के लिए विनिवेश हुआ तो सरकार 3,000 करोड़ रुपये की पूंजी जुटा सकती है। ऑयल इंडिया के पास डिविडेंड आबंटन के बाद 12,500 करोड़ रुपये की पूंजी है। कंपनी ने वित्त वर्ष 2013 में कैपेक्स के लिए 3,300 करोड़ रुपये और अधिग्रहण के लिए 7,000 करोड़ रुपये की पूंजी का लक्ष्य तय किया है।

इस बीच सूत्रों का कहना है कि कैबिनेट ने नेशनल बिल्डिंग्स कंस्ट्रक्शन कॉर्पोरेशन (एनबीसीसी) में 10 फीसदी विनिवेश को मंजूरी दे दी है। वित्त वर्ष 2012 में ही एनबीसीसी का आईपीओ आने की संभावना है।

सरकार की एनबीसीसी में हिस्सा बेचकर 250 करोड़ रुपये जुटाने की योजना है। एनबीसीसी शहरी विकास मंत्रालय के तहत आती है।

चालू वित्त वर्ष के लिए पेट्रोलियम सब्सिडी को बढ़ाते हुए वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने सरकारी स्वामित्व वाली तेल एवं गैस कंपनियों को कुछ राहत प्रदान की है। चालू वित्त वर्ष में अंतिम अनुपूरक के तौर पर पेट्रोलियम सब्सिडी के लिए 15,000 करोड़ रुपये और दिए जा सकते हैं।सरकार ने पिछले वित्त वर्ष में पेट्रोलियम पदार्थों की सब्सिडी भरपाई में तेल और गैस के उत्खनन व उत्पादन कार्य में लगी कंपनियों का योगदान बढ़ाकर 38.8 फीसदी तक कर दिया है। इन्हें अपस्ट्रीम कंपनियां कहा जाता है और इनमें ओएनजीसी, ऑयल इंडिया और गैल इंडिया शामिल हैं।सरकार के इस कदम से खासतौर से ओएनजीसी को झटका लग सकता है और उसके प्रस्तावित एफपीओ (फॉलो-ऑन पब्लिक ऑफर) पर भी नकारात्क असर पड़ सकता है।गौरतलब है कि पेट्रोलियम पदार्थों की बिक्री करने वाली सार्वजनिक क्षेत्र की तेल विपणन कंपनियों इंडियन ऑयल, भारत पेट्रोलियम और हिन्दुस्तान पेट्रोलियम को पिछले वित्त वर्ष 2010-11 में डीजल, मिट्टी तेल और रसोई गैस सिलेंडर को लागत से कम दाम पर बेचने से कुल मिलाकर 78,159 करोड़ रुपए की कमवसूली या अंडर-रिकवरी हुई।मामले से जुड़े सूत्रों के अनुसार विपणन कंपनियों के नुकसान की भरपाई में अब ओएनजीसी, ऑयल इंडिया और गैल इंडिया को पहले के मुकाबले अधिक योगदान देना होगा। इन कंपनियों को वित्त वर्ष 2010-11 के लिए 30,296.7 करोड़ रुपए यानी 38.8 फीसदी का योगदान करने को कहा गया है।

अगर अपस्ट्रीम कंपनियों को 33 फीसदी और तेल विपणन कंपनियों को पूरी क्षतिपूर्ति की जाती है तो वित्त वर्ष 2011-12 में सब्सिडी का संशोधित अनुमान 68,481 करोड़ रुपये सरकार द्वारा दी जाने वाली वास्तविक राशि से कम रह सकता है। इसके कारण तेल विपणन कंपनियां इस उधेड़बुन में लगी हैं कि उनके द्वारा बाजार कीमत से नीचे बेचे जा रहे नियंत्रित उत्पादों पर उन्हें हो रहे घाटे की सरकार पूरी भरपाई करेगी या नहीं।

