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Thursday, March 15, 2012

बाजार दहशत में, मजबूर सरकार से क्या कोई उम्मीद करें! बजट के आर पार अंधेरे का आलम!

बाजार दहशत में, मजबूर सरकार से क्या कोई उम्मीद करें! बजट के आर पार अंधेरे का आलम!

मुंबई से  एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

आरबीआई की मिड टर्म क्रेडिट पॉलिसी की समीक्षा के तहत रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया गया है। इस प्रकार, रेपो रेट 8.5 फीसदी और रिवर्स रेपो रेट 7.5 फीसदी पर बरकरार रहेगा।वहीं हाल ही में 0.75 फीसदी की कटौती के बाद सीआरआर में भी कोई बदलाव नहीं किया गया है और ये 4.75 फीसदी पर बरकरार है। आरबीआई का मानना है कि हाल ही में सीआरआर में की गई कटौती से लिक्विडिटी की स्थिति में सुधार आया है। बेचारी जनता को अब मजबूत या मजबूर सरकार से कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ता, पर खुले बाजार में सब्र इतना बेइंतहा नहीं हो सकता यकीनन। ​​ममता बनर्जी ने यूपीए को नंगा कर दिया है और सरकार की औकात बता दी है। अब आर्थिक समीक्षा या बजट में कितना कुछ सब्जबाग पेश करें वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी , जो नुकसान होना था , हो चुका है और उसकी भरपायी मुश्किल है।यह निवेश की दृष्टि से बेहद खतरनाक है। कारपोरेट जगत में जोखिम उठाने का साहस कम होता जा रहा है क्योंकि दहशत का माहौल राजनीतिक अस्थिरता के साथ साथ घना होता जारहा है। अब श्रीलंका में तमिलों के नरसंहार के मुद्दे को लेकर द्रमुक दलों की नाराजगी की हालत में ममता को मनाने के​ ​ सिवाय प्रणव मुखर्जी के लिए अहम कुछ भी नहीं है। बजट भी नहीं। क्योंकि मायावती और मुलायम के समर्थन से भी इस सरकार के लिए बजट पास कराना असंबव लग रहा है । खासकर तब जबकि किसीको यह नहीं मालूम कि रेल बजट का क्या होना है। वित्तीय कानून और आर्थिक सुधार तो दूर की बात है।

वित्तमंत्री यूपीए के संकटमोचक  बतौर मशहूर हैं पर राजनीतिक करतब से वे बाजार का मूड नहीं बदल सकते। उद्योग जगत को नतीजे का ​
​इंतजार है। अभी तो प्रणव बाबू को नाराज दीदी को मनाने के काम में ज्यादा बिजी देखा जा रहा है। ऱाजनीतिक मजबूरियों के इस चक्रव्यह में वे बजट से अर्थ व्यवस्था को क्या दिशा दे पायेंग बहरहाल है। मजे की बात है कि सरकार संसद में अब यह कहने की स्थिति में नहीं है कि रेलमंत्री दिनेश त्रिवेदी हैं या गये। रेलबजट जिंदा है या मुरदा। रेल बजट में यात्री किराया बढ़ाए जाने पर ममता बनर्जी की नाराजगी के बाद रेल मंत्री के इस्तीफा की खबरों के बीच तृणमूल कांग्रेस ने गुरुवार को स्पष्ट किया कि दिनेश त्रिवेदी को इस्तीफा देने के लिए नहीं कहा गया है। लोकसभा में तृणमूल कांग्रेस के संसदीय पार्टी के नेता सुदीप बंदोपाध्याय ने कहा कि तृणमूल कांग्रेस ने कभी भी दिनेश त्रिवेदी को इस्तीफा देने के लिए नहीं कहा। घनघोर राजनीतिक सौदेबाजी के इस माहौल में आर्थिक मुद्दे हाशिये पर है और इंडस्ट्री के लिए परेशानी का सबब भी यही है। बजट प्रस्ताव चाहे कुछ भी हों, मौजूदा हाल में सरकार उन्हें अमल में लाने का माद्दा नहीं रखती, यह धारणा प्रबल होती जा रही है उसीतरह जैसे कि राजनीतिक नौटंकी लंबी होती जा रही है। केंद्र सरकार और इस बजट का भविष्य दोनों अंधेरे में है।अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए आर्थिक सुधार लागू करने की राजनीतिक इच्छाशक्ति सरकार के पास नहीं बची है, यह उद्योग जगत का आकलन है और जल्दी यह आकलन बदलता हुआ नहीं दीख रहा।

