बाँध के लिये वन कानून आड़े़ नहीं आते
लेखक : प्रेम पंचोली :: अंक: 24 || 01 अगस्त से 14 अगस्त 2011:: वर्ष :: 34 :September 1, 2011 पर प्रकाशित
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बाँध के लिये वन कानून आड़े़ नहीं आते
लेखक : प्रेम पंचोली :: अंक: 24 || 01 अगस्त से 14 अगस्त 2011:: वर्ष :: 34 :September 1, 2011 पर प्रकाशित
कुछ वर्ष पहले राहुल गांधी जब सीमान्त जनपद उत्तरकाशी के पुरोला क्षेत्र में आये थे तो पंचगाईं पट्टी के फिताड़ी निवासी जयमोहन राणा ने उन्हें बताया था कि वे एक ऐसे गाँव में रहते हैं, जहाँ आज भी मोटर मार्ग से आठ किमी पैदल की चढ़ाई चढ़नी पड़ती है। इस बात को सुन कर राहुल गांधी तत्काल उक्त गाँव जाने को उद्यत हो गये, परन्तु सरकारी महकमे ने उन्हें वहाँ न जाने देने के लिए तमाम तरह की अड़चनें लगा दीं।
पिछले दिनों मुझे रेक्चा गाँव जाने का मौका मिला। रेक्चा, फिताड़ी दोनो गाँव आसपास हैं। मौका था समेश्वर देवता के वार्षिक समारोह के उद्घाटन का, जहाँ पंचगाई पट्टी के 23 गाँव के लोग उक्त दिन एकत्रित होते हैं। ये सभी गाँव मोटर मार्ग से 8 से 20 किमी के फासले पर हैं। मोटर मार्ग जखोल गाँव तक ही है। बरसात में यह मार्ग भी निरापद नहीं रहता। फफराला नामक खड्ड में अत्यधिक पानी व भूधँसाव की वजह से प्रत्येक वर्ष यहाँ के निवासी महीनों देश-दुनिया से कटे रहते हैं। मोरी-जखोल मोटर मार्ग खस्ताहाल है। हालाँकि यहाँ का नैसर्गिक सौंन्दर्य अद्भुत है, मगर इस क्षेत्र पर हमेशा सरकारों का उपेक्षा भाव रहा है। स्थानीय जनप्रतिनिधि भी इस क्षेत्र में जाने में कतराते हैं। समेश्वर देवता के पारम्परिक मेले में मोरी, पुरोला, नौगाँव विकास खण्ड के ब्लॉक प्रमुख, पुरोला के विधायक, सहसपुर के विधायक आदि तमाम जन प्रतिनिधि आमंत्रित थे। मगर एक भी नहीं आया।
मोरी विकास खण्ड के इन गाँवों में शिक्षा, स्वास्थ्य, मोटरमार्ग, विद्युत आदि मूलभूत जरूरतों ने अब तक जमीनी रूप लेना मुनासिब नहीं समझा है। यह सम्पूर्ण क्षेत्र राष्ट्रीय पार्क गोविन्द वन्य जीव पशु विहार के अन्तर्गत संरक्षित किया गया है और 44 गाँव इस पार्क के कानून को ढोते-ढोते कैद की सजा जैसी भुगत रहे हैं। ढाँचागत विकास के लिए लोग वन विभाग के चक्कर काट-काट कर थक चुके हैं। ग्रामीण जब सरकार से विकास योजनाओं की माँग करते हैं तो उन्हें वन कानून का पाठ पढा दिया जाता है। परन्तु सूपिन नदी पर जब बाँध बनाने की बारी आई तो वन विभाग का एक भी कानून आड़े नहीं आया। लिवाड़ी गाँव के बालम सिंह रावत, जयबीर एवं फिताड़ी गाँव के पत्तूलाल कहते हैं कि उनकी समझ में नहीं आता कि सूपिन नदी पर कैसे 63 मेगावाट की जल विद्युत परियोजना स्वीकृत हो गयी। कांग्रेस पार्टी से जुड़े जयमोहन पर्वतवासी और भाजपा से जुड़े अजीत पाल रावत भी कहते हैं कि यदि यह परियोजना बनी है तो जखोल, पाव तल्ला, धारा, सुनकुण्डी गाँवों के 400 परिवार उजड़ जायेंगे। ये गाँव सुरंग के एकदम ऊपर आ रहे हैं। अन्य 30 गाँवों के रास्ते बन्द हो जायेंगे। इन गाँवों के निवासी कैद जैसी भुगतने के लिए मजबूर हो जायेंगे, क्योंकि उनके गाँवों के पीछे तिब्बत की सरहद है और आगे का रास्ता बाँध रोक लेगा। सूपिन नदी पर बन रहे बाँध की जन सुनवाई रद्द कर दी गयी, मगर सतलुज जल विद्युत निगम ने निर्माण कार्य जारी रखा है।
