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उत्तराखण्ड में बाढ़ एवं भूस्खलन: कुछ प्रमुख घटनाएँ लेखक : chandrasekhart :: अंक: 01-02 || 15 अगस्त से 14 सितम्बर 2011:: वर्ष :: 35 :September 16, 2011 पर प्रकाशित

उत्तराखण्ड में बाढ़ एवं भूस्खलन: कुछ प्रमुख घटनाएँ

वर्ष 1868 में चमोली जनपद में बिरही की सहायक नदी में भूस्खलन से भारी तबाही हुई और 73 लोग मरे।

19 सितम्बर 1880 नैनीताल में शेर का डाण्डा की पहाड़ी टूटने से 151 लोग मरे। इसी दौरान शारदा में आयी बाढ़ से बरमदेव नाम का पड़ाव बहा, कोसी की बाढ़ से भुजान से रामनगर तक की सारी उपजाऊ भूमि बह गई।

25 अगस्त 1894 को बिरही नदी में भूस्खलन के कारण एक वर्ष पूर्व बनी झील टूटी, अलकनंदा के किनारे श्रीनगर सहित बसे तमाम गाँव व पड़ाव तबाह।

7 अगस्त 1898 को नैनीताल नगर के कैलाखान क्षेत्र में हुए भूस्खलन से 29 लोगों की मृत्यु।

1924 में नैनीताल नगर की मनोरा पहाड़ी खिसकी और बीरभट्टी इलाके के मकानों को नुकसान।

1935 में तवाघाट क्षेत्र जबर्दस्त भूस्खलन के बाद दरगाँव की आबादी का उजड़ना शुरू।

1937 में गर्ब्यांग धँसना शुरू हुआ, जो अभी भी जारी है।

1951 पौड़ी के सतपुली कस्बे में नयार ने तबाही मचायी। 22 बसें बहीं, कई लोग लापता, खेती की जमीन को बहुत नुकसान।

8 सितम्बर 1967 को नानक सागर बाँध की दीवार टूटी, 35 गाँवों में बाढ़, कई लोग मरे।

20 जुलाई 1970 को बेलाकूची व कनौडि़या गाड़ में आयी बाढ़ से भारी तबाही। पातालगंगा के ऊपरी इलाके में बादल फटा, 70 लोगों की मृत्यु।

19 जुलाई 1970 दुबाटा-धारचूला के स्याणा नाले में आयी बाढ़ से 35 मकान तबाह, 12 लोग मरे।

1975 में गौला की भीषण बाढ़ से हल्द्वानी नगर के  बह जाने का खतरा उत्पन्न हो गया।

1976 कपकोट के बघर गाँव में भूस्खलन से 11 लोग व 45 पालतू जानवर मरे। लोहारखेत में भी 5 व्यक्तियों की मृत्यु।

1 जुलाई 1976 को चमोली जनपद में नंदाकिनी नदी में भूस्खलन व बाढ़ से भारी तबाही।

14 अगस्त 1977 को तवाघाट का सिसना गाँव भूस्खलन व बाढ़ से पूरी तरह तबाह। कई गाँवों में जबरदस्त भूस्खलन, सेना के जवानों सहित 44 लोग व 80 पालतू जानवरों की मृत्यु।

1978 में भागीरथी घाटी में भारी बरसात का कहर, जबरदस्त भूस्खलन, नदी में झील बनी, पुल टूटे, 25 लोग मरे। इसी वर्ष मसूरी की खानों के मलबे के बह जाने से समूची दून घाटी के सामने खतरा पैदा हुआ।

16-19 जून 1978 को अल्मोड़ा की कोसी ने तबाही मचायी, खेती की जमीन को बहुत नुकसान।

1979 मन्दाकिनी घाटी के कोन्था गाँव में भूस्खलन का कहर, गाँव तबाह, 50 लोगों की मृत्यु।

23 जून 1980 को उत्तरकाशी का ज्ञानसू कस्बा भूस्खलन से बुरी तरह प्रभावित, जमीन रौखड़ बनी, 45 लोग मरे।

9 सितम्बर 1980 को उत्तरकाशी के कनौडि़या गाड़ के सामने बन रही सड़क में हुए भूस्खलन के मलवे से 15 लोग जमींदोज।

1983 में बागेश्वर के कर्मी गाँव में भयात नाले में आयी बाढ़ से 37 लोग व 72 जानवर मरे, कई एकड़ खेती की जमीन बही व 18 घर, 8 पुल, 15 किमी. मार्ग ध्वस्त।

1984 में कपकोट के जगथाना में भारी तबाही, 9 लोगों व दर्जनों पालतू जानवरों की मृत्यु, खेत तबाह।

1990 में ऋषिकेश के नीलकण्ठ में जबर्दस्त भूस्खलन, 100 लोग मरे।

16 अगस्त 1991 चमोली के देवर खडेरा, पाण्डुली, पीपल, हाट गाँव व गोपेश्वर नगर में भारी बरसात, 29 लोगों व 28 पालतू जानवरों की मृत्यु, कई नाली जमीन तबाह।

जुलाई 1996 में पिथौरागढ़ के रैंतोली गाँव में बादल फटने व भूस्खलन से 19 लोग मरे।

11 अगस्त 1998 को ऊखीमठ से लगे 10-12 गाँवों में भूस्खलन, 69 लोगों व तकरीबन 400 पालतू पशुओं की मृत्यु।

17-18 अगस्त 1998 को मालपा के भूस्खलन में कैलाश यात्रियों सहित कुल 261 लोगों की मृत्यु।

17 अगस्त 2001 को चमोली के फाटा में बादल फटने से 21 लोग मरे।

10 अगस्त 2002 को बूढ़ाकेदार में 28 लोग मलबे में दबकर मरे।

29 अगस्त 2003 सरनौल में अतिवृष्टि से 207 पशु मरे।

जुलाई 2004 में विष्णुप्रयाग में आयी तबाही से 16 लोगों की मृत्यु। उत्तरकाशी के कालिन्दी में भूस्खलन में 6 लोग मरे।rain-and-pahad1

26 अगस्त 2004 को सितारगंज में बाढ़ से 9 लोग मरे।

30 जून 2005 को गोविन्दघाट में बादल फटने से 11 लोगों की मृत्यु।

12 जुलाई 2007 को गैरसैण के पत्थरकटा में बादल फटने से 8 लोगों व 19 पशुओं की मृत्यु।

6 सितम्बर 2007 को धारचूला के बरम गाँव में भूस्खलन से 15 लोग मरे।

8 अगस्त 2009 को मुनस्यारी के ला, चाचना व बेडूमहर में बादल फटने से 43 लोग मरे।

12-13 अगस्त 2010 को भटवाड़ी कस्बे में तेज बारिश के कारण जमीन खिसकी, 167 मकानों की नींव धँसी।

18 अगस्त 2010 को सौंग-सुमगढ़ में 18 स्कूली बच्चे दफन।

18 सितम्बर 2010 को बादल फटने से अल्मोड़ा नगर से लगे देवली, बाल्टा, बाड़ी, पिल्खा व जोश्यूड़ा गाँवों में 36 लोगों की मृत्यु।

 

(उत्तराखण्ड इयर बुक 2011, बिनसर पब्लिशिंग कं. देहरादून में प्रकाशित जानकारी पर आधारित)

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