आर्थिक सर्वे में वित्त वर्ष 2012 में वित्तीय घाटा बढ़ने का अनुमान लगाया गया है।आरबीआई से निराशा और बजट से खास उम्मीद न होने की वजह से बाजार में गिरावट गहरा रही है। बाजार में गिरावट जारी है और सेंसेक्स-निफ्टी 1.5 फीसदी फिसल गए हैं। दोपहर 1:48 बजे, सेंसेक्स 253 अंक गिरकर 17666 और निफ्टी 85 अंक गिरकर 5379 के स्तर पर हैं।  आरबीआई ने महंगाई बढ़ने की आशंका जताई है। जिससे रेपो रेट में जल्द कटौती की उम्मीदों पर पानी फिर सकता है। इस सरकार की साख उद्योग जगत की नजर में दो कौड़ी की नहीं रह गयी है।नतीजा यह हुआ कि बाजार दहशत में, मजबूर सरकार से क्या कोई उम्मीद करें! बजट के आर पार अंधेरे का आलम! वित्तीय घाटा बढ़ने से सरकारी तिजोरी में पैसे की किल्लत देखने को मिल सकती है। ऐसे में बाजार में नकदी की भी कमी संभावित है। इस घाटे के चलते बैंकों को भी सख्ती का सामना करना पड़ेगा। वहीं इस सख्ती से निपटने के लिए बैंक अपनी दरों में इजाफा करने को विकल्प के तौर पर इस्तेमाल करेंगे। दिलचस्प है कि 2012 में घाटा बढ़ने से विकास योजनाओं पर कुछ हद तक ब्रेक भी लग सकता है। बैंकों पर सख्ती और विकास योजनाओं पर धीमी स्पीड से आम आदमी को काफी हद तक अपनी जेब ढ़ीली करनी पड़ सकती है।सरकारी खर्च में कटौती हुई तो बाजार का दूर दराज देहात तक विस्तार और कारपोरेट कारोबार की रणनीति भी धरी की धरी रह जायेगी।

दूसरी ओर तेजी से बदलते सियासी घटनाक्रम के बीच दिनेश त्रिवेदी ने कहा है कि उन्होंने अभी तक रेल मंत्री पद से इस्तीफा नहीं दिया है। उन्होंने कहा कि न ही पीएम और न ही ममता बनर्जी ने उनसे इस्तीफे के लिए कहा है। अगर उनसे ऐसा करने के लिए कहा जाएगा तो वह एक मिनट की देर नहीं करेंगे। वहीं पार्टी ने कहा है कि रेल किराया घट जाए तो भी त्रिवेदी रेल मंत्री नहीं रहेंगे। प्रधानमंत्री ने कहा है कि जरूरत पड़ी तो रेल मंत्री को हटाया जाएगा।

इन्हीं डांवाडोल हालत में जबकि न सरकार और न बजट के भविष्य के बारे मे निश्चयता के साथ कुछ कहने का सिथिति कतई नहीं है, वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने 2011-12 का आर्थिक सर्वे गुरुवार को सदन में पेश कर दिया। आर्थिक सर्वेक्षण 2011-12 में भारत को टिकाऊ, समावेशी वृद्धि और संपूर्ण विकास की सुदृढ़ स्थिति में लाने की नीतियों का सुझाव दिया गया है। सर्वेक्षण में सरकार द्वारा विभिन्न जोरदार उपायों के साथ मुद्रास्फीति पर नियंत्रण पाने की भी बात कही गई है।इन उपायों में आपूर्ति विशेष रुप से खाद्यान्न और बुनियादी कृषि उत्पादों में सुधार लाने तथा वित्तीय एवं राजस्व घाटे पर नियंत्रण करने की नीतियां शामिल है। भारतीय रिजर्व बैंक ने अपने तौर पर मौद्रिक नीति को चुस्त बनाया है। सर्वेक्षण में कहा गया है कि इस प्रकार सरकार विशेष रुप से समावेशी विकास की ओर अधिक ध्यान देने की स्थिति में आ गई है। सर्वेक्षण में सिफारिश की गई है कि सरकार की अब मुख्य चिंता अर्थव्यव्स्था की उत्पादकता को बढ़ाना और आय वितरण में सुधार लाना होना चाहिए।