इसके अलावा पेट्रोलियम सब्सिडी के लिए अवास्तविक आवंटन करने की सरकारी प्रवृत्ति जारी है। वित्त वर्ष 2012-13 के लिए पेट्रोलियम सब्सिडी का आवंटन 43,580 करोड़ रुपये किया गया है। बजट में यह माना गया है कि आने वाले समय में कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतें कम होंगी।  पिछले बजट में सरकार ने पेट्रोलियम सब्सिडी 23,640 करोड़ रुपये रहने का अनुमान लगाया था, लेकिन 2011-12 के संशोधित अनुमान में उसे इस राशि में तीन गुने से ज्यादा बढ़ोतरी करने को बाध्य होना पड़ रहा है। अब तक दो बजट अनुपूरकों के जरिये यह राशि बढ़ाकर 53,640 करोड़ रुपये की जा चुकी है।

डेलायट टच तोहमात्सु की वरिष्ठ निदेशक कल्पना जैन ने कहा, 'बॉन्ड्स की तुलना में सीधे नकद सब्सिडी से तेल एवं गैस कंपनियों, विशेष रूप से तेल विपणन कंपनियों की कार्यशील पूंजी की स्थिति में सुधार होने की संभावना है।'

हालांकि बजट में उपकर को 2,500 रुपये प्रति टन से बढ़ाकर 4,500 रुपये प्रति टन कर तेल एवं गैस उत्पादक कंपनियों पर बोझ बढ़ाया गया है। इसके बारे में बोलते हुए वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने कहा, कि उपकर की दर इससे पहले 2006-07 में संशोधित की गई थी। इन कंपनियों के लिए राहत उत्खनन और उत्पादन में इस्तेमाल होने वाले कुछ उपकरणों पर सीमा शुल्क हटाने के रूप में आई है।

पिछले कुछ सालों से चली आ रही व्यवस्था के अनुसार अपस्ट्रीम कंपनियों को ईंधन सब्सिडी की भरपाई के लिए 33 फीसदी तक का योगदान करना होता था। लेकिन इस बार नई व्यवस्था में इसे बढाकर 38.8 फीसदी कर दिया गया है। ओएनजीसी को 24,892.43 करोड़ रुपए, ऑयल इंडिया लिमिटेड को 3293 करोड रुपए और गैल इंडिया को 2111.24 करोड़ रुपए ईंधन सब्सिडी मद में देने को कहा गया है।

गौरतलब है कि तेल विपणन कंपनियों को हुई 78,159 करोड रुपए की अंडर-रिकवरी में से करीब 41,000 करोड़ रुपए की सब्सिडी वित्त मंत्रालय ने दी है। करीब 30,297 करोड़ अपस्ट्रीम कंपनियों के मिलने के बाद बाकी बचा लगभग 6800 करोड़ रुपए का बोझ तेल विपणन कंपनियों को ही उठाना होगा। किसके ऊपर कितना बोझ पड़ेगा, यह अभी साफ नहीं है। इस बीच इंडियन ऑयल व भारत पेट्रोलियम के सालाना नतीजे 30 मई और हिंदुस्तान पेट्रोलियम के सालाना नतीजे 26 मई को आने हैं, जिनमें इस बोझ का असर स्पष्ट नजर आएगा।

मुखर्जी ने कहा, "ठीक इसी तरह (जीएसटी के लिए) संवैधानिक संशोधन मैंने पिछले साल पेश किया था, लेकिन जबतक स्थायी समिति इस पर विचार नहीं कर लेती, अपनी सिफारिशें नहीं दे देती और उसके बाद यह दोनों सदनों में पारित नहीं हो जाता, राज्य इसे लागू नहीं कर देते (तबतक इसका कुछ नहीं होने वाला)।"

केंद्रीय वित्त मंत्री ने उत्पाद शुल्क और सेवा कर को बढ़ाकर 12 प्रतिशत किए जाने के प्रस्ताव का भी बचाव किया। उन्होंने कहा, "2008 तक उत्पाद शुल्क 14 प्रतिशत था। वित्तीय संकट के कारण मैंने इसे पहले घटाकर आठ प्रतिशत किया और उसके बाद उसे बढ़ाकर 10 प्रतिशत किया और इस वर्ष इसे 12 प्रतिशत किया गया है।"

