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Saturday, March 24, 2012

गुजरात दंगों के 10 साल लहू का सुराग़ सुभाष गाताडे

http://raviwar.com/news/676_gujrat-riots-after-ten-year-two-subhash-gatade.shtml

गुजरात दंगों के 10 साल

 

लहू का सुराग़

सुभाष गाताडे

गुजरात दंगा


'' उन्हें मार कर मुझे ऐसा लग रहा था कि मानो मैं महाराणा प्रताप हूं. नरेन्द्र भाई ने हमारे लिए सब आसान बनाया, वरना किसमें इतनी ताकत थी....
-बाबू बजरंगी, नरोदा पाटिया कत्लेआम का सरगना

नरेन्द्रभाई ने हमें तीन दिन दिए और कहा कि जो कर सकते हो कर लो. उन्होंने कहा कि इसमें ज्यादा वक्त नहीं दे पाएंगे.
- हरेश भट्ट, बीजेपी विधाय

उन्होंने पुलिस को मौखिक निर्देश दिए कि वह हिन्दुओं के साथ रहे क्योंकि पूरा राज्य हिन्दुओं के साथ है. 
- अरविन्द पांडया, सरकारी वकील (तहलका, नवम्बर 17, 2007 से उद्धृत)

अंग्रेजी पत्रिका 'तहलका' ने वर्ष 2007 में छह माह तक चले अपने स्टिंग आपरेशन का विवरण प्रस्तुत किया, जिसमें उन्होंने दावा किया कि उन्होंने संघ परिवार के तमाम नेताओं से बात करके इस बात के प्रमाण हासिल किए हैं कि गोधरा में ट्रेन की बोगी के जलने की घटना के बाद गुजरात में अल्पसंख्यकों का कत्लेआम 'गुस्से का स्वतःस्फूर्त उभार नहीं था बल्कि एक सुनियोजित जनसंहार' था, जिसकी योजना बनाने एवं उसे अमली जामा पहनाने में संघ परिवार के तमाम अग्रणी शामिल थे और उसे राज्य सरकार की 'सहमति' थी.

गौरतलब है कि प्रस्तुत स्टिंग आपरेशन में युवा पत्राकार आशीष खेतान ने जनसंहार में लिप्त दोनों किस्म के लोगों से मुलाकात की थी. एक तरफ ऐसे लोग थे जिन्होंने इस हमले की रणनीति तैयार की, परदे के पीछे रह कर इस खूनी मुहिम की योजना बनायी, इलाके की मतदाता सूचियां उपलब्ध कराने से लेकर, अल्पसंख्यक समुदायों के व्यावसायिक प्रतिष्ठानों की सूचियां उपलब्ध करायीं, मकानों में विस्फोट करने के लिए गैस सिलेण्डरों तथा बम, पिस्तोल, त्रिशूल से लेकर अन्य हथियारों को जगह-जगह पहुंचाने का इन्तज़ाम करवाया. 

दूसरी तरफ, वे लोग थे जिन्होंने इस रक्तरंजित मुहिम को प्रत्यक्ष अंजाम दिया, जिन्होंने मकानों में आगजनी एवं लूटपाट की, महिलाओं पर अत्याचार किए और लोगों को मार डाला. वैसे जनसंहार की योजना बनानेवालों और उस पर अमल करनेवालों में कोई चीनी दीवार नहीं थी, कई बार ऐसे मौके भी आए जब योजना बनानेवालों ने खुद इस खूनी मुहिम में प्रत्यक्ष साझेदारी की. इन विभिन्न किस्म के आततायियों से बात से स्पष्ट था कि दंगाइयों का 'प्रिय हथियार' था आगजनी. इस बात को मद्देनज़र रखते हुए कि शरीर के जलाने को गैर इस्लामी समझा जाता है, जूनूनी दस्तों ने पेट्रोल, केरोसिन या पीड़ितों के अपने गैस सिलेण्डरों का इस काम में जम कर इस्तेमाल कर अपने 'शिकारों' को जलाने का विधिवत इन्तज़ाम किया.

अहमदाबाद के नरोदा पाटिया कत्लेआम का सरगना बाबू बजरंगी (फिलवक्त शिवसेना से जुड़ा लेकिन उन दिनों विश्व हिन्दू परिषद का अग्रणी नेता) ने कैमरे के सामने बताया कि किस तरह उसने गर्भवती का पेट चीर कर पेट के भ्रूण को तलवार के नोंक पर नचाया या किस तरह उसने गड्डे में छिपे अल्पसंख्यकों पर तेल छिड़क कर उन्हें जिन्दा आग के हवाले किया और किस तरह राज्य के मुख्यमंत्री ने कानूनी निगाहों से उसे बचाने की पुरजोर कोशिश की. अपनी इस पूरी कार्रवाई के दौरान बाबू बजरंगी लगातार विश्व हिन्दू परिषद के स्थानीय बड़े नेता जयदीप पटेल के साथ लगातार सम्पर्क में था, जो पास के धन्वतंरी क्लिनिक में बैठ कर इस मुहिम का सूत्रा संचालन कर रहा था. 