बहरहाल लोकसभा में सरकार का चेहरा बचाते हुए प्रणब मुखर्जी ने उन सारी बातों को खारिज कर दिया जिसमें कहा जा रहा था कि रेल मंत्री दिनेश त्रिवदी ने इस्तीफा दे दिया है। लोकसभा में वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने कहा कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को त्रिवेदी का इस्तीफा नहीं मिला है। मुखर्जी ने कहा कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री को एक पत्र जरूर लिखा है लेकिन उसमे इस्तीफे की बात नहीं है। पत्र पर सरकार गौर कर रही है। जब भी फैसला लिया जाएगा। सदन को इस संबंध में सूचित कर दिया जाएगा। राज्यसभा में संसदीय कार्य मंत्री राजीव शुक्ला ने भी यही बात कही। पहले खबर थी कि दिनेश त्रिवेदी ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया है।लेकिन संकट अभी खत्म नहीं हुआ है और ममता मनोनीत रेलमंत्री मुकुल राय दिल्ली में पहुंच चुके हैं।

इस बीच जैसी कि विशेषज्ञों और बाजार दोनो को आशंका थी,  भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने गुरुवार को महंगाई को अब भी सबसे बड़ी चिंता बताते हुए मौद्रिक नीति की अर्ध तिमाही समीक्षा में प्रमुख ब्याज दरों को अपरिवर्तित रखा। रिजर्व बैंक ने कहा कि कच्चे तेल की कीमत बढ़ने के कारण महंगाई का अंदेशा बढ़ गया है। जरूरतों की पूर्ति के लिए देश तेल का बड़े पैमाने पर आयात करता है।अप्रैल से नवंबर 2011 की अवधि में नौ फीसदी से अधिक रहने के बाद महंगाई दर दिसंबर माह में 7.7 फीसदी, और जनवरी 2012 में 6.6 फीसदी दर्ज की गई, जबकि फरवरी मे यह फिर से बढ़कर 6.95 फीसदी हो गई। आरबीआई ने एक बयान में फैसले की घोषणा करते हुए कहा कि वर्तमान व्यापक आर्थिक स्थितियों के मूल्यांकन के आधार पर रेपो दर को 8.5 फीसदी पर बनाए रखने का फैसला किया गया है।रेपा दर वह दर होती है जो रिजर्व बैंक वाणिज्यिक बैंकों को ऋण देने के एवज में वसूलता है। रिवर्स रेपो दर भी इस फैसले के कारण 7.5 फीसदी पर बनी रही। नकद आरक्षित अनुपात को भी 4.75 फीसदी पर यथावत रखा गया है।रिजर्व बैंक ने कहा कि भविष्य में दरों में कटौती इस बात पर निर्भर करेगी कि महंगाई की दर कितनी जल्दी सामान्य स्तर पर आ जाती है। विश्लेषकों का अनुमान है कि रिजर्व बैंक 17 अप्रैल को 2012-13 की मौद्रिक नीति की घोषणा में दरों में कटौती का फैसला कर सकता है।
बाजार ने रिजर्व बैंक के फैसले पर निराशा जताई और बम्बई स्टॉक एक्सचेंज के 30 शेयरों वाले संवेदी सूचकांक सेंसेक्स में दोपहर के कारोबार में 200 से अधिक अंकों की गिरावट दर्ज की गई। दोपहर 1.10 बजे सेंसेक्स को 229.23 अंक नीचे 17,690.07 पर कारोबार करते देखा गया।

आरबीआई का कहना है कि कच्चे तेल में आए उबाल से महंगाई दर पर दबाव बढ़ा है। इसके अलावा फर्टिलाइजर और बिजली की कीमतें बढ़ाए जाने की काफी गुंजाइश है।

प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार समिति के चेयरमैन, सी रंगराजन के मुताबिक आरबीआई द्वारा महंगाई को लेकर जताई गई चिंता वाजिब है। आरबीआई महंगाई की चाल को देखते हुए कदम उठा रहा है।

सी रंगराजन का कहना है कि फरवरी में महंगाई दर 7 फीसदी के करीब पहुंच गई है, जो चिंता की बात है। आरबीआई ने सीआरआर पहले ही घटाकर लिक्विडिटी की दिक्कत को कम कर दिया है।

हालांकि, जानकारों का मानना है कि आरबीआई की नजर बजट पर है।

खाद्य वस्तुओं खासकर सब्जियों और प्रोटीन आधारित उत्पादों की कीमतें बढ़ने से फरवरी माह में महंगाई दर बढ़कर 6.95 फीसदी हो गई। थोक मूल्य सूचकांक पर आधारिक महंगाई दर जनवरी में 6.55 फीसदी रही थी। जबकि पिछले साल फरवरी में मुद्रास्फीति 9.54 फीसदी दर्ज की गई थी। बुधवार को जारी सरकारी आंकड़ों के अनुसार, फरवरी में खाद्य महंगाई दर 6.07 फीसदी रही, जबकि जनवरी में यह -0.52 फीसदी रही थी। समीक्षाधीन अवधि में दालों की कीमतें 7.91 फीसदी बढ़ी।