मुखर्जी ने कहा, "मैंने सेवा कर को भी बढ़ाकर 12 प्रतिशत किया है, क्योंकि हमारा अंतिम मकसद जीएसटी तक पहुंचना है। और जीएसटी में सेवा कर, उत्पाद शुल्क सब एकसाथ हो जाएंगे।"

मुखर्जी ने उन आलोचनाओं को भी खारिज कर दिया, जिनमें कहा जा रहा है कि घरेलू कम्पनियों द्वारा किए जाने वाले सभी विदेशी लेन-देन को व्यापक रूप से कर दायरे में लाने के लिए आयकर कानून में संशोधन का प्रस्ताव इसलिए किया गया है, क्योंकि आयकर विभाग वोडाफोन के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में एक मुकदमा हार गया है, जिसने पूर्व कम्पनी हचिंसन एस्सार में 2007 में हिस्सेदारी खरीदी थी।

आयकर विभाग ने इस सौदे के लिए कर दावे में 11,000 करोड़ रुपये की मांग की थी।

सरकार ने वित्त वर्ष 2012-13 में सब्सिडी का बोझ 1.79 लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान लगाया है, जो चालू वित्त वर्ष के संशोधित अनुमान से 14 प्रतिशत कम है। बजट प्रस्तावों के अनुसार, वित्त वर्ष 2012-13 में सरकार का खाद्य, पेट्रोलियम और उर्वरकों पर सब्सिडी बिल 1,79,554 करोड़ रुपये रहेगा, जो चालू वित्त वर्ष के 2,08,503 करोड़ रुपये के संशोधित अनुमान से 14 प्रतिशत कम है।

दिलचस्प तथ्य है कि इस वित्त वर्ष का संशोधित अनुमान बजट लक्ष्य से 55 फीसदी ऊंचा है। 2011-12 के बजट में सब्सिडी बिल 1,34,211 करोड़ रुपये रहने का अनुमान लगाया गया था। सरकार ने पेट्रोलियम सब्सिडी में 24,901 करोड़ रुपये की भारी कमी का लक्ष्य रखा है। इंडियन आयल कारपोरेशन, भारत पेट्रोलियम कारपोरेशन और हिंदुस्तान पेट्रोलियम कारपोरेशन जैसी सार्वजनिक क्षेत्र की तेल विपणन कंपनियों को लागत से कम मूल्य पर डीजल, एलपीजी और केरोसिन की बिक्री पर 2012-13 में 43,580 करोड़ की सब्सिडी का अनुमान लगाया गया है।


चालू वित्त वर्ष में यह 68,481 करोड़ रुपये है। हालांकि, अगले वित्त वर्ष में खाद्य सब्सिडी का बोझ बढ़ने का अनुमान है। बजट प्रस्तावों में सार्वजनिक वितरण प्रणाली को दी जाने वाली सब्सिडी 75,000 करोड़ रुपये रहने का अनुमान है। चालू वित्त वर्ष में इसके 72,823 करोड़ रुपये रहने का अनुमान है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली और अन्य कल्याण योजनाओं के लिए केंद्र द्वारा तय मूल्य और खाद्यान्न की आर्थिक लागत के अंतर को पूरा करने के लिए खाद्य सब्सिडी प्रदान की जाती है। वित्त वर्ष 2012-13 में उर्वरक सब्सिडी में भी 6,225 करोड़ रुपये की भारी कमी का अनुमान है। बजट प्रस्तावों में उर्वरक सब्सिडी बिल 60,974 करोड़ रुपये रहने का अनुमान लगाया गया है, जो चालू वित्त वर्ष में 67,199 करोड़ रुपये है।

उर्वरक सब्सिडी के तहत सरकार आयातित यूरिया के लिए 13,398 करोड़ रुपये, देश के उत्पादित यूरिया पर 19,000 करोड़ रुपये और 28,576 करोड़ नियंत्रणमुक्त उर्वरकों डीएपी, एमओपी और काम्प्लेक्स की किसानों को सब्सिडी वाली दरों पर बिक्री के लिए उपलब्ध कराएगी।

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