इस जनसंहार में शामिल छर्रा समुदाय के लोगों का- जो डिनोटिफाइड क्रिमिनल ट्राइब का हिस्सा हैं- जम कर इस्तेमाल हुआ. इनके प्रतिनिधियों सुरेश रिचर्ड और प्रकाश राठोड़ ने 'तहलका' को बताया कि स्थानीय महिला विधायक- जो पेशे से डॉक्टर हैं, उन्होंने खुद मोहल्लों में घुम-घुम कर भीड़ को उकसाया कि वह मुसलमानों पर हमले कर उन्हें मार डाले.

निश्चित ही नरोदा पाटिया के भीषण कत्लेआम की ही तरह वहां से कुछ किलोमीटर दूर मेघानीनगर में हजारों की तादाद में लोगों ने वहां की गुलबर्ग सोसायटी पर हमला किया था, इस हत्याकाण्ड में शामिल तीन आरोपियों ने कैमरे पर इस बात का विस्तृत विवरण पेश किया कि किस तरह कांग्रेस के सांसद एहसान जाफरी- जिनके यहां तमाम अल्पसंख्यकों ने शरण ली थी-के हाथ-पैर उन्होंने काट डाले, और उनके शरीर के हिस्सों का ढेर बना कर उसे आग लगा दी.

अहमदाबाद की ही तरह वडोदरा शहर में भी कोई भी मुस्लिम बहुल बस्ती हिन्दुत्ववादी जूनूनी दस्तों के हमलों से बच नहीं पायी थी. महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय में मुख्य अकाउंटेंट तथा ऑडिटर के तौर पर कार्यरत धीमन्त भट्ट ने आशीष खेतान को स्पष्ट किया कि किस तरह अहमदाबाद की ही तरह वडोदरा में विभिन्न हिन्दुत्ववादी संगठनों ने 27 फरवरी को ही बैठ कर आगे के हमले की योजना बनायी थी और किस तरह पुलिस-प्रशासन को 'मैनेज' करना है, अगर कोई गिरफ्तार होता है तो उसे छुड़ाना है, घायल हिन्दुओं को किस तरह अस्पताल में ले जाना है कुल मिला कर हिन्दू जिहाद किस तरह शुरू करना है. इसका खाका तैयार किया था. भट्ट ने यह भी साफ किया कि शहर के प्रबुद्ध कहे जाने वाले लोगों की कारों में रख कर हथियारों को जगह-जगह पहुंचाया गया.

गुजरात के सांबरकांठा जिले में मुसलमानों को सबसे अधिक आर्थिक नुकसान झेलना पड़ा जिसमें उनके 1545 मकान, 1237 व्यावसायिक प्रतिष्ठान और 549 दुकानों को आग के हवाले किया गया. इस इलाके में परिषद के विभाग प्रमुख अनिल पटेल ने कैमरे के सामने बताया कि उनका नारा था 'बाहर से दरवाजा बन्द करो और अन्दर बैठे मुसलमानों को जला दो'.

वर्ष 2002 में बजरंग दल के राष्ट्रीय सहसंयोजक हरिश भट्ट जो गोधरा से भाजपा विधायक रह चुके हैं, उन्होंने कैमरे के सामने इस बात को पहली दफा स्वीकारा कि उनकी अपनी पटाखे की फैक्टरी में बम बनाये गये थे. भट्ट ने खेतान के सामने इस बात को भी स्पष्ट किया कि किस तरह उन्होंने विस्फोटकों यहां तक कि रॉकेट लांचर्स तैयार किए और किस तरह उन्हें अहमदाबाद के खूनी दस्तों तक पहुंचाया. 

भट्ट के मुताबिक अहमदाबाद में कर्फ्यू के बावजूद पंजाब से तलवारें और उत्तर प्रदेश, बिहार एवं मध्य प्रदेश से पिस्तौल लाये गये एवं बांटे गये. विश्व हिन्दु परिषद के कार्यकर्ता धवल जयन्ती पटेल ने तहलका को स्पष्ट किया कि सांबरकांठा में स्थित उसकी खदानों का डायनामाइट दंगे के दौरान इस्तेमाल हुआ तथा विस्फोटकों की जानकारी रखनेवाले लोगों की मदद से इन खदानों में डाइनामाइट एवं आरडीएक्स आधारित पावडर का उपयोग करके बम बनाये गये.

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