एक बार प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के अन्तर्गत जखोज से इन दूरस्थ गाँवों को मोटर मार्ग से जोड़ने बाबत सर्वे हुआ था। मगर वह भी लॉलीपॉप साबित हुआ। कुल मिलाकर ग्रामीणों को अब सरकार अथवा जनता के नुमाइन्दो पर कोई विश्वास नहीं रहा। इसीलिये जब उन्होंने समेश्वर मेले में संस्कृति विभाग की सांस्कृतिक टोली को प्रस्तुति देते देखा तो वे हैरान रह गये। एक ही सवाल बार-बार उन्हें झकझोर रहा था कि यह टोली यहाँ पहुँची कैसे और पूछ रहे थे कि फिर कभी आओगे ?
पंचगांई पट्टी के 23 गाँवो में लगने वाले समेश्वर मेले का नजारा अद्भुत होता है। लोग समेश्वर देवता की आज्ञा के बिना कोई कार्य आरम्भ नहीं करते। समेश्वर देवता के वार्षिक समारोह का आगाज फिताड़ी गाँव से होता है। पट्टी के सभी गाँवो के लोगों को देवता देव अवतार के दौरान आशीर्वाद देता है। देव अवतार के दौरान पाश्वा नृत्य करते-करते तेज धार वाली सोने चाँदी से बनी हुई डांगरी (फरसा) को अपने सहकर्मियों अर्थात् रक्षाकर्मियों को बाँटता है। ढोल बजाने वाले देवता की गाथा गाते हैं। इस गाथा गायन के बीच मुख्य पुजारी देवता की पूजा पूरी करता है। इसके पश्चात् एक रक्षाकर्मी दाँतों तले उँगली दबाकर तेज सीटी मारते हुए देवता को पुनः अवतार रूप में प्रकट होने का आमंत्रण देता है। इस एक सीटी के बाद तो सीटियों की झड़ी लग जाती है। सीटियों की गूँज में, तीव्र स्वर में समेश्वर देवता का मुख्य पुजारी श्रद्धालुओं को आशीर्वाद देता है। लगभग दो दर्जन तेज धार वाले सोने-चाँदी के फरसे अपने मुँह में दबा कर एक घण्टे तक पूजा स्थल में घुमाता रहता है। दरअसल समेश्वर देवता के पाश्वा का यह चमत्कार ही है कि पाश्वा के मुँह पर फरसे से खरोंच तक नहीं लगती। ढोल की ताल अन्यत्र बजने वाली तालों से भिन्न है। लगभग दर्जन भर ढोली लोग समेश्वर देवता की स्तुति गाते हैं तथा पूजा की ताल बजाते हैं। मंत्रमुग्ध जन समूह के बीच एक तिनका तक नहीं हिलता। इसके पश्चात् लोग लोकनृत्यो में मस्त हो जाते हैं। एक पंक्ति में ढोलवादक और दूसरी पंक्ति में नर्तक विभिन्न प्रकार के गीत व नृत्य प्रस्तुत करते हैं। मेले के दूसरे दिन अगले गाँव के लोग समेश्वर देवता को अपने गाँव पहुँचाने बाबत अगवानी के लिए पहँुचते हैं। इस तरह समेश्वर देवता की डोली दो माह तक 23 गाँवों में घूमती हैं। पंचगांई पट्टी में पूरे दो माह तक मेले चलते रहते हैं। लोग देवता के साथ श्रद्धापूर्वक गाँव-गाँव जाते है।
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