विदेशी मुद्राओं की तुलना में डॉलर में मजबूती और स्थानीय शेयर बाजारों के गिरावट के साथ खुलने से डॉलर के मुकाबले रुपया 25 पैसे की गिरावट के साथ 50.16 प्रति डॉलर पर खुला। फॉरेक्स डीलरों ने कहा कि अन्य एशियाई मुद्राओं की तुलना में डॉलर में मजबूती आने से रुपया की धारणा कमजोर हुई। आयातकों की ओर डॉलर की मांग निकलने से भी रुपये में नरमी आई। कल रुपया 2 पैसे मजबूत होकर 49.91 प्रति डॉलर पर बंद हुआ था।

बैंक, कंज्यूमर ड्यूरेबल्स, रियल्टी, पीएसयू, कैपिटल गुड्स शेयर 2.5-2 फीसदी टूटे हैं। मेटल, ऑयल एंड गैस, ऑटो, पावर, एफएमसीजी 1.5-1 फीसदी कमजोर हैं। हेल्थकेयर, तकनीकी और आईटी शेयरों में 0.5-0.25 फीसदी की गिरावट है।

डीएलएफ, बीएचईएल, कोल इंडिया, ओएनजीसी, आईसीआईसीआई बैंक, एसबीआई, एचडीएफसी बैंक, स्टरलाइट इंडस्ट्रीज, हीरो मोटोकॉर्प, एलएंडटी 4.5-2 फीसदी टूटे हैं।

भारती एयरटेल, एचडीएफसी, आईटीसी, टाटा मोटर्स, एमएंडएम, बजाज ऑटो, जिंदल स्टील, रिलायंस इंडस्ट्रीज, हिंडाल्को 1.5-1 फीसदी गिरे हैं।

एनटीपीसी, गेल, सन फार्मा, एचयूएल 1-0.5 फीसदी की तेजी कायम रख पाएं हैं। इंफोसिस, टाटा स्टील, मारुति सुजुकी हरे निशान में हैं।

छोटे और मझौले शेयरों में गिरावट बढ़कर 1 फीसदी हो गई है। मिडकैप शेयरों में लैंको इंफ्रा, वीआईपी इंड, जय कॉर्प, इंडियाबुल्स रियल एस्टेट, सिंडिकेट बैंक 8-5.5 फीसदी गिरे हैं।

2012-13 के दौरान 7.6 फीसदी विकास दर रहने का अनुमान व्यक्त किया है। समीक्षा के अनुसार चालू वित्त वर्ष के दौरान महंगाई दर 6.5 से सात फीसदी के बीच रहने का अनुमान व्यक्त किया गया है।

आर्थिक समीक्षा के अनुसार चालू वित्त वर्ष के दौरान देश का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 6.9 फीसदी की रफ्तार से बढ़ेगा। देश की अर्थव्यवस्था की विकास दर में चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही के 6.9 फीसदी की तुलना में तीसरी तिमाही में 6.1 फीसदी की दर से वृद्धि हुई है।

आर्थिक सर्वे  2011- 12 की मुख्य बातें:

-सरकार द्वारा मुद्रास्फीति को काबू में लाने के जोरदार उपाय।

-सर्वेक्षण में वर्ष 2011-12 में सकल घरेलू उत्पाद में 6.9 फीसदी वृद्धि रहने का अनुमान।

-वर्ष 2012-13 में आर्थिक वृद्धि 7.6 प्रतिशत रहने की संभावना।

-चालू वित्त वर्ष के अंत तक मुद्रास्फीति 6.5 से 7.0 प्रतिशत के बीच रहने की संभावना।

- आर्थिक समीक्षा में वर्ष 2011.12 के दौरान आर्थिक वृद्धि 6.9 प्रतिशत पर बरकरार।

-2012 में मुद्रास्फीति की दर में कमी आएगी।

-आर्थिक समीक्षा में कृषि क्षेत्र में 2.5 फीसदी विकास दर का अनुमान।

-बुनियाद ढांचे के अंतर के समाधान हेतु मल्टीब्रांड खुदरा में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का सुझाव।

-अप्रैल 2011- जनवरी 2012 के दौरान भारत के संचयी निर्यात में 23.5 फीसदी की वृद्धि।

