सम्पादकीय : पोर्न देखना कोई अपराध नहीं है लेकिन……
लेखक : राजीव लोचन साह :: अंक: 13 || 15 फरवरी से 28 फरवरी 2012:: वर्ष :: 35 :February 27, 2012 पर प्रकाशित
http://www.nainitalsamachar.in/editorial-watching-porn-is-not-a-crime-but/
सम्पादकीय : पोर्न देखना कोई अपराध नहीं है लेकिन……
लेखक : राजीव लोचन साह :: अंक: 13 || 15 फरवरी से 28 फरवरी 2012:: वर्ष :: 35 :February 27, 2012 पर प्रकाशित
कर्नाटक में भाजपा सरकार के तीन मंत्रियों के विधानसभा सत्र के दौरान सेलफोन पर पोर्नोग्राफी देखते हुए पकड़े जाने की घटना इस अर्थ में उल्लेखनीय है कि यह हमारे कानून निर्माताओं की प्राथमिकता को बताती है। पोर्न देखना कोई अपराध नहीं है। वैब पर हजारों पोर्न साइटें उपलब्ध हैं और अगर किसी वयस्क व्यक्ति की रुचि उनमें हो तो किसी को क्या ऐतराज हो सकता है ? मगर महत्वपूर्ण यह जानना है कि कर्नाटक विधानसभा में उस वक्त एक महत्वपूर्ण मुद्दे पर चर्चा हो रही थी और हमारे ये कानून निर्माता उधर ध्यान न देकर पोर्नोग्राफी में अपना दिल बहलाना बेहतर समझ रहे थे। भ्रष्टाचार को अपना चुनावी मुद्दा बनाने वाली और अपने आप को संस्कारवान बताने वाली भारतीय जनता पार्टी के ये नेता भी उसी तरह विधानसभा में प्रविष्ट हुए होंगे, जैसे अगले एक महीने के अन्दर उत्तराखंड में सत्तर विधायक जनता के मतों के सहारे पहुँचेंगे। हमारे ये विधायक भी कोई विधायी कार्य शायद ही करेंगे। उनकी रुचि पोर्न देखने में भले ही न हो, विकास कार्यों के ठेके लेने-देने और ट्रांस्फर-पोस्टिंग की दलाली करने में तो अवश्य होगी। विधायक बनने के पीछे अब यही स्वार्थ रह गया है और इसी के लिये चुनाव में करोड़ों रुपये स्वाहा किये जाते हैं। संसदीय लोकतंत्र के इस रूप को क्या हमें स्वीकार करना चाहिये ? यदि नहीं तो इसका विकल्प क्या हो और संसदीय लोकतंत्र को जनहितकारी बनाने के लिये हमें क्या कदम उठाने चाहिये, इस पर न सिर्फ चर्चा करना बल्कि ठोस कदम उठाना चुनाव के इस मौसम में बहुत जरूरी है।
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