सुअरों के आतंक से उजड़ रहे हैं गाँव
लेखक : महेश जोशी :: अंक: 14 || 01 मार्च से 14 मार्च 2012:: वर्ष :: 35 :March 10, 2012 पर प्रकाशित
सोमेश्वर विधान सभा के हवालबाग विकासखंड में पड़ने वाले दौलाघट क्षेत्र के गाँवों में जंगली जानवरों व आवारा पशुओं का आतंक है। हाड़-तोड़ मेहनत के बाद काश्तकार विभिन्न फसलों से अनाज व सब्जी, दालें, मसाले आदि जुटा लिया करते थे। अब यह मुश्किल हो गया है। जानवर सारी फसलें चौपट कर देते हैं। मानव जीवन पर भी खतरा हो गया है। रोजगार के अभाव व शिक्षा, स्वास्थ्य-चिकित्सा, बिजली, पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं की बदहाली से इन गाँवों से पलायन बढ़ रहा है। अब तक की सरकारें उनके लिये कुछ नहीं कर सकीं। अब वे नई सरकार का इन्तजार कर रहे हैं, ताकि उससे वह अपनी परेशानी कह सकें।
अल्मोडा़ जिला मुख्यालय से 23 से 30 किमी की दूरी पर कोसी-गिरेछीना मोटर मार्ग के बीच पड़ने वाले दौलाघट क्षेत्र में नैणी, पंचगाँव, भनाऊँ, कुलाऊँ, कोटूली, चैना, रिखी, सिलानी, केस्ता, पणकोट, रमड़ा, बजगल, ओडाला, चीनौना, गलीबसोरा, रणखिला, नकुटा, पठूड़ा, डांगीखोला, गुरना, सणौली, टपोली, खौड़ी, बंगसर, पपोली, पत्थरकोट आदि तीन दर्जन ग्रामसभाएँ आती हैं। निरन्तर पलायन के बावजूद अभी इनकी आबादी 10 हजार से अधिक है। सड़क मार्ग से यह इलाका जुड़ा है, मगर अन्य बुनियादी सुविधायें नदारद हैं। इतने बड़े इलाके में एकमात्र अर्द्धशासकीय इन्टर कॉलेज व एक राजकीय कन्या हाई स्कूल है। इनमें भी अध्यापकों की कमी व सुविधाओं का अभाव है। सेवानिवृत सैनिक राम सिंह बिष्ट बताते हैं कि राजकीय प्राथमिक विद्यालय व जूनियर हाई स्कूलों में भी अध्यापक नहीं हैं। एक प्राथमिक चिकित्सालय है, जिसमें डॉक्टर सप्ताह में एक-दो दिन ही बैठता है। अनियमित व लो वोल्टेज बिजली के कारण बच्चे पढ़ाई नहीं कर पाते। दौलत सिंह बिष्ट कहते हैं खंडूरी जी के पिछले शासन काल में विधायक अजय टम्टा ने एक विज्ञान केन्द्र खोलने की घोषणा की थी, जो हवाई रही। विज्ञान केन्द्र के लिए 600 नाली जमीन रमड़ा गाँव के लोग देने को तैयार थे,लेकिन बात आगे नहीं बढ़ी।
इधर सुअरों का आतंक भी बढ़ते जा रहा है। गोपेश्वर बाल निकेतन के अध्यापक बताते हैं कि लगातार पहरा देने के बावजूद अगले दिन पता चलता है कि सुअरों ने कहीं और फसल चौपट कर दी है। हाल के वर्षों में शहरों से लंगूर व बंदरों को लाकर गाँव से लगे जंगलों में छोड़ देने से उनका आतंक और बढ़ गया है। आवारा पालतू पशुओं, जिन्हें दूसरे इलाके के लोग गाडि़यों में लाकर रात को यहाँ छोड़ जाते हैं, से फसल को नुकसान पहुँच रहा है। इनके लिए न खोड़ बने हैं न गौ रक्षा केन्द्र। खेती के चौपट होने का असर पशुपालन पर भी पड़ रहा है। जंगली जानवरों के आतंक से उद्यानीकरण भी सफल नहीं हो रहा है।
जंगली जानवरों से फसलें चौपट होने की शिकायत बसौली-ताकुला क्षेत्र के लोग भी करते हैं। यह इलाका आलू, गंडेरी के लिए तो प्रसिद्ध था। धान, गेहूँ, शाक-सब्जी, दालें भी अच्छी हो जाती थीं। पशु पालने से दही-दूध-घी भी पर्याप्त हो जाता था। अधिकांश परिवार कृषि व पशुपालन पर निर्भर थे। फलाणी के बालम सिंह चौहान और डोटियाल गाँव (पनेरा तोक) के पूर्व फौजी नारायण सिंह नेगी जैसे काश्तकार अपना गुजारा ठीकठाक कर लेते थे। लेकिन पिछले 15-20 वर्षों से यह सारा परिदृश्य बदल गया है। जानवर सब कुछ खोद-खाद, उलट-पलट कर चौपट कर जाते हैं। सुनोली ग्रामसभा के तोक रेशाल में लोगों ने अदरक व हल्दी के अलावा लहसुन, प्याज, धनिया, मेथी उगाना शुरू किया तो लंगूर व बन्दरों ने उनके पौंधे बीन-खोद उजाड़ दिये। रात को सुअर खेत उजाड़ कर जाते हैं। चन्द्रशेखर जोशी बताते हैं कि वे घर के सामने के खेतों को तक नहीं बचा पा रहे हैं। जिन परिवारों में कोई परदेश जाकर घर पैसे भेजने वाला नहीं है, उनके सामने भुखमरी की स्थिति आ गई है।
ईश्वर जोशी बताते हैं भारी जनदबाव के बाद सुअरों को मारने पर वन विभाग राजी हो गया है। जिस इलाके में सुअरों द्वारा फसलों को नुकसान पहुँचाया जाता है वन विभाग को सूचना मिलने पर वे वहाँ के शिकारियों/लाइसेंस सुदा बन्दूकधारियों को सुअरों को मारने की अनुमति देते हैं लेकिन गाँवों में शिकारी हैं नहीं।
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