-सेवा क्षेत्र में 9.4 फीसदी तक की वृद्धि और सकल घरेलू उत्पादन में इसका हिस्सा 59 फीसदी तक बढ़ा।

-आर्थिक वसूली में सुधार जारी रहने के मद्देनजर औद्योगिक वृद्धि दर चार से पांच फीसदी तक रहने की उम्मीद।

-थोक मूल्य सूचकांक खाद्य मुद्रास्फीति जनवरी 2012 में गिरकर 1.6 फीसदी रह गई है जो फरवरी 2010 में 20.2 फीसदी थी।

-भारत दुनिया की सबसे तेज गति से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्थाओं में बना हुआ है।

-देश की राजकोषीय ऋण रेटिंग 2007-12 में 2.98 फीसदी बढ़ा।

-वित्तीय सुदृढीकरण जारी, बचत और पूंजी निर्माण के बढ़ने की आशा है।

-इस वित्त वर्ष के पूर्वार्ध में निर्यात 40.5 फीसदी की दर से और आयात 30.4 फीसदी की दर से बढ़े।

-विदेशी व्यापार निष्पादन विकास का मुख्य संचालक बना रहेगा।

-विदेशी मुद्राभंडार में वृद्धि होगी जो लगभग सचूमा विदेशी ऋण को समाप्त करेगा।

-इस वित्त वर्ष में सामाजिक सेवाओं पर पर केंद्रीय व्यय बढ़कर 18.5 फीसदी हो जाएगा जो 2006-07 में 13.4 फीसदी था।

-2010-11 में मनरेगा के अधीन 5.49 करोड़ परिवारों को लाया गया।

-सतत विकास और जलवायु परिवर्तन को उच्च प्राथमिकता दी जाएगी।

मुद्रास्फीति

-वित्त वर्ष 2013 में मुद्रास्फीति में नरमी का अनुमान।

- मूल्य स्थिरता के उपायों पर जोर दिया जाएगा।

-मार्च अंत तक मुद्रास्फीति घटकर 6.5 से 7 फीसदी का अनुमान।

-वर्ष 2012 में WPI और CPI की मुद्रास्फीति का अंतर में कमी का अनुमान।

-खाद्य महंगाई बढने के प्रमुख कारक-दूध,अंडा,मछली,मीट और खाद्य तेल।

-मुद्रास्फीति रोकने के लिए मौद्रिक नीति संबंधी कदम उठाए जाएंगे

-आरबीआई ने मुद्रा तरलता पर जोर दिया।

-नीतिगत दरों और मुद्रास्फीति के बीच संबंधों का परीक्षण।

-शेयर बाजार और रीयल एस्टेट में बढ़े संपत्ति कीमतों से खतरा।

-तेल की बढ़ती कीमतों का मुद्रास्फीति पर असर का खतरा।

- सकल कीमतों की अस्थिरता के लिए उच्च खाद्य भंडारण पर जोर।

कृषि

-    मल्टीब्रांड खुदरा में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का अनुमान

-    2011-12 के दौरान कृषि तथा संबद्ध क्षेत्रों में 2.5 फीसदी विकास दर का अनुमान।

-    2011-12 में कृषि और इससे संबंधित गतिविधियों का सकल घरेलू उत्पाद में 13.9 का लक्ष्य।

-    खाद्यान्न भंडार 55.2 मिलियन टन।

-    2011-12 के दौरान खाद्यान्नों का उत्पादन 250.42 मिलियन टन का अनुमान।

खाद्य कीमतों की स्थिरता की खातिर उपाय

-उर्वरकों एवं कीटनाशकों के उपयोग के संबंध में जानकारी देने हेतु किसानों के लिए विस्तार और मार्गदर्शन कार्यक्रमों का आयोजन।

-एक यौजिक नीति के रूप में कृषि उत्पादों का अपेक्षाकृत कम मात्राओं में नियमित आयात करना।

-कुछ खास फसलों के लिए विशेष बाजार पर जोर।

-मंडी व्यवस्था को बेहतर करने की कोशिश की जाएगी।

-अंतर राज्य व्यापार बढ़ाने पर जोर।

-बिगड़ने वाली खाद्य वस्तुओं को एमपीएमसी अधिनियम के दायरे से बाहर रखा जा सकता है।

-कृषि उत्पादों की फसल कटाई अवसंरचना में अहम निवेशी अंतरों को ध्यान में रखते हुए संगठित व्यापार और कृषि को प्रोत्साहन।

-सरकार को खाद्दान्नों के आधुनिक भंडारण के लिए उचित कदम उठाए जाने चाहिए।


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